साड़ी नहीं पौधे माँगें

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

“माँ, ये लाल वाला लहंगा मेरी शादी के लिए खरीद लो।”

एक छोटी सी बच्ची अपनी माँ से गुहार लगा रही थी कि उसे अपनी शादी में लाल लहंगा ही पहनना है। शादी… लड़कियों के लिए एक ऐसा शब्द है जो बचपन से उनके जेहन में कुछ तरह बैठ जाता है कि उनकी जिन्दगी में इससे बढ़ कर कुछ और होता ही नहीं। सफेद घोड़ा, राजकुमार, वो परी लोक की राजकुमारी, ये सारे शब्द शादी से कुछ इस तरह जुड़ गये हैं कि लड़कियाँ असली विवाह से बहुत पहले मन ही मन न जाने कितनी बार कितने राजकुमारों से विवाह कर चुकी होती हैं। 

मेरी फुफेरी बहन तो दस साल की उम्र से अपने लिए साड़ियाँ जमा करनी शुरू कर दी थीं कि वो उन्हें शादी के बाद पहनेंगी। एक बार अपनी बनारस यात्रा पर वो बुआ के पीछे पड़ गयी थीं कि उसे हरे रंग की बनारसी साड़ी चाहिए ही चाहिए। 

बुआ ने बेटी को बहुत समझाया था कि बाद में खरीद दूँगी। पर बहन नहीं मानी। वो उस दुकान के बाहर ही जमीन पर बैठ गयी थी कि साड़ी खरीदनी ही है। बुआ ने पूछा था कि तुम साड़ी कहाँ पहनोगी, तो बहन ने बहुत भोली सूरत बना कर कहा था कि अपनी शादी पर। 

सब हँस पड़े थे। पर ये मनोविज्ञान था, उस छोटी सी लड़की का। उसके जेहन में शादी इस तरह रची-बसी थी कि गुड्डा-गुड़िया खेलने की उम्र में भी उसे अपनी शादी और शादी के लिए जुटाए जाने वाले साज-ओ-समान की चिंता पड़ी थी। 

खैर, आज मैं आपके लिए जो कहनी लेकर आया हूँ, वो मेरे पास दो दिन पहले बतौर खबर दिखाने के लिए आयी थी। 

कहानी मध्य प्रदेश में भिंड जिले के किशीपुरा गाँव की प्रियंका की है। 

वैसे, मैं अपनी आज की कहानी बीच में रोक कर चाहूँगा कि मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में रहने वाले Ganore Yogesh को एक बार मेरी आज की पोस्ट को पढ़ कर सुकून की साँस लेनी चाहिए कि कहीं कोई है, जो उनकी तपस्या का अलख जगाए हुए है। आपको पहले भी मैं बता चुका हूँ कि योगेश गनोरे जी एक ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने पर्यावरण की रक्षा के लिए देश में अपनी तरह की अलग ही मुहिम छेड़ रखी है। उन्होंने कदम संस्था के जरिए पिछले कई वर्षों से हर रोज एक पौधा लगाने का संकल्प ले रखा है। उनका संकल्प आज देश में एक अनूठा मिशन बन चुका है। न जाने कितने लोग उनके इस मिशन में उनके साथ जुड़ चुके हैं। 

सुबह के दस बजते हैं, गनोरे साहब का पौधा धरती माँ की गोद में खिल जाता है। 

आज मैं विशेष रूप से गनोरे साहब को बताना चाहता हूँ कि उन्हीं के राज्य में एक बेटी ने अपनी शादी में लाल लहंगे, हरी बनारसी साड़ी की जगह ससुराल वालों के आगे एक ऐसी माँग रख दी कि मुझ जैसे पत्रकार का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। मैं, संजय सिन्हा हर सुबह एक ऐसी कहानी तलाशता हूँ, जिसे पढ़-सुन कर दिन बन जाए। मेरा यकीन कीजिए, जब मेरे पास ये कहानी आयी तो मुझे लगा कि मैं सीधे-सीधे उस लड़की को फोन करके कह दूँ कि बहन, प्रणाम है तुम्हें और तुम्हारी सोच को। 

अब सुनिए पूरी कहानी। 

प्रियंका की शादी तय हुई पास के ही गाँव के रवि चौहान से। वहाँ शादी पर परंपरा है कि लड़के वाले लड़की से पूछते हैं कि उसे शादी पर क्या-क्या गहने, कपड़े चाहिए? प्रियंका ने अपने सास-ससुर की मौजूदगी में अपने होने वाले पति के आगे एक इच्छा रख दी कि उसे शादी पर उनकी ओर से कुछ भी नहीं चाहिए, बस इतना चाहिए कि लड़का दस हजार पौधे रोप कर आये। 

बहुत अजीब सी इच्छा थी। 

लड़की के घर वाले तो घबरा गये। पर लड़का समझदार निकला। उसे अपनी होने वाली पत्नी की ये बात बहुत अच्छी लगी। उसने प्रियंका से वादा किया कि वो उसकी ये मुराद जरूर पूरी करेगा। पाँच हजार पौधे वो लड़की के इलाके में लगाएगा, पाँच हजार पौधे अपने इलाके में। 

***

दो दिन पहले दोनों ने फेरे लिए। 

शादी के सात वादों में कि सुख में, दुख में, हर परिस्थिथि में हम एक-दूसरे का साथ निभाएँगे के साथ एक वादा ये भी लिया गया कि लड़का दस हजार पौधे लगाएगा। पौधे अपनी पत्नी की मुराद पूरी करने के लिए। मुराद हरा-भरा गाँव, हरा-भरा राज्य, हरा-भरा देश को देखने की। 

मेरी बुआ की बेटी अब बड़ी हो गयी है। उसकी शादी भी हो चुकी है। मैं जब भी उससे मिलता हूँ तो हम हँसते हैं कि दस साल की उम्र में वो कैसे बनारस की गलियों में दुकान के आगे जमीन पर बैठ गयी थी कि शादी के लिए बनारसी साड़ी खरीदनी ही पड़ेगी। 

सोचता हूँ कि यह पोस्ट आज उन्हें अलग से भेज दूँ कि अगर वो भी सौ-दो सौ पौधों के लिए अड़ गयी होतीं, तो आज उनका गाँव भी हरा-भरा होता। वहाँ पानी होता। शीतल हवा चल रही होती। अब तक वो पौधे विशाल वृक्ष बन गये होते और सावन में वो उन पेड़ों में झूले लगा कर जिन्दगी का आनंद लूट रही होतीं। 

वो हरी साड़ी पता नहीं अब उनके पास होगी या नहीं, पर हरे-हरे पेड़ तो होते, सदा के लिए।  

(देश मंथन, 29 अप्रैल 2016)

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