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पठानकोट हमला : मोदी सरकार पर सवाल
राजेश रपरिया :
पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के खौफनाक हमले से पहली बार मोदी सरकार के कामकाज, तत्परता, सतर्कता को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल उठ खड़े हुए हैं, मोदी की टीम इंडिया के परखच्चे उड़ गये हैं। आतंकवादी कम से कम 48 घंटे पठानकोट में स्वच्छंद घूमते रहे और सुरक्षा तंत्र हाथ पर हाथ धरे अपनी माँद में बैठा प्रतीक्षा करता रहा।
पाकिस्तान: एक अटका हुआ सवाल
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पाकिस्तान एक अटका हुआ सवाल है। वह इतिहास की एक विचित्र गाँठ है। न खुलती है, न बाँधती है, न टूटती है, न जोड़ती है। रिश्तों का अजीब सफरनामा है यह! एक युद्ध, जो कहीं और कभी रुकता नहीं। एक युद्ध जो सरकारों के बीच है, और एक युद्ध जो जाने कितने रूपों में, कितने आकारों में, कितने प्रकारों में, कितने मैदानों में, कितने स्थानों में दोनों ओर के एक अरब चालीस करोड़ मनों में, दिलों में, दिमागों में सतत, निरन्तर जारी रहता है! यह युद्ध भी विचित्र है। कभी युद्ध करने के लिए युद्ध, तो कभी युद्ध के खिलाफ युद्ध! हाकी, क्रिकेट में एक-दूसरे को हारता देखने की जंग, तो जरा-सा मौका दिखते ही दिलों को जोड़ने की जंग भी!
गोली और खेल एक साथ कैसे?
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता की लंबे अर्से बाद शुरुआत को एक अच्छी पहल जरूर कहा जा सकता है। मगर जो मुद्दे हैं क्या उनको लेकर पाकिस्तान संजीदा साबित होगा और क्या उसकी फौज, जो असली ताकत है, पहली बार जन्मपत्री को ठोकर मार अपनी सरकार के साथ सुर में सुर मिलाएगी?
खेलों में उग्रवाद की आग पाकिस्तान ने ही लगायी थी !
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
पाकिस्तान क्रिकेट के सदर शहरयार साहब छाती पीट-पीट कर रोते हुए घर लौट रहे हैं कि उग्रवादियों के आगे बीसीसीआई झुक गयी और उसने श्रीनिवासन के कार्यकाल के दौरान सिरीज खेलने का जो करार किया था, उसे तोड़ दिया।
पाकिस्तान इंदिराजी से किस कदर खौफजदा था?
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
दो राय नहीं कि मैं कांग्रेस विरोध की संतान हूँ पर यह भी सच है कि महाराजा रणजीत सिंह के बाद देश को अंतरराष्ट्रीय विजय (पूर्वी पाकिस्तान का नाम नक्शे से मिटा कर बांग्लादेश का जन्म हुआ 1971) दिलाने वाली वीरांगना श्रीमती इंदिरा गाँधी का निजी तौर पर प्रशंसक भी हूँ, खास तौर पाकिस्तान के मोर्चे पर उनकी तैयारी की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम होगी।
इन बतछुरियों की काट ढूँढिए!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पाकिस्तान है कि मानता नहीं! मुँह में बात, बगल में छुरी! इधर बात, उधर छुरी! हम बतकही करते हैं, पाकिस्तान बतछुरी करता है! हर बार यही होता है. इस बार भी यही हुआ। वहाँ उफा में बात हुई। यहाँ बधाईबाजों ने महिमा गान शुरू किया। इधर अभी साझा बयान पर इतराने की अँगड़ाई उठी ही थी कि उधर जवाब में सीमा पार से बन्दूकों की आतिशबाजी चल पड़ी। कहीं कोई कोर-कसर बाकी न रह जाये, कहीं बातचीत का 'असली' नतीजा समझने में कोई गलतफहमी न रह जाये, इसलिए उधर से सशरीर कई आतंकवादी तोहफे भी फटाफट भेज दिये गये। पूरे सबूतों के साथ कि वे सारे के सारे पाकिस्तानी ही हैं। लो, कर लो बात!
भारत-पाक रिश्तेः कब पिघलेगी बर्फ
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तानी प्रधान मन्त्री से मुलाकात और उनका पाकिस्तान जाने का फैसला साधारण नहीं है। आखिर एक पड़ोसी से आप कब तक मुँह फेरे रह सकते हैं? बार-बार छले जाने के बावजूद भारत के पास विकल्प सीमित हैं, इसलिए प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी की इस साहसिक पहल की आलोचना बेमतलब है।
मोदी मुहिम से पड़ोसियों के दिलों में उतरता भारत
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की सफल बंगलादेश यात्रा ने यह साबित कर दिया है कि अगर नेतृत्व आत्मविश्वास से भरा हो तो अपार सफलताएँ हासिल की जा सकती हैं। बंगलादेश से लेकर नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका तक अब नरेन्द्र मोदी की यशकथा कही और सुनी जा रही है।
चोर की दाढ़ी में तिनका
अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
म्यांमार में की गई भारतीय सेना की कार्रवाई पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया देख कर कोई हैरानी नहीं हुई। उसका करुण क्रंदन और उसी रुआंसे स्वर में भारत को धमकी देने का अंदाज अपेक्षित था।
जो कभी भारतीय क्रिकेट बोर्ड के हमसफर थे, जहर लगते हैं
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
जब भारतीय टीम दंगा-फसाद में अदर हो गयी थी
तब किसी को भी कानों-कान खबर हुई थी क्या !!!
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को पैसे ने किस कदर मदान्ध कर दिया है कि जो मीडिया कभी उसका हम सफर हुआ करता था, वही अब जहर जैसा लगने लगा है। कारण जानना आसान है।