विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कनक दुर्गा का भव्य मंदिर विजयवाड़ा शहर के बीचों बीच पहाड़ी पर है। तिरूपति के बाद यह आंध्र प्रदेश के भव्य मंदिरों में से एक है। यहाँ पर सालों भर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
इस पहाड़ी का नाम इंद्रकिलाद्रि है जो कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को लोक आख्यान में अति प्राचीन बताया जाता है। कहा जाता है कि महाभारत काल में अर्जुन ने इसी पर्वत माला पर शिव की आराधना की थी और शिव को खुश करके पशुपत अस्त्र प्राप्त किया था। इसलिए इस पर्वत पर कनक दुर्गा मंदिर के बगल में मल्लेश्वर स्वामी यानी शिव का भी मंदिर है। मंदिर के शिखर के आसपास से विजयवाड़ा शहर और कृष्णा नदी के जलाशय का अदभुत नजारा दिखायी देता है।
माँ दुर्गा का रूप हैं कनक दुर्गा राक्षसों के वध के लिए माँ दुर्गा ने कई रूप धरे थे, उनमें से कनक दुर्गा भी एक है। यह भी कथा है कि महिषासुर का वध करते समय में दुर्गा आठ हाथों में अस्त्र थामे हुए शेर पर सवार हो कर इंद्रकिलाद्रि पर्वत पर प्रकट हुईं। कहा जाता है कि यक्ष कीला ने माँ दुर्गा का अनवरत साधना की। उसकी साधना से प्रसन्न होकर ही माँ ने इस पर्वत पर निवास करने का वरदान दिया। साथ ही माँ ने वरदान दिया है मैं इस पर्वत पर सूर्य के सुनहले प्रकाश के समान लगातार विराजमान रहूँगी। इसलिए देवी का नाम कनक दुर्गा पड़ा। श्रध्दालु बताते हैं कि मंदिर में माँ की मूर्ति स्वंयभू है। दुर्गा सप्तशती में देवी कनक का वर्णन आता है।
यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने भी इस मंदिर के परिसर में भ्रमण किया था और अपना चक्र स्थापित किया था। कनक दुर्गा मंदिर सदियों से विजयवाड़ा शहर की पहचान रहा है। खास तौर पर नवरात्र में यहाँ काफी भीड़ उमड़ती है। दशहरा के दौरान आने वाले भक्त कृष्णा नदी में डूबकी लगाने के बाद माता के दर्शन करते हैं।
दर्शन का समय
सुबह 4 बजे से 5.45 तक। इसके बाद सुबह 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक लगातार। मंदिर में तीन तरह के दर्शन हैं। पहला निःशुल्क दर्शन है, जबकि 20 रुपये और 100 रुपये का टोकन दर्शन भी है।
अन्न प्रसादम
मंदिर में तिरूपति के तर्ज पर 1991 से अन्न प्रसादम शुरू किया गया है। मंदिर के बगल में बने लंबे डायनिंग हाल में कुरसी और टेबल पर केले के पत्ते में भक्तों को अन्न प्रसाद परोसा जाता है। यह निःशुल्क है। इसके लिए प्रवेश द्वार पर टोकन प्राप्त करना पड़ता है। अन्न प्रसाद, पुलाव, चावल, दाल, सांभर, चटनी, मिठाई, छाछ आदि परोसा जाता है।
कैसे पहुँचे
कनक दुर्गा मंदिर विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन या शहर एमजी रोड या ओल्ड आरटीसी बस स्टैंड से तीन किलोमीटर की दूरी पर है। कैनाल रोड पर चलते हुए इंद्रकिलाद्री पहाड़ के नीचे आप पहुँच जाते हैं। यहाँ से सरकारी बस सेवा है जो 5 रुपये लेती है। अगर टैक्सी करें तो शेयरिंग में 20 रुपये प्रति सवारी देना पड़ता है। पर मंदिर की पैदल दूरी महज आधा किलोमीटर है। इसलिए पैदल चढ़ाई करना ही श्रेयस्कर है। अपनी गाड़ी या बाइक से जाएँ तो प्रवेश कर देना पड़ता है। ऊपर पार्किंग का इंतजाम है। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले फ्री जूता घर है।
नवविवाहित जोड़े लेते हैं आशीर्वाद
कनक दुर्गा मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में नवविवाहित जोड़े दिखायी देते हैं। पिछली रात शादी के बाद वे उन्ही विवाह के जोड़े में माँ का दर्शन करने के लिए पहुँचे हैं। आंध्र में शादी के बाद किसी प्रसिद्ध मंदिर में जा कर दर्शन करने और आशीर्वाद लेकर दांपत्य जीवन शुरू करने की परंपरा है।
दर्शन में भेदभाव
मैं सुबह-सुबह माँ के मंदिर में जाने के लिए इंद्रकिलाद्री पर्वत पर पैदल ही चढ़ाई करता हूँ। एमजी रोड से मंदिर तक पहुँचने के लिए आटो रिक्शा करता हूँ। न्यूनतम किराया 30 रुपये में। एक आंध्र पुलिस के जवान मेरी मदद करते हैं। वे सलाह देते हैं कि बस या टैक्सी से जा सकते हैं पर पैदल ही जाएँ। मंदिर में तीन तरह के दर्शन हैं। मैं समय बचाने के लिए और भीड से बचने के लिए 20 रुपये वाले लाइन में लग जाता हूँ। पर अंदर जाकर पता चलता है कि माँ के दर्शन में भेदभाव है। फ्री दर्शन वालों को 20 फीट दूर से दर्शन मिलता है।
20 रुपये वाले लाइन में आने वालों को 10 फीट की दूरी से दर्शन मिलता है, जबकि 100 रुपये देकर पहुँचने वाले बड़े ही करीब से माँ का दर्शन करते हैं। इस तरह का भेदभाव तिरूपति में नहीं हैं। वहाँ फ्री और शुल्क देने वाले गर्भ गृह में पहुँच कर एक जैसा ही दर्शन करते हैं। दर्शन के बाद में अन्न प्रसादम पाने के लिए चल देता हूँ।
(देश मंथन 30 मई 2016)