यमराज के चंपू से लोहा लें

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कल मैंने नोएडा के एक मॉल में खाना खाते हुए उत्तराखंड के एक आईएएस अधिकारी की हृदयघात से मौत की कहानी लिखी थी। मैंने आपसे अनुरोध किया था कि आप मेरी इस कहानी को जितने लोगों तक पहुँचा सकें, पहुँचा दें।

मैंने ऐसा क्यों कहा था?

मैंने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि डॉक्टर जिसे दिल का दौरा पड़ना कह कर मृत्यु का प्रमाण पत्र थमा देते हैं, वो दरअसल हृदयघात होता है। लोगों को हृदयघात के विषय में बताना इसलिए जरूरी होता है, क्योंकि इससे होने वाली मौत दरअसल यमराज की एक चाल होती है और अगर आप इस विषय में जानेंगे तो यमराज से मुकाबला कर सकते हैं। आपको इस सत्य को जानना चाहिए कि हर साल लाखों लोग हृदयघात से मरते हैं और डॉक्टर दिल का दौरा कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

तीन साल पहले अपने छोटे भाई की मौत के बाद मैंने इस विषय पर खूब जानकारी जुटाई। मैं अपने छोटे भाई की मौत से जितना आहत था, उससे अधिक हैरान था। एकदम स्वस्थ, 40 साल से कम उम्र का हट्टा-कट्टा मेरा छोटा भाई, जो दवा की कंपनी में सीनियर पोजिशन पर था, एक सुबह मीटिंग के बाद दफ्तर में ही मर गया।

उसे दिल की बीमारी नहीं थी। उसे हृदयघात हुआ था।

मैंने उसकी मौत की पूरी कहानी बाद में उस व्यक्ति से पूछी, जो उस वक्त वहीं मौजूद था। मैंने उससे संपूर्ण घटनाक्रम को समझने की कोशिश की। फिर मैं कई डॉक्टरों से मिला, कइयों से उसकी अचानक हुई मौत के विषय में बात की। फिर मेरी समझ में बात आई।

हालाँकि करीब 14 साल पहले मेरे छोटे भाई के एक साथी की मौत बड़ौदा में उसके घर में ठीक ऐसे ही हो गयी थी। तब मेरे भाई ने मुझसे हृदयघात यानी सडेन कार्डियक अरेस्ट के विषय में चर्चा की थी। पर मैंने उसके कहे पर ध्यान नहीं दिया था।

दोस्त की मौत के 14 सालों बाद ठीक उसी तरह मेरे भाई की मौत हुई।

अब सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे भाई को सडेन कार्डियक अरेस्ट के बारे में अपने दफ्तर में, अपने दोस्तों के बीच खूब चर्चा करनी चाहिए थी। अगर उसने ऐसा किया होता, तो जब उसके साथ ऐसा हुआ, तो उसके दोस्त शायद उसकी जान बचा सकते थे। पर उसने कभी इस विषय में किसी को जागरूक नहीं किया। नतीजा? जब उसे जरूरत पड़ी, उसे प्राथमिक उपचार नहीं मिला और उसकी कुल एक मिनट में मृत्यु हो गयी।

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मेरे भाई की मृत्यु 2 अप्रैल, 2013 को हुई थी।

मैं अपने भाई की मौत के सदमे से उबरने की कोशिश कर रहा था। इसी क्रम में जब मैंने इस विषय में और जानकारी जुटाई तो मुझे सडेन कार्डियक अरेस्ट के बारे में ठीक से पता चला।

अपनी जानकारी के बूते मैं एक लड़की की जान बचाने में कामयाब रहा।

पर मैं यह सोच कर आज भी सिहर उठता हूँ कि अगर मैंने लोगों को इस विषय में जागरूक नहीं किया तो अगर मेरे साथ कभी ऐसा होगा, तो मुझे भला कौन बचा पाएगा?

