विजयवाड़ा से वासवीधाम की ओर एनएच 5 पर

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

मैं विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन सही समय पर पहुँच चुका था। यहाँ से आगे मुझे पहुँचना है वासवी धाम, पेनुगोंडा जो राजामुंदरी के पास है। शादी में शामिल होना है। रत्नाराव जी के बेटे बालगंगाधर की। रत्नाराव जी के लिए हम परिवार के सदस्य की तरह हैं। साल 2007 में हैदराबाद के वनस्थलीपुरम में उनके घर रहने के बाद एक रिश्ता बन गया।

सुबह-सुबह बारात हैदराबाद से निकल चुकी है। बालगंगाधर यानी चिन्ना ने हमें बताया कि एक गाड़ी आपको लेने रेलवे स्टेशन ही आ जाएगी। सो मैं इंतजार कर रहा था। इस बीच मेरे फोन ने थोड़ा धोखा दिया सेटिंग बदल गयी और सारी इनकमिंग काल्स ब्लॉक होने लगी। जल्द ही मैंने उसे ठीक किया। एक गाड़ी विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन के परिसर में मुझे लेने पहुँच गयी। इसमें शादी कराने वाले दो पुरोहित और दो पारिवारिक फोटोग्राफर हैं। शहर से बाहर निकलने पर रामावर पाडु चौराहा पहुँचने पर हमें बारात में शामिल दूसरी गाड़ियाँ भी मिल गयी। हमलोग शहर से बाहर सरपट भाग रहे थे। हमलोग नेशनल हाईवे नंबर 5 पर हैं। इसका नया नंबर एनएच 16 है।
मार्च के महीने में आंध्र में भारी गरमी का आलम था। खैर हमारी कारें वातानुकूलित थीं। रास्ते में हमें विजयवाड़ा का एयरपोर्ट दिखाई देता है। यहाँ से नियमित उड़ाने हैं, पर एयरपोर्ट में जनसुविधाओं का अभाव है। शहर के बाहर हमलोग एक जगह रिलायंस पेट्रोल पंप के बगल में दोपहर के खाने के लिए रुकते हैं। ज्यादातर लोगों ने आंध्रा थाली का आर्डर किया। मैंने फ्राइड राइस मँगाया। यह वेज पुलाव की तरह है। इसके साथ रायता। पूरी थाली खा नहीं पाया। आगे का सफर शुरू हुआ। हनुमान जंक्सन। एलुरू। इसके बाद आया पुल्ला। पुल्ला में रेलवे लाइन हाइवे के समांतर चल रही है। तेदेपालीगुदम के बाद तानुकू पहुँच कर हमारा मार्ग बदला। हमने नेशनल हाईवे छोड़ दिया। यहाँ से 15 किलोमीटर का रास्ता एक नहर के साथ चल रहा है। आंध्र का इस्ट गोदावरी जिला काफी हरा भरा है। हम शाम के 4 बजे वासवी धाम पहुँच चुके हैं।
बाल गंगाधर की शादी
मंगलधुन और फूलों के साथ बारात का स्वागत हुआ। बारात में ज्यादा लोग नहीं है। कोई 25 लोग हैं। परिवार की सभी महिलाएँ भी हैं। हमें वासवी धाम में ही दो वातानुकूलित कमरे आवंटित किए गये। शाम हो रही है। हमलोग स्नान करके तैयार हो गये शादी की रस्मों के लिए। समधी का स्वागत हुआ। इसके बाद शादी की तैयारी शुरू। शुभ मुहुर्त रात 9.20 बजे का है। इससे पहले सबको बोजन (भोजन) करने का आमंत्रण दिया गया। केले के पत्ते के डिजाइन वाले पेपर प्लेट में टेबल कुरसी पर बैठ कर भोजन।
मीनू में विशुद्ध आंध्र थाली। मीठा चावल, सफेद चावल, कई तरह की सब्जियाँ। रोटी पूड़ी जैसी कोई चीज नहीं। मुहुर्त से पहले पंडित जी शुभलग्नो सावधानाय का मंत्र पढ़ने लगे। दूल्हा और दुल्हन के बीच एक परदा लगा है जो लग्न काल में ही हटाया जाता है। ठीक लग्न में दूल्हा-दुल्हन के माथे पर पान के पत्ते में गुड़ और जीरा थोपता है। इसके साथ ही शादी की मुख्य रस्म पूरी हो जाती है। इसके बाद परिजनों की ओर आशीर्वाद देने की रस्म शुरू हुई। इसमें मेरी भी बारी आई। आंध्र की शादी में आखरी रस्म तारे दिखाने की होती है। रात 12 बजे तक शादी संपन्न हो चुकी है।
अब फैसला हुआ कि सुबह के बजाय रात में हैदराबाद के लिए प्रस्थान किया जाये। इससे हम दिन की गरमी से बच सकेंगे। सो दुल्हन लेकर रात एक बजे बारात रवाना हो गयी। दिन भर नौ घंटे सफर करके आये थे। फिर रात एक बजे से नौ घंटे का सफर शुरू। दुल्हन की विदाई में कोई रोना-धोना नहीं दिखाई दिया। उत्तर भारत 24 मार्च को होली मनाने के लिए सुबह का इंतजार कर रहा था। हम एक बार फिर राजामुंदरी से विजयवाड़ा हाईवे पर सरपट भाग रहे थे।
(देश मंथन  04 जून 2016)

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