आलोक पुराणिक :
मुझसे कोई पूछे कि ब्रह्मांड का सबसे मुश्किल काम क्या है-मैं कहूँगा -टच में रहना।
प्रगति मैदान दिल्ली में बुक फेयर में जाना हो रहा है, रोज वरिष्ठ साहित्यकार मिलते हैं।
एक वरिष्ठ ने कहा-टच में रहिये। वरिष्ठ साहित्यकार हैं वह।
फिर मैंने दो दिन बाद फोन किया-क्या हाल हैं जी। ठीक। टच में रहिये।
मैं टच में रहा, लगातार कई दिनों तक फोन करता रहा। वो ही एक सी बातचीत-कैसे हैं। ठीक हैं। टच में रहिये।
वो ही बोरिंग बातें। टच में रहने में तो मैं चट गया।
टच में रहना मुश्किल काम है। सबके बूते का नहीं है। बहुत ही झेलू टाइप के लोग होंगे, जो लगातार टच में रहते होंगे।
इस काम में सुना है, पब्लिक रिलेशन्स यानी पीआर वाले बहुत चतुर होते हैं, जिनके टच में रहना हो, उनके टच में बराबर रहते हैं। मैं भी पहले पत्रकार हुआ करता था। कई पीआर वालों के, विज्ञप्ति छपवाने वालों के फोन आते थे-हैप्पी बर्थडे, हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी। फिर जब पत्रकार नहीं रहा, तो उन्हे मेरी बर्थ डे और मैरिज एनीवर्सरी की चिंता खत्म हो गयी। जो अपनी खबरें नहीं छापे, उसकी शादी चल जाये तो क्या और ना चले, तो क्या।
पीआर वाले बताते हैं कि सबकी बर्थ डे और मैरिज एनीवर्सरी याद रखनी चाहिये। यह पीआर करने के लिए बहुत काम आते हैं। पर सबका मामला एक सा नहीं होता। एक बहुत सीनियर अफसर को मैंने बोला-हैप्पी बर्थ डे। वह उल्टे मुझ पर फट पडा, बोला-जिस दिन से पैदा हुआ हूँ, प्राबलम हो गयी है। इस दुनिया में आना बहुत बड़ा टेंशन है। ना आते, तो बढ़िया था और आप इस दिन को हैप्पी बर्थ डे बोल रहे हैं।
एक महिला अफसर को मैंने हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी बोला, तो वह गुस्सा हो गयीं। कहने लगीं-मेरी मैरिज का डे मेरी लाइफ का सबसे अभागा दिन था। मैंने लव मैरिज की थी, नौकरी मिलने से पहले ही। नौकरी से पहले मैंने और मेरे बायफ्रेंड दोनों ने सिविल सर्विसेज के इम्तहान दिये। मैं आईएएस मैं आ गयी, मेरे हजबैंड आईएएस में ना आ पाये। वह डाक सेवा में आ गये। अब वो मेरे लेवल के नहीं लगते। अपने सर्किल में सब मुझ पर हँसते हैं। वैरी बैड मैरिज एनीवर्सरी।
फिर इस खाकसार को पता चला कि हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी बोलना भी घणा टेंशन वाला काम है। पहले तफतीश करनी चाहिए कि मैरिज सही चल रही है या नहीं। मैरिज में झोल चल रहा हो और आप कहे जा रहे हैं कि हैप्पी एनीवर्सरी। मामला उलटा पड़ जाता है। मतलब हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी बोलने से पहले बंदा जासूस करमचंद हो जाये। हरेक की मैरिज का हिसाब किताब रखे।
टच में रहना मुश्किल काम है, बंदे को जासूस करमचंद तक होना पड़ता है।
दीवाली के बहाने पीआर करने के लिए मैंने एक सज्जन को शाम को हैप्पी दीवाली बोली। तो वह उखड़ गये और बोले, सुबह से जुआ खेल रहा हूँ। अब बनियान तक हार गया हूँ। काहे की हैप्पी दीवाली।
हम तो जी चट लिये टच में रहने के चक्कर में। बुक-फेयरियों, साल में एक बार प्रगति मैदान में मिल लें, बहुत है।
(देश मंथन, 19 फरवरी 2015)