बस यही वो कारण है कि मैंने आपसे कहा कि आप मेरी पोस्ट को साझा कीजिए। आप खुद इस विषय को ठीक से जानिए, दूसरों को बताइए। दूसरे जानेंगे तो आपकी जान बचेगी। आप जानेंगे तो दूसरों की जान बचेगी।

आज इतना ही। पर कल आश्चर्यजनक रूप से करीब पाँच सौ लोगों ने मैसेज करके मेरी उस पोस्ट को दुबारा लिखने का अनुरोध किया, जिसे मैंने 12 अगस्त, 2014 को लिखा था।

आपकी इच्छा के मुताबिक मैं उसे दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ। जाहिर है आज की पोस्ट बड़ी हो जाएगी, पर इसे पढ़िएगा और आत्मसात कीजिएगा। सुबह मौका न मिले तो शाम को पढ़िएगा। अपने दोस्तों को पढ़ाइएगा। उनसे इसे साझा कीजिएगा। आप इसे ठीक से समझिएगा और मुमकिन हो तो अपने-अपने डॉक्टर से इस विषय पर बात कीजिएगा। ध्यान रहे, एक बार आपके किसी अपने की मृत्यु हो जाए, तो चाह कर भी आप उससे दुबारा नहीं मिल सकते। सिर्फ बिलख सकते हैं, लेकिन अगर आप जागरूक होंगे तो मुमकिन है कि आपका प्रिय शायद बच जाए। शायद यमराज से आप उसे छीन कर लौटा लाएं।

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12 अगस्त, 2014

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कल मैंने यमराज के एक चंपू को चैलेंज किया। आप सोच रहे होंगे कि मैं सुबह-सुबह ये क्या फेंक रहा हूँ। लेकिन मैं फेंक नही रहा, बल्कि सच कह रहा हूँ। हुआ ये कि मैं दिल्ली से जयपुर गया था, अपनी बहन से राखी बंधवाने। वोल्वो बस से सारी रात यात्रा करते हुए मैं सुबहृ-सुबह जयपुर पहुँच गया था और जयपुर में एक रात रह कर कल सुबह की बस से मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। बस आधे रास्ते यानी मिड-वे पर रुकी, चाय पानी के लिए। वहाँ सबने कुछ न कुछ खाया, फ्रेश हुए और वापस बस में बैठने के लिए पहुँचे ही थे कि एक ल़ड़की खड़े-खड़े अचानक रोड पर गिरी। ऐसा लगा जैसे पल भर में उसका संसार खत्म हो गया। वो खड़े खड़े ऐसे गिरी थी कि सब के सब भौचक्के रह गए।

30-32 साल की एक लड़की मेरी आँखों के आगे निर्जीव पड़ी थी। मैं बहुत जोर से चिल्लाया और उसे होश में लाने के लिए हिलाने लगा। मेरा हाथ उसकी नाक तक पहुँचा, मैंने महसूस किया को साँस रुक गयी है, दिल की धड़कन थम गयी है, नब्ज कहीं है ही नहीं। मैं पागलों की तरह चिल्लाता हुआ उसकी छाती पर जोर जोर से मारने लगा। वहाँ भीड़ लग गयी थी। अपनी एक सह यात्री से मैंने कहा कि आप इसे अपने मुँह से कृत्रिम साँस दे सकती हैं क्या? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सामने एक लड़की जमीन पर गिरी हुई थी, जो हमारी बस की ही यात्री थी। वो भी जयपुर से दिल्ली आ रही थी, और अचानक आधे रास्ते में यमराज के एक चंपू वहाँ पहुँच गये अपनी ड्यूटी निभाने। जींस और टीशर्ट में लड़की का शरीर पड़ा था और बस के सभी यात्री सहमे से खड़े तमाशा देख रहे थे। किसी ने कहा शायद मिर्गी का दौरा है, किसी ने कहा कि यूँ ही बेहोश हो गयी है, किसी ने कहा कि दिल का दौरा पड़ा है। सब कुछ कुछ कह रहे थे, पर किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है? 

