हिंदी लेखक उर्फ बकरी

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आलोक पुराणिक : 

दिल्ली में इंटरनेशनल बुक फेयर शुरू होनेवाला है। पढ़ने-लिखने से जुड़ा विमर्श कई शैक्षिक संस्थानों में शुरू हुआ है।

हाल में भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर कॉलेज छात्रों के बीच निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इसमें पहला पुरस्कार जिस निबंध को मिला, उसके कतिपय महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं-

लिखना-पढ़ना कर लेने में यूँ हर्ज नहीं है, पर इससे समझदारी पर गहरे नकारात्मक असर पड़ते हैं। पढ़ाई-लिखाई लाइफ में सफल होने के लिए जरूरी है, ऐसा तजुरबों में देखने में नहीं आता।

अकबर बादशाह बहुत पहले बिना पढ़े-लिखे ही भारत की हुकूमत चला चुके हैं। अकबर ने हुकूमत चलाकर बताया कि पढ़ना-लिखना कुछ खास बात नहीं है, बाप अगर सही सैट हो, तो फिर हुकूमत आनी ही है। अकबर बादशाह के पिता हुमायूँ दिल्ली में अपनी लाइब्रेरी की सीढ़ियों से लुढ़ककर मृत्यु को प्राप्त हुए। इस दुर्घटना से ये संकेत मिला कि पढ़े-लिखे की मौत है।

इस घटना के बाद अकबर बादशाह ने पढ़ाई-लिखाई को अपनी समझदारी के रास्ते में आने ही नहीं दिया और अपने पिताजी से बड़ी हुकूमत ज्यादा सफलता से चलायी। बड़े-बड़े पढ़े-लिखे लोग अकबर के यहाँ बतौर नवरत्न नौकरी करने के लिए एप्लीकेशन देते थे। टोडरमल, रहीम, बीरबल पढ़े लिखे लोग थे, पर अकबर की नौकरी में थे। हुकूमत के लिए बाप सही सैट होना चाहिए या फिर हुकूमत आकांक्षियों को को किसी कायदे के बंदे को अपना बाप बना लेना चाहिए, पढ़ाई-लिखाई में टाइम ज्यादा वेस्ट करने से, बाप बनाने की गतिविधियों में बाधा आती है।

अभी ही हम देख सकते हैं कि जो खुद कभी इंजीनियरिंग की एंट्रेस परीक्षा में पास ना हो सके, वो इंजीनियरिंग कॉलेजों के चेयरमैन बने बैठे हैं। जो डॉक्टर की स्पेलिंग सही नहीं लिख सकते हैं, वो मेडिकल कॉलेज स्थापित कर रहे हैं, जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है, वो अध्यापक तैयार करने वाले बीएड कॉलेज खोले बैठे हैं। पढ़े-लिखे लोग इंजीनियर, डॉक्टर या अध्यापक बन जाते हैं, अनपढ़ लोग इंजीनियर कॉलेज, मेडिकल कॉलेज या बीएड कॉलेज खोल लेते हैं। असल चीज है समझदारी। वो विकसित करनी चाहिए, जो दुनियादारी से विकसित होती है। दुनियादारी किसी किताब में नहीं होती।

दिल्ली में गर्ल्स कॉलेज है-दौलत राम कॉलेज। दौलत को राम का दर्जा जबसे मिलना शुरू हो गया है, दौलत के रूट पर हर कॉलेज बनना शुरू हो गया है। दिल्ली में दौलत राम कॉलेज बहुत पुराना है, विवेकानंद कॉलेज बहुत बाद में बना। भगत सिंह, राजगुरु जैसे शहीदों के नाम पर भी कॉलेज बनने का नंबर बहुत बाद में आया। सेठ केदारनाथ चोरड़िया कन्या कॉलेज बहुत पहले से है।

समझदार कहते हैं कि हिंदी में किताबों के चक्कर में ज्यादा नहीं पड़ना चाहिए, अगर बंदा खुद प्रकाशक ना हो तो। हिंदी प्रकाशकों का किताबों से नाता कुछ कुछ वैसा है, जैसे बकरी और कसाई का है। कसाई बकरी से प्यार करता है, मोटी ताजी हो जाये, फिर कटने के लिए बिक जाये।

तमाम कॉलेजों, यूनिवर्सिटियों, संस्थानों की लाइब्रेरियाँ हिंदी किताबों की वधस्थली हैं, यहां एक बार किताब आ जाये, फिर मजाल है कि उसे कोई पढ़ ले। हिंदी लेखक की इस खेल में औकात बकरी पालने वाले भर की है, किसी की बिक गयी, किसी ना बिकी। किसी को कसाई मिल गया, अधिकांश को ना मिला।

कोर्स से बाहर की हिंदी किताबों का कारोबार मूलत बकरी पालन जैसा कारोबार है। इसमें ज्ञान-वान नहीं तलाशना चाहिए। प्रकाशक धन तलाश ले और लेखक को एकाध ग्राम यश मिल जाये, बहुत है। वैसे हिंदी के लेखक की आफत ये भी है कि वह यूँ बिकना-दिखना चाहता है, पर कोई उससे कह दे कि वह तो पापुलर लेखक हो गया है, तो वह शर्मा जाता है। वह बिना पॉपुलर हुए बिकना चाहता है।

बिना पॉपुलर हुए बेचने का काम तो सफलतापूर्वक पनडुब्बी, जहाज, टैंक वगैरह के हथियार डीलर ही कर सकते हैं। हिंदी वाला यूँ अपनी कविता को हथियार समझता है, पर प्रकाशक उसे बकरी समझकर बेच आता है। अकसर हिंदी लेखक इन पेंचों को ना समझता क्योंकि वह चाहे पढ़ा लिखा हो, पर समझदार कम ही होता है।

अंगरेजी किताबों का सीन अलग है। अंगरेजी की किताबें बिकती धुआंधार हैं, वो पढ़ी जाती हैं कि नहीं ये अलग से खोज का विषय है। कुछ प्रकाशक कहते हैं कि किताबों का अब स्टेटस ज्वेलरी का हो गया है, बंदा रखता है हैसियत बढ़ाने-दिखाने को। पर ज्वेलरी पढ़ने के लिए नहीं होती है, वैसे ही किताबें भी धीरे-धीरे पढ़ने के लिए नहीं खरीदी जा रही हैं। अंगरेजी के प्रकाशक अब जल्दी ही ज्वेलरों की कैटेगिरी में गिने जायेंगे और ज्वेलर होने के लिए बहुत पढ़ना-लिखना जरूरी नहीं है, कारोबारी समझदारी जरूरी है, उसका विकास होना चाहिए।

तो संक्षेप में हम कह सकते हैं कि सारा विकास समझदारी में निहित है, जो येन केन प्रकारेण बढ़ानी चाहिए। पढ़ने-लिखने में टाइम वेस्ट करने वाले किसी अकबर के दरबार में नवरत्न बनने की एप्लीकेशन भर फाइल करते रह जाते हैं। अकबर सही सैट बाप होने की वजह से हुकूमत करता है। तो समझदारी कुल इतनी है कि अगर बाप सही सैट ना हो, तो किसी सही सैट को बाप बना लिया जाये।

(देश मंथन, 12 फरवरी 2015)

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