Tag: नौकरी
प्रेम करने वाला सबको संग लेकर चलते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी नौकरी पहले लगी थी, पत्रकारिता की पढ़ाई में दाखिला बाद में मिला था। जिन दिनों मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, एक लड़की से मेरी दोस्ती हुई। मेरी तरफ से दोस्ती सिर्फ दोस्ती तक सीमित थी, लेकिन अक्सर लड़कियाँ दोस्ती, प्रेम और शादी तीनों की चाशनी बना लेती हैं। उसने भी ऐसा ही किया और जिस दिन कॉलेज में मेरा आखिरी दिन था वो मेरे पास शादी का प्रस्ताव लेकर पहुँच गयी।
हिन्दी में नौकरी की संभावना कहाँ है

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:
हिन्दी में नौकरी की संभावनाएँ लगातार कम हुई हैं। हो रही हैं। एक समय था जब हिन्दी टाइपराइटर पर कोई ऐसा-वैसा बैठ भी नहीं सकता था। टाइपिंग से अनजान व्यक्ति शायद एक शब्द भी टाइप नहीं कर पाता। अगर हिन्दी में काम करना है, कुछ भी, कितना भी तो हिन्दी टाइपिस्ट के बिना काम नहीं हो सकता था। इसलिए ज्यादातर दफ्तरों में बिना काम के भी टाइपिस्ट होते थे या वहाँ काम ही ना हो तो अलग बात है।
नैतिक पतन

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे एक परिचित ने पासपोर्ट बनने के लिए आवेदन किया। यह तो आप जानते ही होंगे कि पासपोर्ट बनने के क्रम में पुलिस वाले आपके घर आकर यह जाँचते हैं कि पासपोर्ट में दी गयी जानकारी सही है या नहीं। तो मेरे परिचित के घर भी पुलिस यह जाँच करने पहुँची कि उनका पता सही है या नहीं।
‘व्यापम’ से डर लगता है जी

सुशांत झा, पत्रकार :
व्यापम की वेबसाइट देख रहा था कि इसमें मेडिकल या प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट है या नहीं। क्योंकि डॉक्टर भी मारे गये हैं, पत्रकार भी और चपरासी भी। बड़ा घालमेल है। इसका गठन तो हुआ था मेडिकल इंट्रेस एक्जाम के लिए, लेकिन बाद में किसी 'दिमाग' वाले CM ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा हटा दिया और उसके लिए अलग बोर्ड बना दिया।
प्यार कैसे पनपे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये बात ठीक से याद नहीं कि सबसे पहले किसने मुझे ये समझाया था कि हिन्दुस्तान में तीन ही नौकरी ऐसी हैं, जिनमें असली दबदबा है।
पहली नौकरी पीएम की, दूसरी सीएम की और तीसरी डीएम की। हमारे साथी कहा करते थे कि पीएम के पास देश चलाने का पावर होता है, सीएम के पास राज्य चलाने का और डीएम के पास जिला चलाने का। अगर राजाओं वाली जिन्दगी जीनी हो तो आईएएस बन जाओ और जीवन भर मौज करो।
जिसकी लाठी उसकी भैंस

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन
मुझे लगता है 'मेक इन इंडिया' के लिए बाल मजदूरी जरूरी है।
क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा :
केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।
हमारी-आपकी ज़िंदगी का आखिर मकसद क्या है?

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक अनपढ़ आदमी के नाम कहीं से एक चिट्ठी आयी। अनपढ़ आदमी अकेला था। न आगे नाथ न पीछे पगहा। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी ने उस अनपढ़ आदमी के नाम घर पर चिट्ठी भेजी हो। उस आदमी ने उलट-पलट कर उस लिफाफे को देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इसमें लिखा क्या है। किसी ने उसे चिट्ठी लिखी ही क्यों?
क्या आपको वाकई अपने पेशे से प्यार है?

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे एक रिश्तेदार की बेटी इन दिनों वकालत की पढ़ाई कर रही है। वह बहुत मेधावी है और मुझे पता है कि उसे हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा में 95% से अधिक मार्क्स मिले थे। जब वह मेरे पास करियर काउंसलिंग के लिए आयी थी, तो उसके मन में दुविधा थी कि उसे कानून की पढ़ाई करनी चाहिए या नहीं?