2 अप्रैल 2013 को सुबह करीब 11 बजे मेरे पास एक अनजान व्यक्ति का फोन पुणे से आया था। उसने पूछा था कि क्या आप सलिल सिन्हा को जानते हैं? मैंने घबराते हुए कहा था कि हाँ, वो मेरा छोटा भाई है। क्या हुआ उसे? उधर से अनजान व्यक्ति ने कहा कि ये बेहोश हो गये हैं। मैं जोर से चिल्लाया था कि अरे, क्या हुआ मेरे भाई को? उस व्यक्ति ने मुझे सांत्वना देने की कोशिश की थी, लेकिन फोन रखते हुए मैंने सुन लिया था कि वो बुदबुदा रहा था, “इनकी तो साँस ही बंद हो गयी है।”

कुल जमा मेरे भाई के जमीन पर गिरने के दो मिनट में मेरे पास फोन आ चुका था लेकिन मेरा भाई नहीं बचा था। मैं भागता हुआ चार घंटे में दिल्ली से पुणे पहुँच गया था लेकिन मेरे सामने मेरा जो भाई जो जमीन पर लेटा हुआ था, वो उसकी मृत देह थी। पता ही नहीं चला कि कैसे और शरीर के दस द्वार में से किससे उसके प्राण पखेरु उड़ गये थे। मैं बहुत रोयां। इतना कि अब तक आँसू नहीं सूखे। लेकिन मेरा भाई नहीं लौटा। वो मेरे लिए सिर्फ एक याद बन कर रह गया। 40 साल से कम की उम्र में, यमराज का एक चंपू टहलता हुआ मेरे भाई के पास आया और अपने हिस्से का काम करके चलता बना। कोई वजह नहीं थी कि सुबह दस बजे तैयार होकर टाई पहन कर मेरा जो भाई घर से एकदम स्वस्थ दफ्तर गया हो, और जो यूं ही दफ्तर से नीचे उतरा हो, शायद सिगरेट पीने, शायद आईसक्रीम खाने वो यमराज के चंपू के जाल में फँस जाए और यूँ ही जमीन पर गिरे और प्राण निकल जाएं, बस 60 सेकेंड में। 

भाई की मौत के बाद मैंने पहली बार इस तरह की मौत के बारे में पढ़ना शुरू किया। पता चला कि इस तरह गिरते ही एक मिनट में जो मौत हो जाती है, उसकी वजह कार्डियक अरेस्ट यानी हृदय घात हैं। इस तरह के ‘घात’ के लिए किसी को दिल का मरीज होने की जरूरत नहीं होती। आम तौर पर सिगरेट और तनाव इसकी वजह हो सकते हैं, लेकिन बिना इसके भी इस तरह के घात होते हैं। सच कहें तो यमराज के छोटे-मोटे चंपू अपना कोटा पूरा करने के लिए अकेले में धावा बोलते हैं, और मिनट भर में हार्ट को फेल कर अपना काम करके निकल लेते हैं। उसके चंगुल में कोई भी फँस सकता है। उस दिन मेरा भाई फँस गया था, कल वो लड़की फँस गयी थी। आप बहुत ध्यान से, इस बात को समझिएगा कि आम तौर पर ‘कार्डियक अरेस्ट’ के वक्त व्यक्ति अकेला होता है। ज्यादातर मामलों में उसके रिश्तेदार, परिचित वहाँ नहीं होते।

