आत्मा का नुकसान

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

अभी-अभी पटना के लिए उड़ना है। फिलहाल एयरपोर्ट पर बैठा हूँ। पहले से तय करके आया था कि आज एयरपोर्ट पर बैठ कर कॉफी के साथ कहानी लिखूँगा। सोचा तो यह भी था कि आज प्यार और जलन की कहानी लिखूँगा। लिखूँगा कि जैसे हम जानते हैं कि हमें किससे प्यार करना है, उसी तरह हमें यह जानना चाहिए कि हमें किससे जलना चाहिए। 

पर ऐसा होता नहीं। हम स्वाभाविक मानवीय प्रवृति कह कर जलन की आदत को नजरअंदाज कर देते हैं। पर कॉफी वाले को पैसे देते हुए मैं समझ गया कि यह कहानी आज नहीं लिखी जा सकती। 

वजह? 

वजह बस ये कि अभी कॉफी वाला किसी ग्राहक से झगड़ रहा था कि उसे जो पैसे दिए गये, वो नोट नकली था। 

ग्राहक कह रहा था कि नोट उसने नहीं छापे। 

जाहिर है उसने नहीं छापे। पर जब कभी कोई ऐसी स्थिति में फंस जाए तो क्या करे? 

***

कुछ दिन पहले मेरा बेटा बंगलुरू गया हुआ था। वहाँ से उसने मुझे फोन कर बताया कि किसी ऑटो वाले ने उसे सौ रुपये के चेंज के बदले बीस-बीस रुपये के दो नोट नकली पकड़ा दिये। वो असली और नकली नोट में फर्क नहीं कर पाया और जब एक रेस्तराँ में खाने गया, तो रेस्तराँ वाले ने उसे बताया कि ये नोट असली नहीं। जब वो बंगलुरू से वापस दिल्ली आया, तो मैंने उससे दोनों नोट ले लिए। मैंने बहुत गौर से देखा, सचमुच पहचान पाना मुश्किल ही था। मैंने उससे कहा कि मैं इन्हें कहीं चला लूँगा।

बेटे ने कहा कि तुम ये नोट मत चलाना।

मैंने कहा, “लेकिन बेटा यह तो चालीस रुपये का नुकसान है।”

बेटे ने कहा, “जब पता चल गया है कि ये नकली हैं, तो इन्हें चलाना गलत है।”

मैंने कहा, “हाँ, है तो यह गैरकानूनी। लेकिन जिसे धोखे से किसी ने पकड़ा दिया, वो क्या करे?”

***

मुझे रोकते हुए बेटे ने मुझे हमारे अमेरिका प्रवास की एक घटना की याद दिलायी। उसने मुझे याद दिलाया कि जिन दिनों हम अमेरिका में थे, 11 सितंबर 2001 की सुबह न्यूयार्क में ट्वीन टावर पर आतंकवादी हमला हुआ था। यह हमला दो विमानों के जरिए हुआ था। उन दो विमानों के अलावा दो और विमान थे, जिनसे दूसरी जगह हमला करने की कोशिश की गयी थी। बेटे ने मुझसे कहा कि पापा, तुम याद करो, वहाँ की सरकार ने उस हमले के बाद अमेरिका के आसमान में उड़ रहे सभी विमानों को तुरंत नजदीकी हवाई अड्डे पर उतरवा लिया था। उस दिन सुबह नौ बजे के बाद अमेरिकी आसमान में एक भी विमान नहीं था। सारी फ्लाइट रोक दी गई थीं। उस दिन किसी को आसमान के रास्ते अमेरिका नहीं आने दिया गया था। जो किसी और देश से अमेरिका आ रहे थे और ऊपर आसमान में थे, उनके विमान को दूसरे देश में विमान उतारने का संदेश भेज दिया गया था और आसमान पूरी तरह खाली करा लिया गया था।” 

