जब महादेव ने की चाकरी – उगना महादेव

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

महादेव यानी शिव का अदभुत मन्दिर है मधुबनी जिले के भवानीपुर गाँव में। उगना महादेव या उग्रनाथ मन्दिर के नाम से यह मन्दिर प्रसिद्ध है। कहा जाता है यहाँ भगवान शिव ने मैथिली के महाकवि विद्यापति की चाकरी की थी।

विद्यापति के रचित पद्य यानी कविताएँ शिव को इतनी पसन्द आयीं कि उन्हें सुनने के लिए वे विद्यापति के यहाँ अपना नाम और रुप बदल कर नौकर के रूप में काम करने लगे।

उगना महादेव के मन्दिर के गर्भ गृह में जाने के लिए छह सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। ठीक उसी तरह जैसे उज्जैन के महाकाल मन्दिर में शिवलिंग तक पहुँचने के लिए छह सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती है। उगना महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये आपरूपी प्रकट हुआ शिवलिंग है। यहाँ शिवलिंग आधार तल से पाँच फीट नीचे है। यह मिथिला क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध शिव मन्दिर है। मन्दिर के आसपास का वातावरण अत्यंत मनोरम है। मन्दिर परिसर का भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है। माघ कृष्ण पक्ष में आने वाला नर्क निवारण चतुर्दशी मन्दिर का प्रमुख त्योहार है।

उगना महादेव मन्दिर में शिवलिंगम। 

वर्तमान उगना महादेव मन्दिर 1932 का बनाया हुआ बताया जाता है। कहा जाता है कि 1934 के भूकंप में मन्दिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। अब मन्दिर का परिसर काफी भव्य बन गया है। मुख्य मन्दिर के अलावा परिसर में यज्ञशाला और संस्कारशाला बनायी गयी है। मन्दिर के सामने के सुन्दर सरोवर है। इसके पास ही एक कुआँ है। इस कुएँ के बारे में कहा जाता है कि शिव ने यहीं से पानी निकाला था। काफी श्रद्धालु इस कुएँ का पानी पीने के लिए यहाँ आते हैं।

भवानीपुर गाँव की आबादी छह हजार है। यहाँ कई जातियों के लोग रहते हैं। गाँव में समरसता का माहौल है। गाँव मधुबनी विधानसभा क्षेत्र में आता है। गाँव में 1954 का बना हाई स्कूल है। गाँव में सड़कें अच्छी हैं। मन्दिर पास एक छोटा सा बाजार है। जहाँ खाने-पीने के लिए मिल जाता है।

कैसे पहुँचे 

दरभंगा से सकरी होकर मधुबनी जाने वाली रेलवे लाइन पर उगना हाल्ट पड़ता है। यहाँ से उगना महादेव मन्दिर की दूरी करीब दो किलोमीटर है। बस से दरभंगा से सकरी होते हुए पंडौल पहुँचे। पंडौल से एक किलोमीटर पहले ब्रहमोतरा गाँव भवानीपुर की दूरी 4 किलोमीटर है। पैदल या फिर निजी वाहन से जा सकते हैं।

उगना महादेव की कथा 

मन्दिर क पुजारी नारायण ठाकुर और उनके बेटे मुरारी ठाकुर उगना महादेव की कथा सुनाते हैं। 1352 में जन्मे विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों मे से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं।  वह तुलसी, सूर, कबूर, मीरा सभी से पहले के कवि हैं। महाकवि विद्यापति का जन्म वर्तमान मधुबनी जनपद के बिसफी नामक गाँव में एक सभ्रान्त मैथिल ब्राह्मण गणपति ठाकुर के घर हुआ था। बाद में यशस्वी राजा शिव सिंह ने यह गाँव विद्यापति को दानस्वरुप दे दिया था। इनके पिता गणपति ठाकुर मिथिला नरेश शिव सिंह के दरबार में सभासद थे।

शिव सिंह का राजघराना सकरी के पास राघोपुर में था। विद्यापति के पदों में यत्र-तत्र राजा शिव सिंह एवँ रानी लखमा देई का उल्लेख आता है। महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने महेशवानी और नचारी के नाम से शिव भक्ति पर अनेक गीतों की रचना की। महेशबानी में शिव के परिवार के सदस्यों का वर्णन, महादेव भगवान शंकर का फक्कड़ स्वरूप, दुनिया के लिए दानी, अपने लिए भिखारी का वेष, भूत-प्रेत, नाग, बसहा बैल का एक जगह समन्वय, चिता का भष्म शरीर में लपेटना, भांग-धतूरा पीना आदि शामिल है। 

नचारी में एक भक्त भगवान शिव के समक्ष अपनी विवशता या दुख नाचकर या लाचार होकर सुनाता है।

कहा जाता है कि विद्यापति की भक्ति और रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव एक दिन वेष बदलकर उनके घर आ गये। शिव जी ने अपना नाम उगना बताया। शिव सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। 

तेज गर्मी के वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। लेकिन आस-पास जलस्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबन्ध करो। भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगा जल भर लाये। विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा, पर सोचा इस वन में यह जल कहाँ से आया। कवि विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना स्वयँ भगवान शिव हैं। जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिए तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। शिव ने विद्यापति को दर्शन दिए पर कहा कि कभी किसी से मेरा वास्तविक परिचय मत बताना।

एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कोई काम दिया। उगना उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा। सुशीला इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकाल कर लगी शिव जी की पिटाई करने। विद्यापति ने जब यह दृश्य देख तो अनायास ही उनके मुँह से निकल पड़ा ‘ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें मार रही हो।’ फिर क्या था, विद्यापति के मुँह से यह शब्द निकलते ही शिव वहाँ से अर्न्तध्यान हो गये। इसके बाद कवि घोर पश्चाताप में खो गये। खाना-पीना सभी छोड़कर उगना, उगना, उगना रट लगाने लगे। उस समय भी महाकवि ने एक  गीत लिखा- उगना रे मोर कतय गेलाह। कतए गेलाह शिब किदहुँ भेलाह।। जब महादेव ने की चाकरी – उगना महादेव

(देश मंथन, 14  जुलाई 2015)

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