उन तक जब ये खबर पहुँचती है तो देर हो चुकी होती है। यमराज का अदना सा कर्मचारी धोखे से अपना काम कर चुका होता है। और बाद में परिजन उस मौत की वजह तलाशते हैं, कहते हैं कि दिल का दौरा पड़ गया था। खाने पीने का ध्यान नहीं रखा होगा, वगैरह-वगैरह।लड़की नीचे जमीन पर पड़ी थी। 30 सेकेंड बीत चुके थे। उस अनजान और अकेली लड़की की छाती पर मैं दोनों हाथों से मारे जा रहा था। मुझे ऐसा करते देख बस के बाकी यात्री हतप्रभ लेकिन मूक खड़े थे। मेरे साथ एक और लड़की उसके पाँव पर अपनी हथेलियाँ रगड़ने लगी। पर शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी। एक व्यक्ति उसके हाथ में नब्ज टटोल रहा था, उसे नब्ज का अतापता नहीं था। सबके चेहरे सफेद पड़ गये थे। मेरे सामने तो मानो मेरा भाई ही लेटा हुआ था। मैं तुल गया था कि लोहा लेकर रहूँगा। एक… दो… तीन… चार…कुल मिला कर 1 मिनट हुए होंगे मैंने पूरी ताकत से उसके सीने पर एक और जोरदार घूसा मारा। लड़की की आँख खुली और भीड़ में से एक आदमी चिल्लाया, साँस चल पड़ी है, साँस चल पड़ी है। फिर आगे जो हुआ उसमें कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात इतनी ही है कि लड़की की साँस लौट आई। वो जिंदा हो गयी। यमराज के चंपू के इरादे को हमने मिल कर तोड़ दिया था। उसने मौका देख कर एक अकेली लड़की के प्राण चुराने की कोशिश की थी, हम 40 यात्रियों ने मिल कर यमराज के उस चंपू की अच्छी पिटाई की और लड़की को नहीं मरने दिया। तब तक उन्ही यात्रियों में से एक आदमी आगे आया और उसने बताया कि वो डॉक्टर है। उसने ल़ड़की का मुआयना किया, और बताया कि इन्हें अचानक कार्डियक अरेस्ट हुआ था, पर समय पर सही उपचार हुआ और बच गयी है।

इस तरह के हृदयघात को अंग्रेजी में सडेन कार्डियक अरेस्ट यानी ‘एससीए’ कहते हैं। अमेरिका में अमूमन प्रति वर्ष चार लाख लोग ऐसे ही घात से मरते हैं। हिंदुस्तान में कितने मरते हैं, इसका आंकड़ा मुझे नहीं पता, लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसी मौत को ज्यादातर लोग दिल की बीमारी से जोड़ लेते हैं। वो ऐसा मान बैठते हैं कि दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गयी। नहीं, आप ऐसी भूल मत कीजिएगा। यमराज के चंपू की बात रहने दीजिए, लेकिन इस सच को जानना बेहद जरूरी है कि अगर कभी किसी को हृदयघात हो तो क्या करके उसे बचाया जा सकता है। ये हमारी शिक्षा व्यवस्था का दोष है कि हमें प्राथमिक उपचार के बारे में नहीं पढ़ाया जाता, हम किसी को कृत्रिम साँस देना नहीं जानते, हम किसी के हार्ट को पंप करना नहीं जानते, हम हार्ट अटैक और हार्ट फेल का मतलब नहीं समझते। 

मैंने अपने भाई की मौत के बाद इस विषय पर बहुत पढ़ा और समझ पाया कि अगर किसी को दिल का दौरा पड़े तो उसके पास स्वर्णिम 30 मिनट होते हैं, अस्पताल पहुँच जाने के। अगर दिल का दौरा पड़ा कोई व्यक्ति उस आधे घंटे में सही तरीके से अस्पताल पहुँच जाए तो बहुत मुमकिन है वो बच जाएगा। लेकिन किसी को अगर कार्डियक अरेस्ट हो तो उसके पास कुल जमा दो मिनट होते हैं। अमेरिका में तो जगह-जगह ऐसी मशीनें होती हैं, जिनसे दिल को जोरदार झटका दिया जाता है, और समय पर ये काम हो गया तो आदमी बच जाता है। हिंदुस्तान में वो मशीन अस्पतालों में होती है, लेकिन आम तौर पर आदमी के अस्पताल पहुँचते-पहुँचते दस पंद्रह मिनट खर्च कर चुके होते हैं, जबकि ऐसी परिस्थिति में कोई भी सिर्फ उतनी ही देर बच सकता है जितनी देर आदमी अपनी साँस रोक कर जिंदा रह सकता है। एक मिनट, डेढ़ मिनट बहुत है।

