रिश्तों में अच्छाई छाँटना सीखिए

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कहानी तो सुनानी है शिवानी की। कहानी सुनानी है नीति की और कहानी सुनानी है शुभि की। इतनी ही क्यों, वो ढेर सारी कहानियाँ मुझे आपको सुनानी हैं, जिन्हें मैं जबलपुर से आपके लिए अपने मन के कैमरे में छुपा कर लाया हूँ। अपनी कहानियों की पोटली एक-एक करके रोज खोलूंगा। आप हतप्रभ रह जाएंगे कि उन ढेर सारे मासूमों की कहानी सुन कर, जो कुछ बोल नहीं सकते, पर अपनी कहानी आपको सुनाएंगे। खुद, अपनी जुबान से। 

रुकिए, थोड़ा इंतजार कीजिए। पहले अपने दोस्त एचएस विर्दी जी की सुनाई कहानी को आपसे साझा कर लूँ, क्योंकि उनके अनुभव और उनकी कहानियाँ जिन्दगी का संदेश देती हैं। सास के पायजामे के नाड़े की कहानी भी आपको सुनानी ही है पर अभी तो रिश्तों की कहानी।

लड़का और लड़की की शादी तो हो चुकी थी, पर दोनों में बन नहीं रही थी। पंडित ने कुंडली के 36 गुण मिला कर शादी का नारियल फोड़वाया था, पर शादी के साल भर बाद ही चिकचिक शुरू हो गयी थी। पत्नी अपने ससुराल वालों के उन अवगुणों का पोस्टमार्टम कर लेती, जिन्हें कोई और देख नहीं पाता था। 

लगता था कि अब तलाक, तो तब तलाक। पूरा घर तबाह होता नजर आ रहा था। 

सबने कोशिश कर ली कि किसी तरह यह रिश्ता बच जाए, दो परिवार तबाही के दंश से बच जाएं, पर सारी कोशिशें व्यर्थ थीं। 

जो भी घर आता, पत्नी अपने पति की ढेरों खामियाँ गिनाती और कहती कि उसके साथ रहना असंभव है। वो कहती कि इसके साथ तो एक मिनट भी नहीं रहा जा सकता। दो बच्चे हो चुके हैं और बच्चों की खातिर किसी तरह जिन्दगी कट रही है। 

उनके कटु रिश्तों की यह कहानी पूरे मुहल्ले में चर्चा का विषय बनी हुई थी। 

ऐसे में एक दिन एक आदमी सब्जी बेचता हुआ उनके घर आ पहुँचा। उस दिन घर में सब्जी नहीं थी। 

“ऐ सब्जी वाले, तुम्हारे पास क्या-क्या सब्जियाँ हैं?”

“बहन, मेरे पास आलू, प्याज, टमाटर, भिंडी और गोभी है।”

“जरा दिखाओ तो सब्जियाँ कैसी हैं?

सब्जी वाले ने सब्जी की टोकरी नीचे रखी। महिला टमाटर देखने लगी। 

सब्जी वाले ने कहा, “बहन आप टमाटर मत लो। इस टोकरी में जो टमाटर हैं, उनमें दो चार खराब हो चुके हैं। आप आलू ले लो।”

“अरे, चाहिए टमाटर तो आलू क्यों ले लूं? तुम टमाटर इधर लाओ, मैं उनमें से जो ठीक हैं उन्हें छाँट लूँगी।”

सब्जी वाले ने टमाटर आगे कर दिए। 

महिला खराब टमाटरों को किनारे करने लगी और अच्छे टमाटर उठाने लगी। दो किलो टमाटर हो गया। 

फिर उसने भिंडी उठायी। 

सब्जी वाला फिर बोला, “बहन, भिंडी भी आपके काम की नहीं। इसमें भी कुछ भिंडी खराब हैं। आप आलू ले लीजिए। वो ठीक हैं।”

“बड़े कमाल के सब्जी वाले हो तुम। क्या नाम है तुम्हारा? तुम बार-बार कह रहे हो कि आलू ले लो। भिंडी, टमाटर किसके लिए हैं? मेरे लिए नहीं क्या?”

“नाम तो मेरा संजय सिन्हा है। मैं सारी सब्जियाँ बेचता हूँ। पर बहन, आपको टमाटर और भिंडी ही चाहिए, मुझे पता है कि मेरी टोकरी में कुछ टमाटर और कुछ भिंडी खराब हैं, इसीलिए मैंने आपको मना किया। और कोई बात नहीं।”

“पर मैं तो अपने हिसाब से अच्छे टमाटर और भिंडियाँ छाँट सकती हूँ। जो खराब हैं, उन्हें छोड़ दूँगी। मुझे अच्छी सब्जियों की पहचान है।”

“बहुत खूब बहन। आप अच्छे टमाटर चुनना जानती हैं। अच्छी भिंडियाँ चुनना भी जानती हैं। आपने खराब टमाटरों को किनारे कर दिया। खराब भिंडियाँ भी छाँट कर हटा दीं। पर आप अपने रिश्तों में एक अच्छाई नहीं ढूँढ पा रहीं। आपको उनमें सिर्फ बुराइयाँ ही बुराइयाँ नजर आती हैं। बहन, जैसे आपने टमाटर छाँट लिए, भिंडी छाँट ली, वैसे ही रिश्तों से अच्छाई को छाँटना सीखिए। जैसे मेरी टोकरी में कुछ टमाटर खराब थे, कुछ भिंडी खराब थीं पर आपने अपने काम लायक छाँट लिए, वैसे ही हर आदमी में कुछ अच्छाई होती है। उन्हें छाँटना आता, तो आज मुहल्ले भर में आपके खराब रिश्तों की चर्चा न चल रही होती।”

***

सब्जी वाला चला गया। 

उस दिन महिला ने पैसे देकर अच्छे टमाटर खरीदे थे। अच्छी भिंडी भी खरीदी थी। 

उस शाम उसने रिश्तों को परखने की विद्या सीख ली थी। 

***

कायदे से ये कहानी यहीं रुक जानी है। पर मेरे कुछ परिजन कहते नजर आएंगे कि संजय जी, सब्जी वाली बात तो ठीक है, पर उस महिला का क्या हुआ? उनका तलाक हुआ या टल गया?”

मैं क्या कहूँ, मैं तो इतना ही कहूँगा कि उस उस शाम घर में बहुत अच्छी सब्जी बनी। सबने खाई, चटखारे ले ले कर खाई। सबने कहा, बहू हो तो ऐसी हो।

(देश मंथन 20 अगस्त 2016)

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