संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं कल्पना के संसार में जीता हूँ। मैं कल्पना के संसार में ही जीना चाहता हूँ। मैं हर रोज एक काल्पनिक कहानी लिखता हूँ।
फेसबुक के मेरे परिजन मेरे लिखे को पसंद करते हैं, मैं फेसबुक के लिए जीता हूँ।
मेरी माँ संसार की सबसे अच्छी महिला थीं। मेरी सास संसार की सबसे अच्छी सास हैं। मेरी पत्नी दुनिया की सबसे सुंदर लड़की है। मेरी बहनें दुनिया की सबसे अच्छी बहनें हैं। मेरा भाई इस दुनिया में सबसे अधिक प्यार करने वाला भाई था। मेरे फेसबुक परिजन दुनिया में सबसे अच्छे परिजन हैं। मेरे मामा सबसे ईमानदार पुलिस अधिकारी थे। मैं किसी भी नौकरी की परीक्षा पास कर सकता था। मैं फिल्मी कलाकारों से मिलता हूँ। मैं उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवाता हूँ। सच कहिए तो मैं साबुन-तेल बेचने वालों की तरह अपनी मार्केटिंग करता हूँ। मैं अपनी भौतिक उपलब्धियों को गिनाता हूँ। मैं अपनी पत्नी के पीछे-पीछे उसके साथ अमेरिका जाकर रह आया हूँ। मैं एक फोटो आमिर खान के साथ खिंचवाता हूँ, एक प्रियंका चोपड़ा के साथ। मैं उन तस्वीरों को अपनी वाल पर लगाता हूँ।
मैं किसानों की आत्महत्या पर नहीं लिखता। मैं गरीबों के दुख पर नहीं लिखता। मैं देश की समस्याओं पर नहीं लिखता। समाज की कुरीतियों पर नहीं लिखता।
मुझे उसके बारे में लिखने में भी मजा नहीं आता जो अपनी पत्नी और बेटी को भारत में अकेला इसलिये छोड़ देता है क्योंकि ससुर ने अपनी संपति उसके नाम नहीं कर दी। मैं ऐसे लोगों पर भी नहीं लिखना चाहता जो सिर्फ दूसरों पर कीचड़ उछालने को अपनी जिंदगी की कमाई मानते हैं और पत्नी पर संदेह की निगाहों का लिटमस पेपर लटकाए रहते हैं। मैं ऐसे लोगों पर लिखना पसंद नहीं करता हूँ, जो स्वार्थ की पराकाष्ठा में जीते हैं। मैं उन लोगों पर भी तो नहीं लिखता हूँ, जो अपनी बूढ़ी माँ को मुहल्ले वालों की रहनुमाई पर छोड़ कर खुद भगोड़ा बन जाते हैं। मुझे ऐसे लोगों को रिश्ते की कहानी सुनाते हुए दुख होता है कि देखो, इतना पढ़-लिख कर भी क्या पाए?
अपनी वाल पर ऐसे लोगों को मैं ब्लॉक भी कर सकता हूँ, लेकिन अब मैं वो गलती नहीं करता। मैं चाहता हूँ कि वो हर सुबह खुद को आइने में देखें और दुनिया को हास्यास्पद बताने से पहले अपने पर हंसें कि भगवान उन पर किस तरह हंस रहा है।
खैर, ऐसे लोगों से बहस में नहीं उलझना चाहिए। ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि वो पहले आपको अपने स्तर पर लाएंगे, फिर अपने अनुभव से आपको परास्त कर देंगे।
मेरे प्यारे परिजनों, अब आप सोच रहे होंगे कि मुझे तो आज बागपत के गाँव खेकड़ा में पंडित Harikishan Sharma की पोतियों की शादी के बारे में लिखना चाहिए था, जहाँ कल मैं गया था, लेकिन आज सुबह मेरा मन मचल गया अपने बारे में वो सब लिखने को जिसे मैंने लिखा। अब आप सोच रहे होंगे कि कौन है वो शख्स, जिसके लिए मैंने इतने अक्षर सचमुच में काले किए।
आप परेशान न हों, वो खुद-ब-खुद मेरी वाल पर आकर बता देगा कि वही है वो नकारात्मक आदमी (?) जो रिश्तों को जांचने वाला लिटमस पेपर लिए घूमता है। मेरा भरोसा कीजिए आपको शाम तक मालूम चल जाएगा कि कौन है वो।
पत्रकारिता मेरे लिए नौकरी है। आपसे रोज मिलना मेरे लिए रिश्तों के गुलदस्ते सजाने जैसा है। ऐसे में मैं कुछ और क्यों लिखूं? मेरी मर्जी, मैं जो चाहूं लिखूंगा।
मैं चाहूं तो लिख सकता हूँ कि मुझे टीवी पर पाकिस्तानी सीरियल दिखाने वाला चैनल ‘जिंदगी’ सबसे अधिक पसंद है। उसके सीरियल और उसके कलाकार मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। उस चैनल को देख कर लगता है कि कहीं न कहीं एक बेहद खूबसूरत पाकिस्तान भी इसी धरती पर है, जो सियासत से दूर है। वहाँ के लोग माशा अल्लाह! कितने खूबसूरत लगते हैं। उनकी जहीनियत, उनका रहन-सहन, दिल को सकून देता है। कई बार मैं सोचता हूँ कि काश भारत-पाकिस्तान एक हो जाते! मुझे दिल से लगता है कि दोनों मुल्कों के भविष्य की सबसे बड़ी भूल होगी इनका आपस में न मिल पाना। मेरे हाथ में होता तो मैं दोनों देशों के दिल के तार कब के जोड़ देता, कहता जो भूल अंग्रेजी मुल्क वाले करा गए हैं, उससे मुक्त हो जाओ। एक हो जाओ। मिल जाओ। देखो कितना सुंदर है हिंदुस्तान, कितना सुंदर है पाकिस्तान।
अमेरिका और इंग्लैंड में बैठे कुछ लोगों का काम ही है ‘फूट डालो राज करने की कोशिश करो।’
कई बार राज न भी करने को मिले, तो सिर्फ फूट डाल दो।
(देश मंथन, 09 मार्च 2015)