मन का भाव

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मुझे एकदम ठीक से याद है कि इस विषय पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ। पर क्या करूँ, हर साल जब मैं ऐसी स्थिति में फंसता हूँ, तो मुझे एक-एक कर सारी घटनाएँ फिर से याद आने लगती हैं और मैं चाह कर भी अपने अफसोस को छुपा नहीं पाता। 

आज मेरे दफ्तर की वो सारी महिला एंकर, जो करवा चौथ का व्रत करती हैं, छुट्टी पर हैं। कई तो पुरुष भी मुझसे यह कह कर छुट्टी ले गये हैं कि उनकी पत्नी ने आज करवा चौथ का व्रत रखा है, तो उनका घर में रहना जरूरी है। 

मेरी माँ करवा चौथ का व्रत नहीं करती थी। वो तीज का व्रत रखती थी। मुझे लगता है कि तीज और करवा चौथ, दोनों त्योहार एक जैसे होते हैं। 

माँ सुबह उठ कर ढेर सारी गुझिया बनाती, पूजा की तैयारी करती और सारा दिन पानी का एक बूंद तक मुँह से नहीं लगाती। देर रात जब पिताजी घर आते तो पूजा कर कुछ खाती। व्रत माँ का होता, पर पूरे घर के लिए वो खाना पकाती और एक पल के लिए भी उसे इस बात का मलाल नहीं होता कि वो भूखी-प्यासी व्रत पर बैठी है। 

आपको पता ही है कि मेरी पत्नी दिल्ली वाली हैं और पंजाबी हैं। करवा चौथ मूल रूप से पंजाबियों का ही त्योहार है। आपको यह भी पता है कि मेरी पत्नी बहुत साल पहले इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार थीं। मैंने पहले इस बात की चर्चा की है कि करवा चौथ वाले दिन उसने कभी अपने दफ्तर से छुट्टी नहीं ली। उसका कहना है कि इस तरह का व्रत आस्था से जुड़ा मामला है, सार्वजनिक प्रदर्शन से जुड़ा नहीं। उसका कहना है कि पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है, जो समाज को रूढ़ियों और मान्यताओं से आजादी दिलाता है। यह एक प्रगतिशील पेशा है, इसमें हमें अपनी मान्यताओं का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। यह सही है कि सदियों से करवा चौथ का व्रत हमारी परंपरा में शामिल है, पर यह एकदम निजी मामला है। ऐसे में इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए।

आज भी मेरी पत्नी सारा दिन व्रत रख कर आराम से सब काम करती है, देर रात घर में पूजा करती है, व्रत तोड़ती है। वो कभी इस बात को जाहिर भी नहीं करती थी कि उसने व्रत रखा है।

पर अब तो कमाल ही हो गया है। जिन लड़कियों की शादी भी नहीं हुई है, वो मेहंदी लगाए, चूड़ी पहने, बिंदी सजाए दफ्तर पहुँच जाती है, फिर कहती हैं कि वो आज फलाँ काम नहीं करेंगी, क्योंकि हाथों में मेहंदी है, कल दफ्तर नहीं आएँगी क्योंकि करवा चौथ का व्रत रखा है। अब यह आस्था से अधिक दिखावे का त्योहार बन गया है। इसमें भी तुर्रा ये कि दो चार यूपी और बिहार वाली लड़कियों ने भी मुझे बताया कि वो करवा चौथ का व्रत रखने लगी हैं।

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मैं व्रत, धर्म, पूजा सबको बहुत मानता हूँ। मैं सबकी भावनाओं का बहुत ख्याल रखता हूँ। पर मुझे मुझे लगता है कि यह सचमुच निजी मामला ही होना चाहिए। 

मुझे ओशो की एक बात बहुत अच्छी लगती थी। ओशो का कहना था कि जब हम धर्म, व्रत, पूजा यह सोच कर करते हैं कि देखो हम ये कर रहे हैं, तो उसकी अहमियत खत्म हो जाती है। पूजा, धर्म, व्रत, उपवास, दान ये सारी चीजें दिखावे की नहीं होतीं। ये सारी चीजें मन के भाव से जुड़ी हैं। जब इनका सार्वजनिक प्रदर्शन होने लगता है, तो यह व्रत के भाव को ही खत्म कर देता है। 

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मेरी माँ तो एकादशी, पूर्णमासी, सतुआन, ज्युतिया, तीज, छठ और न जाने कितने दिन पूरा उपवास रखती थी। पर क्या मजाल जो घर में किसी को पता भी चला हो। वो उस दिन भी आम दिनों की तरह खाना बनाती, पूरे घर को खिलाती, सारे काम करती और अपना व्रत धर्म भी निभाती। उसका कहना था कि ये उसकी आस्था का मामला है, इसका असर दूसरों पर नहीं पड़ना चाहिए। 

मेरी पत्नी करवा चौथ करती है। मुझे सुबह चाय देती है, नाश्ता देती है। तैयार हो कर दफ्तर के काम करती है। देर रात घर आकर विधि विधान से पूजा करती है। मेरी शादी के 25 साल हो गये, मैंने कभी उसे करवा चौथ के नाम पर काम से छुट्टी लेते नहीं देखा है। 

पर आजकल की लड़कियों ने तो कमाल ही किया हुआ है। सबके सब करवा चौथ मना रही हैं, डंके की चोट पर छुट्टी माँग रही हैं और मैं कुछ नहीं कर सकता। इस देश में धर्म, आस्था के नाम पर कोई कुछ भी कर सकता है। मैं अगर ज्यादा विरोध करूँगा कि तुम छुट्टी मत लो, तो सारे लोग मुझ पर ही पिल पड़ेंगे कि मैं लोगों की आस्था की भी परवाह नहीं करता। 

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मैंने सोच लिया है कि अगली बार नौकरी के लिए किसी का इंटरव्यू लूँगा तो पहले पूछ लूँगा, कागज पर लिखवा लूँगा कि कौन-कौन से त्योहार पर छुट्टी लेनी है, क्योंकि टीवी चैनल तो चौबीस घंटे सातों दिन चलते हैं। मैं यह कह कर चैनल तो नहीं बंद कर सकता न कि आज करवा चौथ पर मेरी सारी एंकर छुट्टी पर हैं, प्लीज आज बिना एंकर के बुलेटिन देखिए।   

(देश मंथन, 30 अक्तूबर 2015)

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