बड़ी बात ये नहीं कि कार्डियक अरेस्ट हुआ किसे है, बड़ी बात है कि किसके सामने हुआ है। अगर आपने एकदम समय पर उसके दिल की धड़कन को चलाने में कामयाब रहे तो 5% ही सही, मर कर आदमी जिंदा हो जाता है। वो लड़की उन्हीं 5% में से एक थी, जो कल जी उठी। हो सकता है उस लड़की को भी जब वो पूरी तरह ठीक हो जाएगी तो ये समझ में न आए कि वो यमराज के घर से लौट आई है, क्योंकि आदमी ये समझ ही नहीं पाता कि उसकी मौत भी हो सकती है, पर सच यही है कि वो लौट आई है। हमने यमराज के चंपू से लोहा लिया। उसके लौट आने के बाद उसके फोन से एक नंबर लेकर फोन किया तो उसकी बहन ने फोन उठाया। मैंने इधर से इस लड़की की जानकारी दी तो उसने उधर से बताया कि वो उसकी बहन है। मैंने कहा कि वो जयपुर से दिल्ली आते हुए बहरोर के मिडवे पर अचानक बेहोश हो गईं। पर अब ठीक हैं। उधर से मैंने घबराई हुई आवाज सुनी थी, ठीक वैसे ही जैसे मेरी आवाज को उस अनजान शख्स ने सुना होगा जिसने मेरे भाई के बेहोश होने के बाद मुझे फोन कर खबर दी थी। पर उसके फोन रखते हुए मेरे कानों ने सुन लिया था कि ‘साँस नहीं चल रही है’। उस लड़की की बहन ने भी भीड़ की आवाज को सुना होगा, कि ‘साँस चल पड़ी है’। उस दिन मेरा भाई नहीं बचा, लेकिन कल किसी की बहन बच गयी। सोचता हूँ मेरा भाई भी बच गया होता।

काश उसके यूँ ही गिर पड़ने पर उसके सीने पर भी किसी ने खूब मारा होता। इतना मारा होता कि उसकी पसली टूट जाती। पर क्या पता इससे उसके दिल की धड़कन लौट आती। लौट क्या आती, लौट ही आती। पसलियाँ फिर ठीक हो जाती हैं, लेकिन दो मिनट से ज्यादा दिल की धड़कन बंद रह तो फिर कुछ भी ठीक नहीं होता। काश हमारे यहाँ ‘बाबा ब्लैक शिप’ पढ़ाने की जगह स्कूलों में इस तरह के प्राथमिक उपचार आदि के बारे में पढ़ाया जाता तो शायद एक संजय सिन्हा आज बिलख नहीं रहे होते। वो भी उस लड़की के घर वालों की तरह मुस्कुरा रहे होते, और बता रहे होते कि अरे यूँ ही गर्मी से बेहोश हो गये थे, पर किसी ने सीने पर मार-मार कर सीना ही सूजा दिया है। कोई नहीं, सूजा हुआ सीना भी ठीक हो जाएगा, मौत के मुँह से निकलने की यादें भी धुंधली हो जाएंगी। जिन्दगी की यादें धुंधली हो जाती हैं। यादों का धुंधला जाना ही जीवन का चक्र है। यादों का थम जाना तो मौत होती है। चंद तस्वीरों और एक तारीख में सिमट जाने वाली यादें अगर रुलाती हैं, वो यादें तो खुशनुमा यादें होती हैं, जिनमें मौत से लड़ कर लौट आने का थ्रिल होता है। भविष्य में अगर आपको कोई इस तरह अचानक यमराज के चंपू का शिकार होता हुआ मिले तो उसे छोड़िएगा नहीं। तमाशबीन मत बनिएगा। लड़का हो या लड़की उसके सीने पर अपने हाथों से हमला बोल दीजिएगा। उसके होठों को अपने होठों से, अपने हिस्से की थोड़ी हवा दे दीजिएगा। क्या पता कहीं किसी संजय सिन्हा के आँसू इससे पुछ जाएं! क्या पता आपको दुआ मिले, दुआ एक जिंदगी को लौटा लेने की!

(देश मंथन 09 जून 2016)

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