विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कांचीपुरम शहर के बिल्कुल मध्य में कामाक्षी देवी मंदिर के पास ही वामन मंदिर स्थित है। वैसे तो इस मंदिर का परिसर बहुत बड़ा नहीं पर यह कांचीपुरम के अनूठे मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान विष्णु की अदभुत प्रतिमा देखने को मिलती है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर जिस असुर महाबली को हराया था, उसी की याद में उनका नाम वामन पड़ा था।
वामन भगवान केमंदिर में भगवान वामन ( श्रीविष्णु) की पाँच मीटर ऊँची विशाल मूर्ति है। यह मूर्ति काले पत्थरों की बनी है। इसमें भगवान का एक चरण ऊपर के लोकों को नापते हुए ऊपर उठा हुआ है, जबकि दूसरा चरण राजा बलि के मस्तक पर है। जब आप इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुँचते हैं तो मंदिर के पुजारी एक बाँस में बहुत मोटी बत्ती अर्थात मशाल जला कर भगवान के श्रीमुख का दर्शन कराते हैं। विष्णु की इस तरह की मूर्ति और कहीं देखने को नहीं मिलती। मंदिर में प्रवेश के लिए 2 रुपये का दान का टिकट भी है। इसी मंदिर के समीप ही सुब्रह्मण्य मंदिर भी है, जिसमें स्वामी कार्तिकेय की भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है।
वामन अवतार की कथ
वामन अवतार भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार है। इसकी कथा श्रीमदभागवत पुराण में आती है। कथा में देवता दैत्यों से युद्ध में पराजित होने लगते हैं। शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या से दैत्यों को लगातार जीवित कर देते हैं। खुद को हारता देख इंद्र विष्णु की शरण में पहुँचते हैं। देवताओं के आग्रह पर वामन अवतारी श्रीहरि, राजा बलि के यहाँ भिक्षा माँगने पहुँच जाते हैं। ब्राह्मण बने श्रीविष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि माँगते हैं। राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्रीविष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते हैं। वामन रूप में भगवान एक पग में स्वर्ग और उर्ध्व लोकों को ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं । अब तीसरा पाँव रखने को कोई स्थान नहीं रह जाता है।
ऐसे में बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। ऐसे मे राजा बलि यदि अपना वचन नहीं निभाए तो अधर्म होगा। इसिलिए बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देता है और कहता है तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने ठीक वैसा ही करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश करते हैं। वहीं श्रीविष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, पातललोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार करते हैं ।
आधी कांची शिव की आधी विष्णु की
कांचीपुरम नगरी मोक्षदायिनी सप्तपुरियों में से एक है। इन सात पूरियों में साढ़े तीन पूरियाँ विष्णु कीं और इतनी ही शिवजी की हैं। यानी कांची नगरी आधी विष्णु की और आधी शिव की है। यहाँ सप्त कांची की परिकल्पना है जिसके दो भाग हैं- शिवकांची तथा विष्णुकांची।
(देश मंथन, 16 दिसंबर 2015)