विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
पश्चिमी घाट यानी दिलकश नजारे। यह कोई एक जगह नहीं। इसका विस्तार कई राज्यों में हैं। सौंदर्य ऐसा है चप्पे-चप्पे में कि इसे साल 2012 में में विश्व विरासत साइट का दर्जा मिला। इसके तहत कोई 1,600 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रंखला आती है। माना जाता है कि ये पर्वत हिमालय से भी ज्यादा पुराने हैं। अपने पारिस्थित विभिन्नता के कारण इसे अलग पहचान मिली है। इसका विस्तार गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु जैसे पांच राज्यों में है।
इसकी सीमा में देश के कई बड़े हिल स्टेशन और नदियाँ और पहाड़ आते हैं। पश्चिम घाट में कुल 1 लाख 40 हजार वर्ग किलोमीटर के पहाड़ आते हैं। केरल में पालघाट के 30 किलोमीटर के दायरे को छोड़ दें तो ये पहाड़ कहीं न कहीं आपस में जुडे हुए हैं। इसलिए पश्चिमी घाट की एक वैश्विक पहचान है। इन घाटों का भारत के मानसून के गति से भी जुड़ाव है। बारिश के दिनों में इनका सौंदर्य और बढ़ जाता है। ये विश्व के सर्वाधिक हरे-भरे इलाकों में गिने जाते हैं। इस क्षेत्र में पौधे के 650 के आसपास प्रजातियों की पहचान की गयी है। वहीं 31 तरह के स्तनपायी जानवर इस क्षेत्र में हैं।
सबसे पहले महाराष्ट्र के सहयाद्रि रेंज की बात करें तो इसमें माथेरन, लोनावाला, खंडाला, महाबलेश्वर, पंचगनी जैसे इलाके आते हैं। बारिश के दिनों में माथेरन की यात्रा बंद करनी पड़ती है तो महाबलेश्वर में भी कुछ ऐसा ही होता है। पर महाबलेश्वर में तो बादलों का ऐसा डेरा होता है कि यहाँ बादलों पर शोध के लिए संस्थान खोला गया है। मुंबई से पुणे जाते समय आप लोनावाला और खंडाला का सौंदर्य देख सकते हैं। यह मुंबई के लोगों को खूब लुभाता है।
कोंकण रेलवे से होकर गुजरते समय पश्चिमी घाट का सौंदर्य नजर आता है जो गोवा से गुजरते हुए भी दिखायी देता है। गोवा में दूध सागर के पास तो इसका अदभुत नजारा दिखायी देता है। इसके बाद आप कर्नाटक में प्रवेश कर जाते हैं। केरल का मुन्नार जैसा हिस्सा भी इसके तहत आता है। आप चलते जाइए इसका सौंदर्य खत्म होने का नाम नहीं लेता।
वहीं तमिलनाडु के नीलगिरी रेंज में ऊटी, कोटागिरी, कोडाइकनाल जैसे इलाके आते हैं। ऊटी सालों भर सैलानियों को मोहित करता है तो कोडइकनाल विदेशियों को भी हमेशा से लुभाता रहा है। पश्चिम भारत से लेकर दक्षिण भारत तक पश्चिमी घाट का विस्तार है। हालाँकि पाँच राज्यों में विस्तारित क्षेत्र होने के कारण इनकी देखभाल दुष्कर कार्य है। केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत नेचुरल हेरिटेज मैनेजमेंट कमिटी का गठन किया गया है। यह समिति सात अलग-अलग कलस्टर में फैले इस क्षेत्र की देखभाल के लिए उत्तरदायी है।
बालीवुड के फिल्मकारों को भी इसका सौंदर्य खूब भाता है, इसलिए तमाम फिल्मों में पश्चिमी घाट के पहाड़ों के नजारे आप देख सकते हैं। हिंदी फिल्मों में लोनावाला, खंडाला, वाई, पंचगनी, महाबलेश्वर, दूध सागर से लेकर ऊटी तक के नजारे खूब फिल्माए गये हैं। तो कभी वक्त मिले तो चलिए पश्चिमी घाट की ओर…
(देश मंथन 07 फरवरी 2016)