समय उसी का साथ देता है जो…

0
303

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

जिन दिनों हम अमेरिका में थे, हमें कई तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ा – एक से बढ़ कर एक हास्यास्पद घटनाओं से, एक से एक बढ़ कर संवेदनशील घटनाओं से और एक से एक बढ़ कर शिक्षाप्रद घटनाओें से। अपने संपर्क में आने वाले बहुत से लोगों को मैं एक घटना सुनाता हूँ। यह मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा है।

यह कोई प्रेरक कहानी नहीं है। यह एक सत्य घटना है, जिसे मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ। यह एक ऐसी घटना है, जिसने मुझे पहली बार यह समझाया था कि समय कितना अनमोल होता है।

आपने गांधी फिल्म देखी है? गांधी के जीवन की तमाम घटनाएँ अपने आप में शिक्षाप्रद हैं, लेकिन एक घटना मैं कभी नहीं भूलता।

गांधी से मिलने नेहरू, जिन्ना और तमाम बड़े नेता आये हुए हैं, बहुत गंभीर बातचीत चल रही है, बातचीत लंबी चलने लगती है। तभी गांधी अचानक उठते हैं और अपनी बकरी को चारा खिलाने लगते हैं। बाकी नेता हतप्रभ रह जाते हैं, कि बापू को यह क्या हो गया? देश की आजादी जैसे मसले पर इतनी गंभीर चर्चा चल रही है, चर्चा चल रही है कि कौन प्रधान मंत्री बनेगा, देश की आजादी के बाद नेहरू, जिन्ना में से किसका खानदान सत्ता का सुख भोगेगा और ये बापू बकरी को चारा खिला रहे हैं।

बापू की इस हरकत को फिल्म में सारे नेता हैरानी से कम, हिकारत से ज्यादा देखते हैं। बापू उनकी आंखों को ताड़ जाते हैं, और कहते हैं कि बकरी को तो नहीं पता न कि हमारी बैठक चल रही है, जो तय समय से ज्यादा लंबी चल गयी है। उसके तो खाने का समय हो गया है।

हुआ यह कि हमारे अमेरिका प्रवास में एक दिन मेरी पत्नी को दाँत में बहुत दर्द हुआ। बहुत दर्द मतलब असह्य दर्द।

हम लोगों ने फटाफट एक डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर ने फोन पर ही एक दवा बता दी, और उसने कहा कि यह दवा आपको किसी भी दवा की दुकान पर मिल जाएगी, इसे इमरजेंसी में खा लीजिए और फिर मुझे दिखला दीजिएगा। हमने पूछा कि कब दिखलाएँ, तो उसने महीने भर बाद का समय दे दिया।

हमने फोन पर डॉक्टर से कहा कि दर्द आज हो रहा है, और आप समय महीने भर बाद का दे रहे हैं? डॉक्टर ने कहा कि मेरे पास महीने से पहले के सारे समय बुक हैं, और दाँत दर्द से कोई मरता नहीं है। इमरजेंसी के लिए आपको दवा बता ही दी है। फिर भी आप महीने बाद दिखा लीजिएगा कि कुछ और तो नहीं है?

शुरू में तो हम बहुत खीझे। लेकिन दिखाना तो था ही।

महीने बाद वो तारीख भी आयी। तब तक दाँत का दर्द कम हो चुका था, लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था। जिस दिन हमें डॉक्टर के पास जाना था, उस रात हमारे शहर में खूब बर्फ गिरी। इतनी कि सारी सड़क बर्फ से ढक गयी। हालाँकि यह बड़ी बात नहीं थी, अमेरिका के डेनवर शहर में साल के आठ महीने बर्फ गिरती है। लेकिन उस रात ज्यादा ही बर्फ गिरी थी।

खैर सुबह-सुबह किसी तरह कार से बर्फ हटा कर, धीरे-धीरे कार चलाते हुए हम डॉक्टर के पास पहुँचे। उसने हमें सुबह के नौ बजे का समय दिया था। हम कोई सवा नौ बजे पहुँचे। डॉक्टर की पीए से मिले और उसे हमने बताया कि आज हमें डॉक्टर ने समय दिया है। उसने हमारा नाम पूछा, अपने कंप्यूटर में देखा और बताया कि डॉक्टर नहीं मिलेंगे।

मेरे मुँह से निकला, “डॉक्टर नहीं मिलेंगे, लेकिन क्यों? क्या बर्फ गिरने से डॉक्टर को आने में देर होगी?”

उसने कहा, “डॉक्टर तो आ चुके हैं, लेकिन अब वे किसी और मरीज के साथ हैं। आपका समय सुबह नौ बजे का था। आप समय पर नहीं आये तो उन्होंने दूसरे मरीज को देखना शुरू कर दिया।”

मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने उससे कहा कि महीने भर बाद समय मिला है, और उसमें भी आप नखरे कर रही हैं। मेरी तल्खी पर वह चुप हो गयी। उसे समझ में नहीं आया कि मैं उसकी बात क्यों नहीं समझ रहा? उसने मुझे बैठने का इशारा किया और कहा कि ठीक है, मैं डॉक्टर को बता देती हूँ।

कुछ देर बाद मुँह पर मास्क लगाये डा़क्टर बाहर आया।

मैंने डाक्टर को गुड मॉर्निंग कहा और बताया कि मेरा आपसे आज मिलना तय हुआ था। डॉक्टर ने मास्क हटाते हुए कहा कि लेकिन आपका समय तो सुबह के नौ बजे का था। आप नौ बजे नहीं आये।

मैंने कहा कि डॉक्टर साहब कल रात इतनी बर्फ गिरी है, इसलिए कुछ देर हो गयी।

मेरे इतना कहते ही डॉक्टर ने मास्क पहनते हुए कहा, “तो क्या? बर्फ तो मेरे लिए भी गिर रही थी। उन तमाम मरीजों के लिए भी गिर रही थी, जो समय पर आये। उसने अपनी अटेंडेंट को इशारा किया कि इन्हें आगे की कोई तारीख दे दीजिए।” और मास्क पहन कर भीतर चला गया।

दाँत दर्द की ऐसी की तैसी। बाद में कई दिनों बाद फिर डॉक्टर ने पत्नी के दाँत को देखा, इलाज किया। लेकिन मेरा इलाज तो उसी दिन हो गया था, जब उसने मुझसे कहा था कि तो क्या? बर्फ तो मेरे लिए भी गिर रही थी। बाकी मरीजों के लिए भी गिर रही थी, जो समय पर आये।

गांधी जी कह रहे थे कि बकरी को तो नहीं पता न कि हमारी बैठक तय समय से ज्यादा लंबी चल गयी है।

अमेरिका में डॉक्टर कह रहा था कि आप समय पर नहीं आये तो उसका क्या कसूर? बर्फ तो सबके लिए गिरी है, तो क्या किसी ने काम रोक दिया?

जब सब समय का पालन कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?

(देश मंथन, 26 अक्टूबर 2014)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें