आलोक पुराणिक :
खबर थी टीवी पर कि ये सर्दियां मार्च तक चलेंगी। पर फरवरी के बीच में ही कुछ हल्की गर्मी का सा माहौल हो जाता है कई बार।
मैंने सर्दियों के मार्च तक खिंचने टाइप की खबरों पर यकीन नहीं किया टाइप नहीं किया, क्योंकि ये खबरें किसी रूम हीटर कंपनी द्वारा स्पांसर्ड थीं। गर्मी लंबी खिंचेंगी, इस टाइप की खबरें कूलर कंपनियां स्पांसर करती हैं।
इधर सारे मसलों में स्पांसरशिप देख लेनी चाहिए।
सर्दी निपट जाये, तो कौन राहत है। फिर गर्मी की लू लपट। बस ये है कि परेशान होने के तरीके डिफरेंट हो जाते हैं, तो कुछ राहत सी लगती है। चुरु में तापमान न्यूनतम स्तर पर पहुंचा, यह खबर नहीं आयेगी, फिर ये खबर आयेगी कि चुरु में तापमान सबसे ऊंचे स्तर पर। चुरु की यही खासियत है, नीचे भी वही, ऊपर भी वही। कितना ऊपर नीचे जाता है, भई। नेता का कैरेक्टर है चुरु का। चुरु के लोग बुरा ना मानें। ये नेताओं पर कमेंट है, चुरु पर नहीं।
दिल्ली में एक बच्चा दूसरे बच्चे से कह रहा था-अबे हमारा क्या फायदा अगर सर्दी मार्च तक बढ़ जायें, स्कूल तो बंद ना होंगे।
ये बच्चा मुझे बहुत संभावनाशील बच्चा लगा। हरेक चीज में अपना फायदा पहले
कैलकुलेट करना चाहिए। तब बताना चाहिए कि क्या अच्छा क्या बुरा।
रजाई की दुकान चला रहे हो, तो फिर कहना चाहिए कि जून-जुलाई तक सर्दी चलनी चाहिए। सर्दी कितना अच्छा मौसम है।
आईसक्रीम की दुकान वाले की चले तो सर्दी अक्तूबर में खत्म कर दे।
पड़ोस में एक बुजुर्ग की मौत हुयी। कई घंटे बीत गये, चार लोग भी ना जुटे। बुजुर्ग के पुत्र ने सर्दी पर दोष डाला। ठंड की वजह से लोग नहीं आ रहे। पुत्र ने कहा कि पिताजी ने हमेशा परेशान किया, अरे चार महीने बाद चले जाते।
मैंने उसे डांटा, तुम कब जाते हो किसी के यहां सुख- दुःख में। दोष सर्दी को दे रहे हो।
चचा गालिब कह गये हैं-मौत से पहले आदमी गम से निजात पाये क्यूं। चचा कह रहे हैं कि जिंदा रहने के गम हैं सारे, मौत के बाद कोई गम ना होता। पर बंदा अगर किसी के सुख-दुख में ना जाये, तो अपने बाप को उठानेवाले चार लोग ना जुटते। गम मौत के बाद भी पैदा हो जाता है और इसमें सर्दी या गालिब का कोई दोष नहीं होता।
(देश मंथन, 17 फरवरी 2015)