संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जाती हुई सर्दी बहुत बुरी होती है। जाते-जाते छाती से चिपक गयी है।
दो दिनों से खाँस रहा हूँ, छींक रहा हूँ। अब सर्दी ऐसी बीमारी है कि न तो किसी से कुछ कहते बनता है, न चुप रहते बनता है। बिस्तर पर लेटा रहता हूँ तो लगता है कि दफ्तर चला जाऊँ और दफ्तर पहुँच जाता हूँ तो मन करता है कि घर चला जाऊँ।
सुबह नींद खुलती है, पर उठने का मन ही नहीं करता।
फेसबुक भी खोल कर ठीक से नहीं देख पा रहा। बस अपनी पोस्ट लिख कर आपके कमेंट का इंतजार करता रहता हूँ। कुल मिला कर आजकल पढ़ाई के नाम पर आपके कमेंट और लिखायी के नाम पर मेरी पोस्ट। न इससे एक अधिक, न एक कम।
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पत्नी अपनी तरफ से लगी है कि किसी तरह मेरी सर्दी-खाँसी ठीक हो जाए। सुबह-सुबह अदरक और शहद का मिश्रण बना कर चटा रही है। रात में कोई काढ़ा पिला रही है। और सोते हुए मुँह में दो काली मिर्च के दाने डाल कर सोने को कहती है। कल मैंने काली मिर्च के दो दाने मुँह में डाले और सो गया।
यकीन कीजिए रात में एक बार भी खाँसी नहीं आयी, एक बार भी नींद नहीं खुली। अब एक बार भी नींद नहीं खुली तो सुबह जागने में देर होनी ही थी। वो तो सवा आठ बजे काम करने वाली आती है, उसने दरवाजे की घंटी बजाई तो मेरी नींद खुली। नींद खुली तो देखा कि पत्नी नहा-धो कर तैयार है, चाय की तैयारी चल रही है।
मैंने पूछा, “तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?”
“तुम्हारी तबियत ठीक नहीं। आराम से सो रहे थे।”
“लेकिन मुझे तो रोज सुबह फेसबुक पर लिखना होता है। कितनी देर हो जाती है, रोज लिखने में!”
“ओह! तो वो तो तुम्हारे परिजन हैं।”
“हाँ, परिजन तो हैं। पर उन्हें क्या मालूम कि मैं देर से क्यों लिख रहा हूँ? उन्हें क्या मालूम की मुझे सर्दी-खाँसी हो गयी है।”
“तो बता दो। परिजन हैं, समझ जाएँगे।”
“तुम भी अजीब हो। खुद नींद खुल गयी तो मुझे जगा देना चाहिए था।”
“तुम्हें नहीं पता। ये सर्दी सुनने में छोटी बीमारी लगती है, पर होती बहुत तकलीफदेह है। तुम सारी रात परेशान रहते हो। कल काली मिर्च मुँह में लेकर सोए तो जरा आराम मिला होगा। अभी ये काढ़ा पी लो, फिर नमक वाली चाय दूंगी, उसके बाद ये…।”
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मेरी तबीयत जब-जब जरा खराब होती है, मेरी पत्नी मेरी माँ बन जाती है। है तो दिल्ली वाली। मुझे तो दादी-नानी के पास रहने का मौका भी मिला है, उसे बिल्कुल दादी-नानी का साथ नहीं मिला। पर सारी बुद्धि दादी-नानी वाली है।
हे भगवान! महिलाओं में ये सारे गुण कहाँ से आ जाते हैं? मुझे लगता है कि जैसे ईश्वर मातृत्व के गुण महिलाओं में तय समय पर पैदा करता है, वैसे ही दादीत्व और नानीत्व भी समय-समय पर पैदा करता रहता है। तो आजकल मेरी पत्नी मेरी नानी बनी बैठी है। अब नानी घर पर है तो जागने में देर हुई, लिखने में देर हुई, आपको गुडमॉर्निंग कहने में देर हुई।
माफी चाहता हूँ देर के लिए। पर पत्नी के शब्दों में सोचूँ तो आप तो अपने परिजन हैं। परिजनों से सबकुछ सच-सच कह देना चाहिए।
आज बस इतना ही। आज आपके कमेंट और लाइक पढ़ने तक की ही इजाजत है मेरी नानी की ओर से। टीवी देख सकता हूँ और फोन पर आपको पढ़ सकता हूं। बाकी कुछ नहीं। आज बिस्तर पर ही रहना है। ऐसा नानी ने कहा है।
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मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि पुरुष ऐसे क्यों नहीं होते? सारे हुनर, सारे गुण भगवान महिलाओं में ही क्यों डाल देता है?
पत्नी को सर्दी-खाँसी हो जाए तो हम पुरुष उससे कहाँ कहते हैं कि आज तुम बिस्तर से मत उठना। सारा दिन आराम करना। मैं आज तुम्हें चाय पिलाऊँगा। काढ़ा तो खैर छोड़िए, पता भी नहीं कि क्या-क्या डलता है।
महिलाओं में सिर्फ माँ, दादी या नानी ही नहीं रहतीं। मुझे तो लगता है कि महिलाओं में ईश्वर का भी निवास है।
(देश मंथन 19 फरवरी 2016)