Tag: संजय सिन्हा
बेटियों के गुनाहगार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ जब मैं देख रहा था, तब मैं स्कूल में रहा होऊंगा।
कब होगी आमची दिल्ली

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दिल्ली में तो सुबह-सुबह नींद खुल ही जाती है, लेकिन मुंबई आकर मैं चाहता हूँ कि कुछ देर और होटल के बिस्तर में दुबका रहूँ। फिर तो जब सुबह होगी तो हो ही जायेगी।
‘गजेन्द्र मोक्ष’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ कहती थी कि मेरे पाँव में चक्कर बना हुआ है, इसलिये मैं घूमता रहूँगा।
तो क्या बड़ा होकर मैं गोल-गोल घूमूंगा? लेकिन गोल-गोल क्यों घूमूंगा, उससे तो मुझे चक्कर आने लगता है। फिर पाँव में चक्कर का मतलब क्या हुआ?
कल मैंने वाघा बार्डर की चर्चा की थी और आज मैंने सोचा था कि उस खूबसूरत लड़की की आँखों की कहानी बयाँ करूंगा, जो मुझे भारत-पाक की कंटीली सीमा के उस पार मिली थी, जिससे मैं कोई बात नहीं कर पाया था सिवाय उसकी तसवीर खींचने के और वो भी मुझसे एक शब्द नहीं बोल पायी थी, सिवाय मेरी तस्वीर लेने के।
तोड़ो नहीं, जोड़ो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले साल मैं अमृतसर में वाघा बॉर्डर गया था। वाघा बॉर्डर पर हर शाम एक खेल होता है। देशभक्ति का खेल।
वहाँ अटारी सीमा पर शाम के पाँच बजे भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के गेट खुलते हैं और दोनों देशों के सैनिक अपने सैन्यबल का प्रदर्शन करते हैं।
रणछोड़ ही असली योद्धा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक ठाकुर साहब थे। ठाकुर साहब की घनी-घनी मूंछें थीं।
दुश्मन को अपना बनायें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये कहानी मैंने नहीं लिखी। कहीं सुनी थी, लेकिन इसमें संदेश इतना अच्छा छिपा था कि आपसे साझा किए बिना नहीं रह पाऊंगा।
जुबाँ से दिये जख्म जिन्दगी भर नहीं भरते

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी एक परिचित किसी को कुछ भी कह सकती हैं। वो स्पष्टवादी हैं। उन्हें किसी को कुछ भी कह देने में कोई गुरेज नहीं है।
वो कोई भी बात कहने के बाद कहती हैं, “माफ कीजिएगा, मैं साफ बोलती हूँ।
अकबर को क्या जरूरत पूजा करने की!

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ दिन पहले मैं अमिताभ बच्चन से मिलने उनके दिल्ली वाले घर में गया था। पहले भी कई बार जा चुका हूँ, लेकिन इस बार जब मैं उनसे मिलने गया तो मुझे उनके साथ कहीं जाना था। मैं ड्राइंग रूम में बैठ कर चाय पी रहा था, अमिताभ बच्चन तैयार हो रहे थे।
भरोसे की नाव पर चलते हैं ‘रिश्ते’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माइक्रोस्कोप से मेरा पहला पाला दसवीं कक्षा में पड़ा था। मेरे टीचर ने मुझे वनस्पति शास्त्र की पढ़ाई में पहली बार प्याज के एक छिलके को माइक्रोस्कोप में डाल कर दिखाया था कि देखो माइक्रोस्कोप में ये कैसा दिखता है।
अपने-अपने रिश्तों का बोध होना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पत्नी धीरे से आकर कान में फुसफुसाई कि शायद वो माँ बनने वाली है।
ट्रेन की रफ्तार बहुत तेज थी। मैं ऊपर बर्थ पर लेट कर किताब पढ़ रहा था।