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अपने पुरुषार्थ से पाकिस्तान को सबक सिखा सकते हैं
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मोदी के समूचे भाषण के दौरान अमेरिकी संसद में लगातार तालियाँ बजती रहीं। यद्यपि उनकी अंग्रेजी से मैं कभी इम्प्रेस नहीं होता, फिर भी मनमोहन की अंग्रेजी से इसे बेहतर मानता हूँ। मनमोहन तो हिंदी बोलते थे या अंग्रेजी-कभी लगता ही नहीं था कि उनकी तबीयत ठीक-ठाक है।
हाँ, दिल्ली को एटम बम के धमाके से हिरोशिमा में बदलने की साजिश थी
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
परमाणु तकनीक की तस्करी और चोरी के बल पर पाकिस्तान के लिए एटम बम के, जिसे "इस्लामिक बम" भी करार दिया जाता है, निर्माता पाकिस्तानी वैज्ञानिक डाक्टर अब्दुल कादिर खाँ ने जो रहस्योदघाटन शनिवार को इस्लामाबाद में देश के परमाणु ताकत बनने के मौके पर आयोजित "यौम-ए-तकबीर" रैली में किया कि 1984 में हम कहूटा से दिल्ली को पाँच मिनट के भीतर टारगेट करने जा रहे थे पर ऐन समय में पाकिस्तान के सैन्य शासक तानाशाह जियाउल हक ने इजाजत नहीं दी, कहीं से गलत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि उसी साल हम न्यूक्लीयर टेस्ट करना चाहते थे मगर जिया साहब ने यह कहते हुए रोक दिया कि टेस्ट करने से अमेरिका सहित सभी देश हमारी आर्थिक मदद रोक देंगे।
मृत्यु महासत्य है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अपने 'पिता' की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कल मैं गढ़ मुक्तेश्वर के पास ब्रज घाट गया। दिल्ली में गंगा नहीं, जमुना है। पर हमारे यहाँ मान्यता है कि मरने वाले को मुक्ति ही तब मिलती है, जब उसकी अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं।
सिर्फ बिरयानी और फिल्में
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
पाकिस्तान से खबरें आ रही हैं, जिनके मुताबिक पाकिस्तान सरकार का कहना है कि पठानकोट में आतंकीकांड भारत सरकार ने खुद ही कराया है। पाकिस्तानी बयान के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
शवयात्रा में क्रिकेट
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैं ऊपर वाले प्रार्थना करता हूँ, कि जीते जी वह चाहे जैसा सलूक करे मेरे साथ। पर मेरी मौत उस दिन ना शेड्यूल करे, जिस दिन भारत और पाकिस्तान का वन डे क्रिकेट मैच हो।
जय भारत। जय पाकिस्तान। जय बांग्लादेश।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जब आप "भारत की बर्बादी के नारे" लगाएँ और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" बोलें, तब यह देशद्रोह है, लेकिन अगर आप "भारत जिन्दाबाद" और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" दोनों साथ-साथ बोलें और दोनों देशों की तरक्की की कामना करें, तो यह इस उप-महाद्वीप में शांति और सौहार्द्र की हमारी आकांक्षा है।
दुस्साहसी माँ-बाप ही बेटियों को जेएनयू भेजेंगे!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
अगले सत्र से जेएनयू में प्रवेश लेने वाली लड़कियों की संख्या में खासी गिरावट आ सकती है। पिछले एक महीने में ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत हुई, जो अपनी बेटियों को उच्च-शिक्षा के लिए किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में भेजना चाहते हैं, लेकिन जेएनयू का नाम आते ही वे काँपने लगते हैं।
हम-दर्दों को दूर भगाओ, गम-दर्दों से राहत पाओ।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
भारत जैसे जटिल देश की राजनीति भी बेहद शातिराना तरीके से खेली जाती है। इस ग्लोबल देश में व्यूह रचना¢एँ अब इस तरह से होने लगी हैं कि बिहार चुनाव को प्रभावित करना हो, तो दादरी में एक घटना करा दो और उसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दो। एक आदमी बलि का बकरा बनेगा, तो हजारों-लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओं-पूंजीपतियों-ठेकेदारों की देवियाँ और अल्लाह खुश हो जाएंगे। एक अखलाक को बलि का बकरा बनाने से आपको मालूम ही है कि कितनों की देवियाँ और अल्लाह उनपर मेहरबान हो गये!
पाकिस्तान : यह माजरा क्या है?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या पाकिस्तान बदल रहा है? पठानकोट के बाद पाकिस्तान की पहेली में यह नया सवाल जुड़ा है। लोग थोड़ा चकित हैं। कुछ-कुछ अजीब-सा लगता है। आशंकाएँ भी हैं, और कुछ-कुछ आशाएँ भी! यह हो क्या रहा है पाकिस्तान में? मसूद अजहर को पकड़ लिया, जैश पर धावा बोल दिया, सेना और सरकार एक स्वर में बोलते दिख रहे हैं, पाकिस्तान अपनी जाँच टीम भारत भेजना चाहता है, और चाहता है कि रिश्ते (Indo-Pak Relations) सुधारने की बातचीत जारी रहे। ऐसा माहौल तो इससे पहले कभी पाकिस्तान में दिखा नहीं! तो क्या वाकई पाकिस्तान में सोच बदल रही है? क्या अब तक वह आतंकवादियों के जरिये भारत से जो जंग लड़ रहा था, उसे उसने बेनतीजा मान कर बन्द करने का फैसला कर लिया है? क्या वहाँ की सेना भी उस जंग से थक चुकी है? क्या पाकिस्तान इस बार वाकई आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा या फिर वह बस दिखावा कर रहा है? क्या उस पर भरोसा करना चाहिए? टेढ़े सवाल हैं।
सामना, शहादत और मातम!
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जग नहीं सुनता कभी दुर्बल जनों का शांति प्रवचन
पाकिस्तान के जन्म की कथा, उसकी राजनीति की व्यथा और वहाँ की सेना की मनोदशा को जान कर भी जो लोग उसके साथ अच्छे रिश्तों की प्रतीक्षा में हैं, उन्हें दुआ कि उनके स्वप्न पूरे हों। हमें पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाते समय सिर्फ इस्लामी आतंकवाद की वैश्विक धारा का ही विचार नहीं करना चाहिए बल्कि यह भी सोचना चाहिए कि आखिर यह देश किस अवधारणा पर बना और अब तक कायम है? पाकिस्तान सेना का कलेजा अपने मासूम बच्चों के जनाजों को कंधा देते हुए नहीं काँपा (पेशावर काण्ड) तो पड़ोसी मुल्क के नागरिकों और सैनिकों की मौत उनके लिए क्या मायने रखती है।