रॉन्ग नंबर पर हैप्पी वैलेंटाइन डे

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

“हैलो रोमियो। आज वैलेंटाइन डे है, प्यार करने की तारीख। तुमने मुझे अभी तक विश नहीं किया। दुनिया तुम्हें प्यार के मसीहा के रूप में जानती है, और तुम इस वक्त सो रहे हो।” 

“ओह! जूलियट, तुम? हैप्पी वैंलेंटाइन डे। कैसी हो तुम? सुना कि तुम्हारा पति बड़ा खड़ूस है, और तुम उसके साथ खुश नहीं हो।”

“नहीं रोमियो, ऐसा नहीं है। वे तो बहुत अच्छे हैं। मेरा बहुत ध्यान रखते हैं।”

“आई एम सॉरी, जूलियट। मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। किसी ने मुझे बताया था कि मुझसे शादी न हो पाने के बाद तुम्हारे घर वालों ने अपने खानदान की आन-बान और शान के लिए जिससे तुम्हारा रिश्ता जो़ड़ दिया, उसके साथ तुम खुश नहीं हो। पर मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। और बताओ, कैसी हो? बहुत दिनों के बाद याद किया। और करो भी क्यों? जिस प्यार को सारे संसार ने पकड़ कर कुचल दिया, उसे याद करने की भी दरकार क्या है? और मैं तो कुछ हूँ भी नहीं। एक बार तुम्हारे प्यार में क्या पड़ा, दुनिया ही ठहर गयी। तुम्हारी तो शादी हो गयीकहीं किसी कंपनी में सीईओ है न तुम्हारा पति?”

“छोड़ो न रोमियो। सुबह-सुबह कहाँ घर गृहस्थी की बातें ले बैठे। कई सौ साल बीत गये, तुमसे बात ही नहीं कर पायी। आज बहुत मुश्किल से मौका मिला, तो तुम्हें फोन करने बैठी। तुम बताओ, तुम्हारी पत्नी कैसी है? वह तो बहुत खूबसूरत होगीमुझसे भी ज्यादा, तभी तो तुम्हें मेरी याद नहीं आयी।”

“जूलियट बात ऐसी नहीं है कि मुझे तुम्हारी याद नहीं आयी। बात यह है कि मैं तुम्हें कभी भूला ही नहीं, और जिसे भूला नहीं, उसे याद क्या करना? यह ठीक है कि हम दोनों प्यार करते थे, लेकिन प्यार जितनी खुशी देता है, उससे कहीं अधिक दुख देता है।”

“रोमियो, तुम तो बहुत गंभीर बातें करने लगे हो। तुम ऐसे कैसे हो गये? तुम तो सारा दिन मस्ती करते थे, खुश रहा करते थे। तो क्या शादी के बाद हर रोमियो को ऐसा ही होना पड़ जाता है? नहीं रोमियो, तुम ऐसी बातें न करो। ये दुख की बातें तो बिल्कुल न करो। न जाने कितने दुखों से गुजरी हूँ मैं। मैंने तो आज तुम्हें याद ही किया है, बहुत से दुखों को भूल जाने के लिए।”

