विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हमारी टैक्सी मणिपुरी शाल के कस्बे तुपुल को पार करती हुई नोनी पहुँची। यहाँ भी चेकपोस्ट था। नोनी नुंगबा तहसील का एक छोटा सा गाँव है। जाँच औपचारिकताओं के बाद हम आगे बढ़े। 110 किलोमीटर की दूरी पर आया खोंगसांग नामक गाँव। यहाँ से एक रास्ता तामेंगलांग के लिए जा रहा था।
स्थानीय महिलाएँ सड़कों के किनारे संतरे बेच रही थीं। तामेंगलांग मणिपुर के नौ जिलों में से एक जिला है, जिसे प्रकृति ने अद्भुत सौंदर्य से संवारा है। एक ऐसा जिला जहाँ सैलानियों की नजर कम पड़ी है। ये मणिपुर का पूर्ण जनजातीय जिला है। यहाँ पाँच तरह की नागा और कूकी जनजातियाँ बसती हैं। बल खाती बराक नदी की सुरम्य घाटियां, घने जंगल, पहाड़, झरने,संतरे, हल्दी और दूसरे वनोत्पाद तामेंगलांग की खासियत है। जिले के 40% हिस्से में संतरे की खेती होती है। दूर-दूर तक संतरे के बगान नजर आते हैं। पूरे मणिपुर का 80% संतरा तामेंगलांग जिले में उत्पादित होता है। इसलिए इसे मणिपुर के संतरे का कटोरा कहा जाता है। जिले का अधिकतम तापमान 30 डिग्री और न्यूनतम 4 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है जो संतरे के लिए आदर्श है।
हर साल दिसंबर महीने में जिला मुख्यालय में आरेंज फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। इस मेले में बेहतरीन संतरा उत्पादन करने वाले किसानों को पुरस्कृत भी किया जाता है। इस मेले में जिले के 200 से ज्यादा संतरा उत्पादक किसान हिस्सा लेते हैं।जिले किसानों को आर्गेनिक फार्मिंग का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकार की संस्था मणिपुर स्माल फारमर एग्रो बिजनेस कांसोरटियम किसानों को प्रशिक्षण और उनके उत्पादों की मार्केटिंग में मदद के सिलसिले में काम कर रही है। मणिपुर के अलावा संतरे की बड़े पैमाने पर खेती मेघालय में भी होती है, पर इस क्षेत्र के उत्पादित संतरों की मार्केटिंग बड़े पैमाने पर नहीं हो पा रही है। हाईवे की हालत सुधरने और रेल नेटवर्क के बाद तामेंगलांग के संतरे के भी दिन बहुरेंगे। खोंगसांग से हमारी गाड़ी आगे बढ़ी। बराकनदी पर पुल आया जो काफी जर्जर हाल में था। सभी यात्रियों को उतरना पड़ा। गाड़ी लकड़ी के पुल पर धीरे-धीर आगे बढ़ी। यहाँ नये स्थायी पुल का निर्माण कार्य जारी है।
(देश मंथन 09 फरवरी 2016)