शक्ल और रिजल्ट एक ही

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 संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

 

एक कहानी तीन दिनों से अटकी पड़ी है। सोच रहा हूँ कि आज नहीं लिखा तो फिर कहीं पुरानी ही न पड़ जाए। इसलिए आज मैं संसार के सात आश्चर्यों की कहानी को छोड़ कर उस सत्य को आपके सामने परोसने जा रहा हूँ, जो कल्पना से भी अधिक काल्पनिक है, जिसके विषय में आपका विज्ञान इत्तेफाक कह कर पल्ला झाड़ लेगा। पर मैं कैसे निकल सकता हूँ? मैं तो गवाह हूँ समय का, जब मैंने इस आश्चर्य किंतु विचित्र सत्य को अपनी आँखों से घटित होते हुए देखा है।

जिन दिनों मैं जी न्यूज में रिपोर्टर हुआ करता था, मेरी दोस्ती पुष्कर नाम के एक लड़के से हुई। दुबला-पतला लंबा सा पुष्कर। तब वो किसी और न्यूज एजंसी के लिए रिपोर्टिंग करता था। हम दोनों में खूब बनती थी। हम दोनों बाहर रिपोर्टिंग के दौरान मिलते, साथ-साथ रिपोर्टिंग करते।
मुझे लगता है कि पुष्कर मुझसे बड़ा रहा होगा, तभी मैंने उसे पुष्कर भैया बुलाना शुरू कर दिया था।
एक दिन पुष्कर भैया घर से मिठाई लेकर आये।
मैंने पूछा कि आज मिठाई किस खुशी में? भैया ने बताया कि जुड़वा बेटा हुआ है।
वाह! एक साथ दो-दो।
“यार, दो बच्चों का एक साथ होना बड़ी बात नहीं। दोनों एकदम सचमुच एक दूसरे की कॉपी हैं।”
पुष्कर भैया गीत-संगीत और सिनेमा प्रेमी व्यक्ति हैं। मैंने कहा कि ऐसे जुड़वाँ तो अब तक मैंने सिर्फ सिनेमा में सुने थे, आज सिनेमा ही सच हो गया।
पुष्कर भैया हँस दिये।
बहुत से लोगों को एक साथ दो या कभी-कभी तीन-चार बच्चों के माँ-बाप बनने का सौभाग्य एक बार में मिल जाता है। दो वाले तो मैंने अपने परिवार में भी देखे हैं। पर उसमें भी मैंने पाया है कि एक बच्चा गोरा हुआ, दूसरा साँवला हो गया। बड़ा होने पर एक पतला हुआ, दूसरा मोटा हो गया। एक राम बन गया, दूसरा श्याम बन गया। अगर लड़की हुई तो एक तेज तर्रार निकली और गीता कहलाई, दूसरी का नाम ही सीता इसलिए रखा गया कि वो सीता जैसी थी। मतलब राम और श्याम, सीता और गीता का उदाहरण भी मेरे सामने था, पर सिनेमा में।
पर मैं जो बताने जा रहा हूँ वो तो सत्य है। सिनेमा से भी बड़ा सत्य।
***
पुष्कर भैया के दोनों बेटे बड़े होने लगे। दोनों की शक्लें एकदम सेम टू सेम।
दोनों का एडमिशन दिल्ली पब्लिक स्कूल नोएडा में करवाया गया। दोनों नर्सरी कक्षा में जाते। ड्राइवर, टीचर सब परेशान रहते। कौन राम है और कौन श्याम दोनों की पहचान मुश्किल थी। मैं तो सौ बार मिला, पर मैं कभी नहीं पहचान पाया। मुझे हैरानी है कि माँ कैसे पहचानती होगी। जरूर कोई न कोई निशान उनकी हथेलियों पर लगा कर रखती होगी।
खैर, नर्सरी से निकलते-निकलते एक बच्चे को चश्मा लग गया।
दूसरे की आँख जाँच कराई गई तो उसे भी चश्मा लग गया। नंबर सेम टू सेम। पर एक फायदा हो गया कि दोनों के फ्रेम अलग किए गये, ताकि पहचान में आएं। पर बच्चे भी अब तक समझ गये थे कि उन्हें लेकर ऑप्टिलक इल्युजन की गुंजाइश है, और जब दोनों को ऐसा कन्फ्यूजन क्रिएट करना होता, वो अपना चश्मा बदल कर हमें छका लेते थे।
मैं जानता हूँ कि यह सब बहुत कॉमन बातें हैं। जुड़वाँ के मामलों में ऐसा बहुत बार देखा गया है।
जब सब देखा ही गया है तो फिर संजय सिन्हा कहानी क्यों लिख रहे हैं?
मैं कहानी इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मैंने सुना था कि जब उन्होंने दसवीं बोर्ड की परीक्षा दी, तो दोनों के नंबर भी एक जैसे आए। मतलब सेम टू सेम।
मुझे लगा कि यह इत्तेफाक है। विज्ञान के पास ऐसे इत्तेफाकों की कई कहानियाँ हैं।
पर पिछले हफ्ते जब बारहवीं परीक्षा के नतीजे आए, तो सिर्फ मैं ही नहीं जिसने सुना उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
ओ बेटा! दोनों को बारहवीं की परीक्षा में भी सेम टू सेम नंबर मिले। दोनों को 95.75% मार्क्स मिले हैं।
स्कूल में तो मुझे लगता था कि टीचर खुश करने के लिए एकाध नंबर आगे पीछे करके एक जैसे कर देती होगी। पर दसवीं और बारहवीं बोर्ड वाले तो नहीं जानते थे कि दोनों जुड़वाँ हैं। पर साहब मेरा यकीन कीजिए कि दोनों को एकदम एक जैसे मार्क्स मिले तो खुशी के साथ-साथ बहुत हैरानी भी हो रही है।
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पुष्कर भैया के जुड़वाँ बेटों में से एक का नाम है प्रखर और दूसरे का शिखर। दोनों की दसवीं के नतीजे एक हैं, बारहवीं के एक हैं। शक्ल एक होने की कहानी तो सुनी थी। पर रिजल्ट एक होने की इन्हीं के मामले में सुना हूँ। किसी के पास इसका जवाब हो तो जरूर दे कि क्या ये इत्तेफाक है बस? 
(देश मंथन, 27 मई 2016)

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