राकेश उपाध्याय, पत्रकार :
जिंदगी में अमृतत्व पाने की ये सबसे लंबी छलाँग है। जीवन की अनंत यात्रा से हमेशा के लिए पार उतरने के आकांक्षियों के सैलाब की ये सबसे गहरी डुबकी है। हजारों सालों से इसी तरह कुंभ में अमृत की दो बूंद पाने खिंचा चला आता है सनातन समाज शिप्रा किनारे बसी महाकाल की मोक्षदायिनी नगरी उज्जैन।
भारत की सनातन अविनाशी जीवन यात्रा पर महाकाल की मुहर का प्रतीक है ये सिंहस्थ का महाकुंभ, जहाँ जिंदगी के सारे रंग एक साथ जुटते हैं…वीतरागी, बैरागी, साधु-संत-महात्मा, ब्रह्मचारी और गृहस्थों की अपरम्पार भीड़। जिंदगी के माया-मोह से पार हो चुके इन हजारों नागा साधुओँ की संत मडली को देखिए। तन पर कपड़े नहीं है, सर्दी-गर्मी समेत इंद्रियों की उछल-कूद के हर वेग को मात देकर हमेशा गाता-गुनगुनाता है इनका निर्विकारी संसार।
नाचते-गाते नागा साधुओं की भीड़ हर हर महादेव की हुंकार भर कर कूद रही है पवित्र शिप्रा की धारा में तो जैसे जिंदगी का आनंद सागर लहराता है। संदेश नजर आता है कि जीवन में जो सब कुछ छोड़ कर आगे बढ़ते हैं, अनंत सुखों का साम्राज्य उन्हीं के मन-आंगन में डेरा बनाता है। दुनिया की सारी संपदा इनके चरणों में भी आ कर कुम्हला जाती है। शरीर बंधन में फँसी आत्मा की मुक्ति के इस रास्ते में चलने का सौभाग्य कुबेर के बस में भी नहीं। जो सब कुछ छोड़ कर जीते हैं वहीं है इस शरीर के असली राजा, इसीलिए यही महापर्व जिंदगी का असल शाही स्नान है, जिसे पाने के लिए राजाओं-महाराजाओं को कई जन्म लग जाते हैं, लेकिन अपने मन और जीवन का शहंशाह बनने की कामना कभी पूरी नहीं हो पाती।
सांसारिक जीवन से मुख मोड़ चुका ये केसरिया धारी जूना अखाड़े के संतों का सैलाब है….। 13 अखाड़ों के लाखों साधुओँ में सबसे पहले शाही स्नान का अधिकार नागाओं और जूना अखाड़े के साधुओं को मिलता है। सो सिंहस्थ कुंभ में शिप्रा में विधिवत स्नान की शुरुआत भी जूना अखाड़े के संतों ने की। फिर चल पड़े अखाड़ों के महामंडलेश्वर शाही स्नान करने तो शाही ठाटबाट से निकलता संतों का कारवाँ राजे-रजवाड़ों से ऊपर आत्मतत्व के अनन्त साम्राज्य के राजशाही ठाट की ओर इशारा देता है।
इसके पहले उषा की किरणों के साथ महाकालेश्वर मंदिर के कपाट खुले तो बाबा की झाँकी भी सिंहस्थ के जनसमुद्र को अपने करीब पा कर प्रफुल्लित हो उठी। एक तरफ महाकाल के गर्भ में भस्म आरती तो दूसरी ओर शिप्रा में महाकाल का कुंभ श्रृंगार। जीवन के स्नान श्रृंगार के बाद जब सब कुछ भस्मीभूत होगा, तभी मुक्ति के स्वर्ग साम्राज्य के मन-आंगन का पट खुलता है। दिन रात अड़भंगी शिव महाकाल बन कर यही तो संकेत करते हैं, इस जीवन का और क्या प्रयोजन?
गुरु के सिंह राशि में आने पर सिंहस्थ कुंभ लगता है, 22 अप्रैल को पहला शाही स्नान है तो 21 मई 2016 तक कुंभ पर्व का स्नान चलता रहेगा। कुंभ पर्व में शिप्रा नदी में स्नान के पीछे जन्म-जन्म के पाप मिटने की सदियों पुरानी मान्यता जुड़ी हुई है।
शिव की साधना करने वाले जीवन और मृत्यु के पार कैसे जीते हैं, जीवन को निष्पाप बना कर मानवता के कल्याण की कामना कैसे करते हैं….. हिंदू धर्म की आध्यात्मिक साधना के इसी जटाजूट जमघट से पूरे कुंभ पर्व में साक्षात्कार करने दुनिया भर से श्रद्धालुओं का तांता सिंहस्थ कुंभ में जुट चुका है। तो इस सैलाब का आनंद दर्शन करिए, इंद्रियों के सुख-दुख के पार जिंदगी के आनंद सागर में गोते लगाने की आत्मिक यात्रा के इस महापर्व का आनंद लीजिए तो शायद आपको इस छोटी सी जीवन यात्रा का मर्म समझ आने लगेगा।
(देश मंथन, 25 अप्रैल 2016)