Monday, December 23, 2024
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‘नौलखा’ सूट : सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया

राजीव रंजन झा :

वैसे तो नरेंद्र मोदी बड़े शानदार संचारक हैं, खूब जानते-समझते हैं कि किस मौके पर क्या कहना है, कैसे कहना और क्या नहीं कहना है, लेकिन ओबामा की भारत यात्रा के दौरान वे एक भारी चूक कर गये। एक सूट पहन लिया, जिसके बारे में कहा गया कि वह नौलखा सूट है।

मोदी मंत्रिमंडल और संघ के लिए भारी केजरीवाल!

राजेश रपरिया :

दिल्ली विधानसभा के चुनावी सर्वेक्षणों में खारिज अरविंद केजरीवाल ‘विजेता’ बन कर उभरे हैं। इन सर्वेक्षणों में केजरीवाल के पक्ष में मतदाताओं का रुझान बढ़ रहा है।

उम्मीदों के बोझ से दबे हैं मोदी और ओबामा

राजेश रपरिया :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा उम्मीदों के भारी बोझ से दबे हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली पहुँच चुके हैं। नाभिकीय, ट्रांसफर प्राइसिंग, रक्षा वैदेशिक व्यापार संबध, जलवायु परिवर्तन आदि मुद्दों पर सार्थक पहल की उम्मीद दोनों देशों को है।

वही राग- वही रंग, फिर कैसे बदलेगा नीति आयोग?

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आज तक :

प्रधानमंत्री मोदी का नीति आयोग और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के योजना आयोग में अंतर क्या है। मोदी के नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानागढ़िया और मनमोहन के योजना आयोग के मोंटक सिंह अहलूवालिया में अंतर क्या है। दोनों विश्व बैंक की नीतियों तले बने अर्थशास्त्री हैं।

वर्ष 2015 और देश की लकीरें!

क़मर वाहिद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

तो आपका समय शुरू होता है अब! और ‘हॉट सीट’ पर हैं, नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी, नीतीश कुमार और अरविन्द केजरीवाल! 2015 कोई मामूली साल नहीं है, जो हर साल की तरह बस आयेगा और चला जायेगा! यह लकीरों के बनने-बनाने और मिटने-मिटाने का साल है! इस साल को तय करना है कि देश किन लकीरों पर चलेगा?

योजना बंद, अब नीति (NITI) आयोग करेगी काम

देश मंथन डेस्क :

भाजपा नीत राजग सरकार के सत्तासीन होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए इसे खत्म करने की बात कही थी और इसकी जगह एक गतिशील संस्था की सिफारिश कर थी और नये वर्ष के पहले दिन ही इसको अमलीजामा पहना दिया गया है।

सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।

ओय गुइयाँ, फिर जनता-जनता!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

क्या करें? मजबूरी है! अभी ताजा मजबूरी का नाम मोदी है! यह जनता खेल तभी शुरू होता है, जब मजबूरी हो या कुर्सी लपकने का कोई मौका हो! इधर मजबूरी गयी, उधर पार्टी गयी पानी में!

चाय केतली तक अच्छी है मोदी जी

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार : 

कोई पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक के जरिये कभी सत्ता में नही आती। अगर ऐसा होता तो यूपी में भाजपा को कभी 11, कभी 20 और कभी 73 सीटें नहीं मिलतीं। सपा हमेशा जीतती और बसपा का सूपड़ा कभी साफ नही होता।

हम सब तोते हैं – रंजीत सिन्हा

डॉ. मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक : 

सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के निवास पर मुलाकातियों वाले रजिस्टर में आपको मेरा नाम नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने दो रजिस्टरों वाली व्यवस्था खत्म कर दी है।

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