ऐसा ही हुआ था।

बेटा बता रहा था कि जब यह घटना घटी थी, तब वो बहुत छोटा था। वो पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था। उसके मन में यह सवाल उठा था कि पूरा आसमान क्यों खाली करा लिया गया? उसने वहाँ अपने स्कूल में टीचर से यह सवाल पूछा था। टीचर ने उसे बताया था कि जब न्यूयार्क में प्लेन से हमला हुआ, तो किसी को पता नहीं था कि आसमान में कितने विमान ऐसे हैं, जिनमें आतंकवादी सवार हैं। ऐसे में सबसे अच्छा फैसला यही था कि बिना फायदा-नुकसान, अच्छा-बुरा सोचे पूरे आसमान को पहले खाली करा लिया जाए और फिर ठीक से सारी जाँच के बाद विमानों को उड़ने की इजाजत दी जाए। 

बेटे ने टीचर से यह भी पूछा था कि इस तरह तो बहुत से लोगों को काफी नुकसान हुआ होगा, तो टीचर ने उसे बताया था कि देश हित से बढ़ कर कुछ नहीं होता। 

***

बीस-बीस रुपये के दो नकली नोटों की कीमत तो कुछ भी नहीं है। पर वो मुझसे कह रहा था कि ये नोट चल ही इसलिए रहे हैं क्योंकि जिसे यह मिलते हैं, वो इनसे पिंड छुड़ाने के लिए कहीं न कहीं इन्हें फिर चला देता है। मुझे पूरी आशंका है कि उस ऑटो वाले को भी पता रहा होगा कि ये नोट नकली हैं। उसने मुझे बच्चा समझ कर इन नोटों को पकड़ा दिया। मुझे नहीं पता था कि ये नोट नकली हैं। मैंने कभी नकली नोट देखे ही नहीं…। लेकिन जैसे ही मुझे पता चला कि ये नोट नकली हैं, मैंने तय कर लिया कि अब इन्हें आगे नहीं बढ़ाना है, चाहे मेरा नुकसान भी हो। ये तो बात चालीस रुपये की है। अगर ये चार सौ रुपये भी होते, चार हजार या उससे भी ज्यादा रुपये होते तो मैं उस घाटे को सह लेता, मैं यह समझ लेता कि किसी ने मुझसे छल कर लिया है, पर मैं उसे आगे नहीं चलाता। 

अगर हम सभी यह सोच लें कि जैसे अमेरिका ने बिना कुछ और सोचे हुए पूरे आसमान को खाली करा लिया था, वैसे ही हम में से हर आदमी जिसे नकली नोट से तकलीफ होती है, वो इसका प्रचलन अपने स्तर पर रोक ले, तो ये नोट ज्यादा नहीं चलेंगे। 

***

मेरी भी किस्मत अजीब है। बचपन में माँ सिखाया करती थी। फिर पिता सिखाया करते थे। और बड़ा हुआ तो बेटा सीखा रहा है। 

मुझे तो लगता है कि मैं बड़ा हुआ ही नहीं हूँ। लानत है मुझ पर कि मैं उन चालीस रुपयों को कहीं टिकाने के चक्कर में था। 

हजार बार मैं ही कह चुका हूँ कि धोखा देने से धोखा खाना बेहतर होता है। धोखा खाने में तो थोड़ा नुकसान होता है, पर धोखा देने में आदमी की आत्मा ही मर जाती है। पर जब अपने चालीस रुपयों की बात आयी तो सब ज्ञान भूल गया। मुझे मेरा बेटा समझा रहा था कि यह गलत है।

मैं इतनी ज्ञान की बातें करता हूँ और अपने बेटे से मैं ही कह रहा था कि चालीस रुपये मुझे दे दो, किसी को टिका दूंगा। 

बेटा कह रहा था कि ये तो चालीस रुपये हैं, बात चालीस लाख की भी हो, तो ऐसा नहीं सोचना। नकली नोटों से आसमान को खाली कराने का आसान उपाय यही है कि जिसे मिले फाड़ कर फेंक दे। उसे आगे चलाना एक अंतहीन बुराई को जन्म देने की तरह है। 

जिसने हमें धोखा दिया, उसका किया उसके साथ। हम पैसों का नुकसान सह लेंगे, पर आत्मा का नुकसान कैसे सहेंगे? 

(देश मंथन, 10 अक्तूबर 2015)

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