फेसबुक लिखाड़ों के सामने मँडराया खतरा!

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शिव ओम गुप्ता :

फेसबुक ने आम जन को भी एक लेखक बना दिया, जहाँ बगैर किसी अवरोध के हम अपनी मनपसंद भाषा और शैली में कुछ भी लिखने को आजाद थे और यह खतरा भी नहीं था कि कोई क्या कर लेगा? ज्यादा-से-ज्यादा लाइक नहीं करेगा। तो ना करे, उसका क्या?

कई-कई सेलिब्रिट्री और अच्छे-अच्छे लिखाड़ों की टाइमलाइन भी कभी-कभी लाइक को तरस जाती हैं। बावजूद इसके फेसबुक के लिखाड़ की इज्जत बची रहती है और वह अपनी टिप्पणी के बचाव में कुछ-न-कुछ तर्क-कुतर्क गढ़ ही लेता है, चाहे हजम हो या न हो!

पर अब फेसबुक एक ऐसा टूल विकसित करने की योजना बना रही है, जिससे कई लिखाड़ों का दिल टूट सकता है। यही नहीं, फेसबुक पर कुछ भी लिख कर ‘लाइक’ पाने का लालच अब उल्टे भारी पड़ सकता है।

कुछ भी हो, फेसबुक पर पोस्ट पढ़ी जाये या न पढ़ी जाये, लेकिन लोग-बाग लाइक का बटन दबा ही देते थे। फेसबुक की इस आभासी दुनिया ने कइयों को लेखक बना दिया। लेकिन बुरी खबर है कि अब लाइक पर खुश हो पाने के बदले डिस्लाइक भी झेलने पड़़ सकते हैं।

फेसबुक अब अपने यूजरों के लिए ‘डिस्लाइक’ बटन उपलब्ध कराने पर विचार कर रहा है, जिससे उन तमाम लिखाड़ों का दिल टूट कर चकनाचूर होने वाला है, जो लाइक के आदी हो चुके हैं। डिस्लाइक के खतरे से अभी से हाथ-पाँव फूल रहे हैं!

हालाँकि डिस्लाइक के खतरे से हम-आप ही नहीं, फेसबुक के जनक और सीईओ मार्क जुकरबर्ग को भी चिंता है। जुकरबर्ग का भी मानना है कि डिस्लाइक बटन से अब फेसबुक यूजर एक दूसरे को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ेंगे।

जी हाँ, अगर लाइक के लिए भारत के लोग कीनिया और अमेरिकी लोगों तक को बुला सकते हैं, तो किसी के टाइमलाइन को गंदा करने के लिए डिस्लाइक का कारोबार और भी तेजी से फलने-फूलने लगेगा।

कुछ भी हो, फेसबुक की कमाई तो तय है। जो लोग लाइक के लिए पैसे खर्च करते थे, वे अब डिस्लाइक पर भी पैसे खर्चेंगे और दूसरों की टाइमलाइन को डंपिग जोन में तब्दील करने की पूरी कोशिश करेंगे।

दरअसल, फेसबुक पर डिस्लाइक बटन की माग कई लोग काफी अरसे से कर रहे थे, जिससे जुकरबर्ग भी हैरान-परेशान होकर तैयार हो गये दीखते हैं। बकौल जुकरबर्ग, “लोग डिस्लाइक बटन की बहुत मांग कर रहे हैं, इसलिए कंपनी इस बात पर विचार कर रही है कि बिना किसी को नीचा दिखाये यूजर्स के फेसबुक पोस्ट पर निराशा दिखाने का क्या तरीका लाया जा सकता है?”

हालाँकि जुबरबर्ग के डिस्लाइक बटन पर राजी होने के पीछे कहानी दूसरी है, लेकिन इसके दुरूपयोग से भाई लोगों के सीने पर साँप जरूर लोटने लगे हैं कि अब कुछ भी नहीं? कॉपी भी नहीं चलेगा, कुछ दिमाग लगा कर लिखना पड़ेगा? कितनी विचित्र बात है!

वैसे, डिस्लाइक का कांसेप्ट के पीछे कुछ जेनरेस बातें है, जिसके मद्देनजर जुकरबर्ग डिस्लाइक बटन पर तैयार हुए है। यानी मौत, दुर्घटना, बीमारी जैसे दुखद घटनाओं और सूचनाओं वाले स्टेटस पर ऊहापोह को खत्म करने के लिए डिस्लाइक बटन वजूद में आ रहा है, ताकि लोग डिस्लाइक का बटन दबा कर दुख व्यक्त कर सकें और संवेदनाएँ जाहिर कर सकें।

फेसबुक पर किसी दुर्घटना की फोटो शेयर किये जाने पर भी लोगों को संवदेना में लाइक बटन दबाना पड़ता है, जो बहुत ही अटपटा दिखता है। लेकिन इसका खामियाजा उन लिखाड़ों से आहत होने वाली भावनाओं का क्या, जिन्हें लाइक के बदले अब डिस्लाइक का शिकार होना पड़ेगा! कितनों का दिल दुखेगा, कितनों की संवेदनाएँ आहत होंगी, यह भी सोच लीजिए जुकरबर्ग साब!

(देश मंथन, 13 दिसंबर 2014)

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