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उत्तर प्रदेश चुनाव : हार-जीत के बाद क्या?

हरिशंकर राय, सह-प्राध्यापक :
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के परिणाम से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के सीमित होते विकल्प

संदीप त्रिपाठी :
बसपा से बगावत कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने पहली गलती की थी, दूसरी गलती उन्होंने सपा को गुंडों की पार्टी कह के की। मौर्य की पहचान मौर्य-कुशवाहा समाज के नेता के रूप में कम, मायावती के सिपहसालार के रूप में ज्यादा रही है। सपा के विरुद्ध विषवमन के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा में शामिल होने की जुगत में जुटे हैं। भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य सभी नपा-तुला बोल रहे हैं। स्वामी प्रसाद अब लखनऊ से दिल्ली के बीच दौड़ लगा रहे हैं।
भाजपा के लिए कठिन परीक्षा हैं उत्तर प्रदेश और बिहार के चुनाव

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का सिरमौर बनकर भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र की सत्ता पर तो काबिज हो गयी है पर अब इन दोनों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसकी साख दाँव पर है।
सामाजिक न्याय की ताकतों की लीलाभूमि पर आखिरी जंग

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में पुराने जनता दल के साथियों का साथ आना बताता है कि भारतीय राजनीति किस तरह ‘मोदी इफेक्ट’ से मुकाबिल है।
चाय केतली तक अच्छी है मोदी जी

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
कोई पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक के जरिये कभी सत्ता में नही आती। अगर ऐसा होता तो यूपी में भाजपा को कभी 11, कभी 20 और कभी 73 सीटें नहीं मिलतीं। सपा हमेशा जीतती और बसपा का सूपड़ा कभी साफ नही होता।