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उत्तर प्रदेश चुनाव : हार-जीत के बाद क्या?
हरिशंकर राय, सह-प्राध्यापक :
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के परिणाम से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली है।
वाह रे मुख्तार तेरी माया, भैया ने ठुकराया, बहन जी ने अपनाया!
अभिरंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार :
यह मेरे मुस्लिम भाइयों-बहनों का सौभाग्य है या दुर्भाग्य, कि देश से लेकर प्रदेश तक के चुनावों में ध्रुवीकरण की राजनीति की मुख्य धुरी वही बने रहते हैं? उनका समर्थन और वोट हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों को कौन-कौन से पापड़ नहीं बेलने पड़ते!
भाजपा में कैसे जगह पाते हैं दयाशंकर जैसे लोग
संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश भाजपा के नवनियुक्त उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती पर अभद्र टिप्पणी करके न सिर्फ अपनी कुर्सी गवाँ बैठे बल्कि उन्हें पार्टी से भी छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। लखनऊ के हजरतगंज थाने में उन पर एससी-एसटी एक्ट समेत कई धाराओं में प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गयी है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के सीमित होते विकल्प
संदीप त्रिपाठी :
बसपा से बगावत कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहली गलती की थी, दूसरी गलती उन्होंने सपा को गुंडों की पार्टी कह के की। मौर्य की पहचान मौर्य-कुशवाहा समाज के नेता के रूप में कम, मायावती के सिपहसालार के रूप में ज्यादा रही है। सपा के विरुद्ध विषवमन के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में शामिल होने की जुगत में जुटे हैं। भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य सभी नपा-तुला बोल रहे हैं। स्वामी प्रसाद अब लखनऊ से दिल्ली के बीच दौड़ लगा रहे हैं।
बसपा नहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य नुकसान में
संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनावों की सरगर्मी अभी से नजर आने लगी है।
भाजपा के लिए कठिन परीक्षा हैं उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का सिरमौर बनकर भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता पर तो काबिज हो गयी है पर अब इन दोनों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी साख दाँव पर है।
दिल्ली में दलित वोटर होंगे निर्णायक
संदीप त्रिपाठी : दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार दलित वोट निर्णायक भूमिका में होंगे। पूरी दिल्ली में एक वर्ग के रूप में सबसे ज्यादा संख्या दलितों की ही है। दिल्ली के कुल 1,30,85,251 मतदाताओं में 17 फीसदी दलित हैं। कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 12 तो सुरक्षित हैं ही, आठ अन्य क्षेत्रों में भी दलित प्रभावी संख्या में हैं।
सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।
चाय केतली तक अच्छी है मोदी जी
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
कोई पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक के जरिये कभी सत्ता में नही आती। अगर ऐसा होता तो यूपी में भाजपा को कभी 11, कभी 20 और कभी 73 सीटें नहीं मिलतीं। सपा हमेशा जीतती और बसपा का सूपड़ा कभी साफ नही होता।