सब कुछ हार जाओ, पर भरोसा नहीं हारना चाहिए

0
239

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

रावण हंस रहा था। खुशी के मारे उछल-उछल कर हंस रहा था।

“सीता, तुम्हें बहुत घमंड था न अपने राम पर। तुम इतराती थी न अपने देवर लक्ष्मण की शक्ति पर! जाओ खुद अपनी आँखों से देखो। देखो कैसे तुम्हारे पति राम और तुम्हारे देवर लक्ष्मण, दोनों हमारे पुत्र इंद्रजीत के हाथों मारे गये। हमारे पुत्र ने उन्हें सर्पबाणों से भेद दिया है।

सुनो त्रिजटा, तुम मेरे पुष्पक विमान में सीता को बिठा कर युद्ध स्थल तक ले जाओ। उसे खुद अपनी आँखों से देखने दो, राम और लक्ष्मण के मृत शरीर को। उसे मेरी बातों का यकीन नहीं, लेकिन जब अपनी आँखों से वो उनके मृत शरीर को देखेगी, तो उसे मेरी बातों पर भरोसा होगा। वो यकीन कर पायेगी कि रावण की शक्ति के आगे कोई कुछ नहीं। जाओ त्रिजटा, जल्दी जाओ, जिसके भरोसे और गर्व में भरकर उसने कभी मेरी ओर देखा तक नहीं, उसे उसके पति और उसके भाई का शव दिखा कर लाओ। मैं अधीर हूँ उसके टूटे हुए भरोसे को देखने के लिए। मैं अधीर हूँ कि ये सीता कब मेरी सेवा में उपस्थित हो।”

रावण के आदेश पर त्रिजटा ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया और अशोक वाटिका से ले उड़ी सीधे युद्ध स्थल तक। ऊपर आसमान से सीता ने देखा कि चारों ओर मुर्दनी छायी है। हर ओर शोक ही शोक है। राम और लक्ष्मण दोनों सर्प बाणों में बंध कर जमीन पर पड़े हुए हैं। सीता ने दोनों को देखा और बिलख उठी।

“हे त्रिजटा! क्या सचमुच राम और लक्ष्मण दोनों इंद्रजीत के हाथों मारे गये? मुझे यकीन नहीं होता त्रिजटा। मेरे पति और देवर से बलशाली इस ब्रहमांड में कोई और हो सकता है। मेरी आँखें जो देख रही हैं, उन पर मेरा दिल यकीन करने के लिए राजी नहीं। मन नहीं मानता कि सचमुच ऐसा हो गया है। तुम कुछ कहो त्रिजटा। तुम ही कुछ कहो। क्या सचमुच रावण इतना बलशाली है, क्या उसका पुत्र इंद्रजीत इतना बलशाली है कि राम और लक्ष्मण दोनों…।”

त्रिजटा मुस्कुराई। “देवी सीता, आप के प्यार में इतना तप है कि आपको किसी के कहे और अपनी आँखों से देखे की जगह सिर्फ अपने प्यार और तप पर भरोसा करना चाहिए। आपको किसी के कहे की जगह सिर्फ अपने दिल की आवाज सुननी चाहिए। आपको सिर्फ और सिर्फ अपने सोचे हुए पर भरोसा करना चाहिए। ये सच है कि राम और लक्ष्मण दोनों के शरीर यहाँ मूर्छित अवस्था में पड़े हैं। ये सही है कि अंगद के हमलों से आहत होकर इंद्रजीत ने सर्पबाण से इनपर हमला कर दिया था, लेकिन दोनों सिर्फ मूर्छित हैं। मरे नहीं। अपने अहंकार में इंद्रजीत ने मान लिया कि प्रभु राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण दोनों उसके बाणों से बिंध कर मारे गये और उसने ये खबर रावण के पास भिजवा दी कि दोनों मारे गये। रावण ने भी अपने अहंकार में मान लिया कि राम और लक्ष्मण मारे गये। फिर भी रावण आपकी आँखों में आपकी पवित्रता और आपकी तपस्या की उर्जा को देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।”

“लेकिन त्रिजटा तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो कि ये दोनों सिर्फ नागपाश में मूर्छित हैं?”

“देवी! आपकी निष्ठा और आपके प्यार में इतनी ताकत है कि इन दोनों को कुछ हो ही नहीं सकता और सुनिए देवी ये आपका मन है, जो जानता है कि सचमुच अगर राम न रहे होते तो आपके दिल से जो वेदना निकलती उसके बाद ये पुष्पक विमान उड़ ही नहीं सकता था। इस विमान का उड़ना ही इस बात का संकेत है कि दोनों सुरक्षित हैं। इससे बड़ा और क्या प्रमाण चाहिए देवी! रावण के कहे पर और अपनी आँखों के देखे पर भरोसा मत कीजिए। भरोसा अपने अंतर्मन पर कीजिए। भरोसा पुष्पक विमान के आसमान में उड़ रहे पंखों पर कीजिए। देवी सीता, जिस दिन रावण या रावण जैसों के हाथों राम मारे जायेंगे, पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमना बंद कर देगी, सूरज हर सुबह चमकना छोड़ देगा। पक्षी चहचहाना भूल जायेंगे। ये पुष्पक विमान उड़ना छोड़ देगा। मेरा यकीन कीजिए सीता। अभी महा तेजस्वी पक्षीराज गरुड़ आयेंगे और आपके पति और देवर दोनों सर्पों के बंधन मुक्त होकर खड़े हो जायेंगे। देवताओं ने निश्चित गरुड़ जी से अनुरोध किया होगा। ये तुच्छ सर्प सिर्फ उनके आने की आहट भर से यहाँ से भाग खड़े होंगे। फिर युद्ध होगा। बुराई को हारना होगा। अच्छाई को जीतना होगा और जब ये सब होगा तभी तो कई हजार वर्षों के बाद संजय सिन्हा अपने फेसबुक परिजनों को ये कहानी सुना पायेंगे। अपने धैर्य को बनाए रखिए। जब तक धैर्य है, तब तक सबकुछ है।”

“तुम सही कर रही हो त्रिजटा। मैंने अभी-अभी यहीं से राम और लक्ष्मण के दिलों की धड़कनों को महसूस किया है। तुम सही कह रही हो त्रिजटा कि चाहे आदमी सब कुछ हार जाये, उसे भरोसा नहीं हारना चाहिए। जब तक भरोसा है, तब तक उम्मीद है। जब तक उम्मीद है, तभी तक जिंदगी है। मुझे अफसोस है कि मैंने पल के लाखवें हिस्से में भी अपने राम और लक्ष्मण की शक्ति पर संदेह किया। अपने भरोसे पर संदेह किया। मुझे अफसोस है कि मैंने रावण के कहे को सुना भी!”

हमें वो बातें सुननी ही नहीं चाहिए, जो मन के भरोसे को तोड़ने वाली हों। हमें तो हर हाल में अपने मन की आवाज ही सुननी चाहिए। हमें अपने पर भरोसा करना चाहिए।

हमें इस बात पर यकीन रखना चाहिए कि जिन्हें अपने भरोसे पर भरोसा होता है, उनके राम मरा नहीं करते। 

(देश मंथन, 17 अप्रैल 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें