संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं चाहूँ तो फोन करके भी जबलपुर के Rajeev Chaturvedi को धन्यवाद कह सकता हूँ। लेकिन मैं पोस्ट के जरिए धन्यवाद कहने जा रहा हूँ, क्योंकि उन्होंने इस बार मुझे एक ऐसी किताब भेंट की जिसने मेरी समझ के आकार को बदल दिया है। मैंने उनसे कई बार इस बात की चर्चा की थी कि अपने छोटे भाई के निधन से मैं बहुत व्यथित हूँ, और भीतर ही भीतर बहुत अवसाद से गुजरता हूँ।
राजीव जी ने पता नहीं किसे फोन किया और मेरे लिए अंग्रेजी में एक किताब लाने को कहा।
कुछ ही देर में एक आदमी खोरशेद भावनगरी की लिखी किताब ‘द लॉज ऑफ द स्पिरिट वर्ल्ड’ लेकर मेरे सामने था।
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खोरशेद भावनगरी के दो बेटे थे, और एक दिन दोनों एक सड़क हादसे में मारे गए। माँ का दिल बैठ गया। जीने की वजह खत्म हो गयी।
एक दिन किसी पड़ोसी ने उन्हें बताया कि उनका कोई जानने वाला दो युवाओँ की बातें कर रहा था, जिनका सड़क हादसे में निधन हो गया है। दोनों युवाओं की आत्मा किसी तरह संपर्क करने को आतुर थीं। भावनगरी को बहुत आश्चर्य हुआ। वो अपने पड़ोसी की मदद से उस व्यक्ति से मिलीं, जिनसे उनके दोनों बेटों की आत्माएँ संपर्क करना चाह रही थीं।
फिर माँ और बेटों का आपस में संपर्क हुआ।
दोनों बेटों ने माँ को जीवन के बाद के रहस्य से अवगत कराया। उन्हें उकसाया कि आप जीवात्मा जगत पर एक किताब लिखें। माँ ने कहा कि वो इस बारे में कैसे लिख सकती हैं, बेटों की आत्मा ने कहा आप सिर्फ कागज और कलम लेकर बैठें, हम अपनी लिखावट में आपके हाथ चलाएँगे। माँ ने कोशिश की और दुनिया के सामने एक ऐसी किताब आई, जिसे शरीर ने नहीं, आत्मा ने लिखा है।
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मैंने इस किताब की चर्चा कई बार सुनी थी, पर पढ़ नहीं पाया था। जबलपुर से वापसी के बाद मैंने किताब पढ़ी। पूरी किताब पढ़ी।
किताब पढ़ कर मुझे बहुत चैन मिला। मैं समझ गया हूँ कि जीवन-मृत्यु का चक्र क्यों घूमता है। मैं समझ गया हूँ कि परलोक का अर्थ क्या होता है। मैं समझ गया हूँ कि अच्छा और बुरा क्या होता है।
कमाल है! इस किताब में हर उस बात की चर्चा है, जिसे हम अपने धर्म ग्रंथों में पढ़ते आये हैं, पर हम अपने धार्मिक ग्रंथों की नितिगत बातों को पोंगी बातें समझ कर उसे झुठलाते रहे हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद मुझे यकीन हो चला है कि हमारे पूर्वज जिन नियमों और जिन बातों की चर्चा करके गये हैं, उनकी वजहें थीं।
बीच में एक ऐसा दौर आया जब हम इन सारी बातों को अंधविश्वास ठहराने लगे, इन्हें अंधविश्वास ठहराना आधुनिक शिक्षा का हिस्सा बन गया, इसलिए अधर्म बढ़ता चला गया। इस जीवन को ही आखिरी जीवन मानने का फैशन भी चला। मैं भी इसका शिकार हुआ। लेकिन अपने भाई के निधन के बाद मेरी तलाश शुरू हुई कि आखिर इसके बाद क्या है, ये जानना चाहिए। अगर कुछ नहीं है, तो जीवन के होने की भी कोई अहमियत नहीं। अगर कुछ है, तो वो क्या है?
यह किताब जिन्दगी की दिशा बदल देने का माद्दा रखती है। किताब की भूमिका श्यामक डावर ने लिखी है। खोरशेद भावनगरी (खोरशेद आंटी) से वो बचपन में मिलते रहे। खोरशेद आंटी ने उन्हें समझाया कि इस पृथ्वी पर हमेशा एक अच्छा इंसान बन कर रहना और हमेशा ईश्वर की बनायी अच्छी राह पर चलना सबसे जरूरी होता है। उन्होंने यह अहसास दिलाया कि आदमी अपने कर्मों के लिए सिर्फ और सिर्फ खुद जिम्मेदार होता है। अपने किसी कर्म के लिए मनुष्य किसी और को दोषी नहीं मान सकता। नि:स्वार्थ सेवा, मन पर काबू रखना, ईश्वर के ज्ञान को फैलाना, दूसरों को राह दिखाने और दिलासा देने का महत्व सिखाया।
किताब में जिन्दगी के बाद की कई परतों का स्पष्ट खुलासा है।
मैंने अपने भाई की मौत के बाद एक सपना देखा था। शायद मैंने आपसे उस सपने को साझा भी किया था। मैंने दरअसल उस सपने को कई लोगों से साझा किया था। फिर मैंने ढेरों किताबें पढ़ीं। पर इस किताब को पढ़ कर मुझे यकीन हो गया कि जो सपना मैंने देखा था, वो काफी हद तक सच था। उसे देखने की वजह थी। उसे दिखलाने की वजह थी।
मुझे नहीं लगता कि जिन्दगी की कहानियों के बीच जीवन के बाद की कहानियों में बहुत लोगों की दिलचस्पी हो सकती है, लेकिन हो, तो आपको यह किताब पढ़नी चाहिए। और अगर आप मुझसे कहेंगे तो कम से कम एक पोस्ट मैं और इस बात पर लिख सकता हूँ कि हम कौन हैं, हम क्यों आये हैं, हमारे होने का मकसद क्या है। मैं लिख सकता हूँ कि सबकुछ को मिथ्या क्यों कहा गया है। और अगर ये मिथ्या है, तो फिर सत्य क्या है।
पर सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि लिखवाने वाला मुझसे क्या लिखवाना चाहता है। क्योंकि जब भी मैं अचानक इन विषयों को छूता हूँ, तो मैं सिर्फ निमित्त मात्र रह कर लिखता हूँ। मेरा यकीन कीजिए जब मैंने सुबह कम्यूटर खोला था, तब मैं अपनी पत्नी के उस सवाल को लेकर आपके सामने आना चाह रहा था, जिसे उसने मुझसे कल ही पूछा था कि प्रेम क्या है? मैं उसके सवाल पर चौंका था, क्योंकि शादी के 25 साल बाद ऐसा पूछने का क्या मतलब? वो भी तब जब दो दिन बाद हमारी शादी की सालगिरह है।
(देश मंथन, 19 अप्रैल 2016)