शिव ओम गुप्ता :
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की टेस्ट कप्तानी से विदाई तय होती जा रही है। एकदिवसीय और टी20 मैचों के सुपरस्टार धोनी का करिश्मा टेस्ट मैच में भले ही नहीं दिखा, लेकिन आज भी धोनी की टेस्ट कप्तानी में टीम की जीत का औसत सर्वाधिक है।
हालांकि कई दफा खुद धोनी कह चुके हैं कि वे वर्ष 2015 में खेल के किसी एक फॉर्मेंट की कप्तानी से तौबा कर सकते हैं। निः संदेह धोनी का इशारा टेस्ट कप्तानी की ओर होगा, क्योंकि टेस्ट टीम की कप्तानी में धोनी की किस्मत ने भी उनका साथ नहीं दिया।
उधर, महेंद्र सिंह धोनी का विकल्प ढ़ूँढ रही टीम इंडिया के चयनकर्ता भी नए कप्तान की तलाश में दीखते हैं। शायद यही कारण हैं कि एडीलेड में आस्ट्रेलिया-भारत के बीच खेले गये पहले टेस्ट मैच में तथाकथित चोटिल धोनी की मौजूदगी के बावजूद कोहली को कप्तानी सौंपी गयी और धोनी को टीम से बाहर बैठाया गया।
कोहली ने बतौर टेस्ट कप्तानी में पर्दापण तो किया और दोनों पारियों में शतक भी जमाया, लेकिन टीम को पहला टेस्ट जितवाने में असफल रहे। लेकिन दूसरे टेस्ट में धोनी की कप्तानी में ब्रिस्बेन टेस्ट में पराजय के बाद ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि अगले मैच में टेस्ट की कप्तानी एक बार फिर कोहली को दी जा सकती है।
हालांकि ब्रिस्बेन टेस्ट में विराट कोहली भी लय में नहीं देख गये। ब्रिस्बेन टेस्ट की दोनों पारियों में कोहली बुरी तरह आउट हुये। जबकि एडीलेड टेस्ट में कोहली ने दोनों पारियों में दमदार बल्लेबाजी की। एडीलेड टेस्ट की पहली पारी में जहाँ उन्होंने 115 रन, तो दूसरी में पारी में उन्होंने 141 रनों की पारी खेली।
एडीलेड टेस्ट में कोहली की दमदार पारी और मैच को अंतिम समय तक काँटे की टक्कर तक पहुँचा देने से बतौर टेस्ट कप्तान कोहली को 10 में 7 नंबर मिल गया था, लेकिन एडीलेड टेस्ट में मिली हार से धोनी को मौका मिल गया वरना धोनी ब्रिस्बेन टेस्ट में भी तथाकथित रुप से चोटिल ही रहते है और कोहली कप्तान कर रहे होते।
एडीलेड टेस्ट हार के साथ खत्म होने के बाद कप्तान धोनी के बयान भी इसकी गवाही देते हैं। धोनी ने डंके की चोट पर कहा है कि ड्रेसिंग रूम में तालमेल की कमी है और कम्युनिकेशन गैप की समस्या उत्पन्न हो गयी है।
मालूम हो, दूसरे टेस्ट की दूसरी पारी के चौथे दिन विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा ने भारतीय पारी शुरू की जबकि तीसरे दिन का खेल खत्म होने तक शिखर धवन और चेतेश्वर पुजारा नाबाद लौटे थे।
रिपोर्ट कहती है कि शिखर धवन चौथे दिन के मैच से पहले प्रैक्टिस मैच में चोटिल हो गये थे, लेकिन धोनी को शिखर की चोट की गंभीरता के बारे में अँधेरे में रखा गया और उन्हें चौथे दिन की पारी की शुरूआत तक नहीं पता था कि चोटिल शिखर बल्लेबाजी के लिए नहीं उतरेंगे।
निः संदेह टेस्ट मैचों में धोनी की कप्तानी एकदिवसीय और टी20 मैचों जैसी सुनहरी नहीं रही है। लेकिन धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम ने अब तक कुल 59 टेस्ट खेले हैं, जिनमें से 27 मैचों में उन्होंने टीम को जीत दिलायी है और 14 टेस्ट निर्णित खत्म हुये जबकि 18 टेस्ट में टीम को हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि ओवरसीज में धोनी की टेस्ट कप्तानी बेहद ही खराब रही है। धोनी ने ओवरसीज में अब तक कुल 19 टेस्ट मैचों में कप्तानी की है, जिनमें से टीम 9 मैचों में हारी है जबकि 5 मैच अनिर्णित खत्म हुये हैं और टीम केवल 5 टेस्ट मैच जीत पायी है।
वैसे, सौरभ गांगुली को टेस्ट मैचों का सबसे सफलतम भारतीय कप्तान कहा जाता है, लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो धोनी की टेस्ट मैच जीत का औसत गांगुली से बेहतर है।
गांगुली ने कुल 49 मैंचों की कप्तानी में 21 मैचों में ही टीम को जीत दिला सके थे जबकि धोनी 59 मैचों में 27 मैच जितवाये हैं। यानी गांगुली की मैच जीतने का औसत जहाँ 42. 85% है, वहाँ धोनी का मैच जीतने का औसत कहीं ऊपर 45.76% है।
(देश मंथन, 21 दिसंबर, 2014)