“जूलियट, चाहे कहो या न कहो। तुम खुश नहीं लग रही मुझे। और यही सच है। पर यह भी सच है कि तुम मेरी हो जाती तो भी इस बात की गारंटी नहीं है कि तुम खुश ही रहती, या मैं खुश रहता। प्रेम और शादी दो अलग-अलग चीजें हैं। दुख तो दोनों में हैं, लेकिन प्रेम में दुख बाहर से भीतर जाता है, जबकि शादी में भीतर से बाहर। प्रेम करने वालों को दुनिया दुख देती है, शादी करने वालों को उनका प्रेम दुख देता है। बहुत मुमकिन है कि हम दोनों मिल ही गये होते, हमारा विवाह हो ही गया होता तो शायद रोमियो-जूलियट का प्यार वह प्यार न होता, जिसे पूरा वेरोना शहर जानता है, पूरा संसार जानता है। यह सही है कि प्यार हमेशा दुखांत होता है, लेकिन उसका दुखांत होना ही उसकी खुशी है। उसी में उसकी संपूर्णता छिपी है। शादी में प्यार कहाँ होता है? शादी तो उम्मीदों की नाव पर किया जाने वाला एक सफर होता है, जिसमें यात्री को पार लगने की चाहत होती है, नाविक को धन पाने की। और जहाँ चाहत हो, वहाँ प्यार तो नहीं हो सकता न! होना ही नहीं चाहिए। प्रेम में सिर्फ देना होता है, शादी में लेना और देना होता है। जहाँ लेना और देना दोनों होता है, अहंकार होता है, शक होता है, झूठ होता है, आँसू होते हैं, नफरत होती है, ऊब होती हैऔर भी बहुत कुछ होता है। यही दुर्भाग्य है विवाह का। उम्मीदों की बलि पर चढ़ जाना ही विवाह होता है।

और प्यार? उसमें तो कोई उम्मीद नहीं होती। वहाँ अहंकार नहीं होता।”

“ओह रोमियो, तुम्हें सब पता है। एक औरत का सच तुम जानते हो। मेरी पीठ पर पड़ने वाले निशान तक का इल्म है तुम्हें। शक, अंहकार, प्रहार सब कुछ तुम जानते हो। हाँ रोमियो, यही सच है। शादी में ऊब होती है। तुम मुझे कितना समझते थे। अब मुझे कोई नहीं समझता।”

“नहीं जूलियट, ऐसा नहीं। तुम्हारे पति की तरह मैं भी किसी का पति हूँ। जिस तरह तुम उसकी पत्नी हो, उसी तरह कोई मेरी भी पत्नी है। जिस तरह तुम मेरी जूलियट थी, क्या पता मेरी पत्नी का भी कोई रोमियो रहा हो। मैं परिस्थितियों की गणना कर लेता हूँ। जब मैं अपनी पत्नी पर संदेह करता हूं, उसकी पीठ पर अपने हाथों से निशान गढ़ता हूँ, तो मैं यह समझ सकता हूं कि कहीं कोई मेरी जूलियट को भी इसी तरह कुचल रहा होगा। दरअसल मुझसे किसी ने तुम्हारी कहानी कही नहीं, न ये कहा कि तुम्हारा पति खूसट है, बस मैंने अपने दिल से तुम्हारे दिल का हाल लगाया।”

“तो क्या मेरी शादी तुमसे होती तो भी तुम मेरे पति की तरह ही होते?”

“हाँ, जूलियटप्रेमी अलग होता है, पति अलग। अगर सचमुच हमारी शादी हो ही जाती तो हम रोमियो-जूलियट नहीं कहलाते, हम मिस्टर शर्मा-मिसेज शर्मा,मिस्टर-मिसेज सिन्हा, मिस्टर-मिसेज चावला या कुछ और कहलाते। शादी होते ही हम एक दूसरे की उम्मीदों की नाव पर सवार हो जाते, और फिर प्यार बचता ही कहाँ? खाना, बच्चों को स्कूल पहुँचाना, घर की ईएमआई देना, कारोबार को बढ़ाना, बॉस की जी-हुजूरी करने के बाद तुम्हारे लिए मेरे पास और मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही कहाँ होता? एक रात होती, बस। रात में कोई प्यार सकता है क्या?”

“क्या तब तुम मुझे दमिश्क के मदरसे में पढ़ने वाली नाज्द की बेटी लैला की जो कहानी सुनाया करते थे, वह सब झूठ था? वह, जो मजनूं के प्यार के सागर में डूबी हुई थी। क्या लैला को उसके घर वालों ने कैद नहीं कर लिया था? क्या उसके प्यार में मजनूं मारा-मारा नहीं फिरने लगा था?”

वह कहानी भी सच थी, जूलियट। पता है न उसका क्या हुआ। बाद में बख्त नामक एक युवक से लैला की शादी हो गयी। जिस तरह प्यार हो जाता है न जूलियट, उसी तरह शादी भी हो जाती है। फिर मैंने सुना कि बख्त ने लैला को बहुत दुख दिया। शायद उसे छोड़ भी दिया। और सुना तो यह भी कि पति को छोड़ कर लैला मजनूं के पास चली गयी थी, लेकिन लैला की माँ ने उन्हें फिर जुदा कर दिया।”

“आगे क्या हुआ रोमियो?”

“फिर मजनूं की जुदाई के गम में एक दिन लैला ने बंद कमरे में दम तोड़ दिया। और जब मजनूं को यह खबर मिली तो उसका दम भी टूट गया।”

“ओह! कितनी दुखद कहानी है यह।”

मैंने सुना था कि तुम भी उस दिन मेरे प्यार में कोई दवा खा कर मर गयी थी। फिर मैंने भी उसी चर्च में तु्म्हारे पीछे जान देने की कोशिश की थी। पर मरे दोनों नहीं।

“प्यार की हर कहानी दुखद होती है जूलियट। जिसे किसी से प्यार हो जाता है, दुख ही उसका नसीब बन जाता है। वह प्यार चाहे शादी में बदले या जुदाई में, दुख ही प्यार है।”

“मेरे लिए कोई संदेश, रोमियो।”

“दुख को गले लगा लो। उम्मीदों को आजाद कर दो। ज़िंदगी जैसी है, उसे वैसे अपना लो। मर नहीं सकती, इसलिए जी लो। अपने रोमियो को भूल जाओ। लैला की कहानी सुन कर आँसू मत बहाओ।”

“और मेरे ऊपर होने वाले जुल्म का क्या?”

” मुझे अपने हिस्से का जुल्म सहना होगा, तुम्हें अपने हिस्से का। यह तुम्हारी सजा है, यह हमारी सजा है। यह प्यार करने की सजा है। यह प्यार करने का दुख है। और जिसमें दुख न हो, वह प्यार नहीं हो सकता।”

“मैंने तो सोचा था कि आज वैंलेटाइन डे पर तुम्हारा प्यार मुझे मिलेगा, पर तुमने तो और दिल को तोड़ दिया।”

“मैंने कहा न कि प्यार पाने का नाम होता ही नहीं। जिस दिन पाने की चाहत खत्म हो जाएगी, प्यार का पौधा पनपने लगेगा, क्या पता घर में ही पनप उठे। आखिर गोबर में भी तो कभी-कभी फूल खिल ही जाते हैं।”

“अच्छा-अच्छा सुनो रोमियो, मैं फोन रख रही हूँ, शायद वे घर लौट आये हैं। तुम अपना ख्याल रखना।”

***

“अरे आज आप जल्दी घर चले आये। कैसे? और यह फूलों का गुलदस्ता मेरे लिए?”

“अब सिर मत खाओ, जूलियट। एक तो सारे दिन मीटिंग करके थक गया, और आते ही तुम्हारे सवालों के जवाब दूँ। और हाँ, ये फूल मेरी सेक्रेट्री ने मुझे दिये हैं। कह रही थी कि आज वेंलेंटाइन डे है। देखो उसे कितना कुछ याद रहता हैएक तुम हो, सारा दिन किच-किच, किच-किच।”

***

अजी, किसका फोन था?

“पता नहीं रॉन्ग नंबर था।”

“हुँह! बड़ा जूलियट, जूलियट कर रहे थे। हैप्पी वैंलेंटाइन डे कह रहे थे, और अब कह रहे हैं कि रॉन्ग नंबर था। सुनो रोमियो, मुझे पसंद नहीं कि तुम इस तरह रॉन्ग नंबरों पर इतनी देर तक बातें किया करोये रॉन्ग नंबर वाली जूलियट बन कर मर्दों को फँसा लेती हैं। तुम दूर ही रहो ऐसी कॉल्स से।”

“ओके। अब नहीं करूँगा।”

(देश मंथन, 14 फरवरी 2015)

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