Thursday, November 21, 2024
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क्यों याद आ रहे हैं आम्बेडकर?

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

इतिहास के संग्रहालय से झाड़-पोंछ कर जब अचानक किसी महानायक की नुमाइश लगायी जाने लगे, तो समझिए कि राजनीति किसी दिलचस्प मोड़ पर है! इधर आम्बेडकर अचानक उस संघ की आँखों के तारे बन गये हैं, जिसका वह पूरे जीवन भर मुखर विरोध करते रहे, उधर जवाब में 'जय भीम' के साथ 'लाल सलाम' का हमबोला होने लगा है, और तीसरी तरफ हैदराबाद से असदुद्दीन ओवैसी उस 'जय भीम', 'जय मीम' की संगत फिर से बिठाने की जुगत में लग गये हैं, जिसकी नाकाम कोशिश किसी जमाने में निजाम हैदराबाद और प्रखर दलित नेता बी। श्याम सुन्दर भी 'दलित-मुस्लिम यूनिटी मूवमेंट' के जरिए कर चुके थे।

सूखा बड़ा कि आईपीएल?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:

अक्ल बड़ी कि भैंस? सूखा बड़ा कि आईपीएल? पहले सवाल पर तो देश में आम सहमति है। आज से नहीं, सदियों पहले से। दूसरा सवाल अभी कुछ दिन पहले ही उठा है। और देश इसका जवाब खोजने में जुटा है कि सूखा बड़ा है कि आईपीएल? लोगों को पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, मवेशियों को खिलाने-पिलाने के लिए, नहाने-धोने के लिए, खेतों को सींचने के लिए, अस्पतालों में ऑपरेशन और प्रसव कराने के लिए और बिजलीघरों को चलाने के लिए पानी दिया जाना ज्यादा जरूरी है या आईपीएल के मैचों के लिए स्टेडियमों को तैयार करने के लिए पानी देना ज्यादा जरूरी है?

काँग्रेस : बस ‘टीना’ में ही जीना!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

प्रशान्त किशोर ने काँग्रेस को एक 'क्विक फिक्स' फार्मूला दिया है। ब्राह्मणों को पार्टी के तम्बू में वापस लाओ। फार्मूला सीधा है। जब तक ब्राह्मण काँग्रेस के साथ नहीं आते, तब तक उत्तर प्रदेश में मुसलमान भी काँग्रेस के साथ नहीं आयेंगे। क्योंकि मुसलमान तो उधर ही जायेंगे, जो बीजेपी के खिलाफ जीत सके। मायावती के कारण अब दलित तो टूटने से रहे। तो कम से कम मुसलमान और ब्राह्मण तो काँग्रेस के साथ आयें! हालाँकि यह कोई नया फार्मूला नहीं है। उत्तर प्रदेश में तो चाय की चौपालों पर चुस्की मारने वाला हर बन्दा जानता है कि 2007 में ठीक इसी दलित-ब्राह्मण-मुसलमान की 'सोशल इंजीनियरिंग' से मायावती ने कैसे बहुमत पा लिया था।

‘काली खेती’ का गोरखधन्धा!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

अगर यह बात सच हो तो शायद यह UPA सरकार के दिनों का सबसे बड़ा घोटाला होगा! 'काली खेती' का घोटाला! लाखों अरब रुपये का घोटाला होगा यह। इतना बड़ा कि आप कल्पना तक न कर सकें! गिनतियों में उलझ कर दिमाग घनचक्कर हो जाये! छह सालों में यह छब्बीस करोड़ करोड़ रुपये का गड़बड़झाला है।

ऐसे ही ‘टाइमपास’ होता रहे!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :

विजय माल्या कहाँ है? उनका ट्वीट कहता है कि वह जहाँ कहीं भी हैं, देश छोड़ कर भागे नहीं हैं। वह भगोड़े नहीं हैं, कानून का पालन करनेवाले सांसद हैं! और उनका एक और ट्वीट मीडिया के दिग्गजों के नाम हैं, जिसमें वह कहते हैं कि आप भूल न जायें कि मैंने आपके लिए कब, क्या-क्या किया, क्योंकि मेरे पास सबके दस्तावेजी सबूत हैं! माल्या जी मीडिया की पोल खोलें तो हो सकता है कि बड़ी चटपटी स्टोरी बने, लेकिन असली कहानी तो 'टाइमपास' की है, जो बरसों से चल रही है, चलती ही जा रही है। 

‘भक्त’, ‘अभक्त’ और कन्हैया!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

'भक्त' और 'अभक्त' में देश विभक्त है! और तप्त है! इक्कीस महीनों से इक्कीसवीं सदी के इस महाभारत का चक्रव्यूह रचा जा रहा था। अब जा कर युद्ध का बिगुल बजा। लेकिन चक्रव्यूह में इस बार अभिमन्यु नहीं, कन्हैया है। तब दरवाजे सात थे, इस बार कितने हैं, कोई नहीं जानता! लेकिन युद्ध तो है, और युद्ध शुरू भी हो चुका है। यह घोषणा तो खुद संघ की तरफ से कर दी गयी है। संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी का साफ-साफ कहना है कि देश में आज सुर और असुर की लड़ाई है।

ताकि रोज का यह टंटा खत्म हो!

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

बात गम्भीर है। खुद प्रधानमंत्री ने कही है, तो यकीनन गम्भीर ही होगी! पर इससे भी गम्भीर बात यह है कि प्रधानमंत्री की इस बात पर ज्यादा बात नहीं हुई। क्योंकि देश तब कहीं और व्यस्त था। उस आवेग में उलझा हुआ था, जिसके बारूदी गोले प्रधानमंत्री की अपनी ही पार्टी के युवा संगठन ने दाग़े थे! भीड़ फैसले कर रही थी। सड़कों पर राष्ट्रवाद की परिभाषाएँ तय हो रही थीं। पुलिस टीवी कैमरों के सामने हो कर भी कहीं नहीं थी। टीवी कैमरों को सब दिख रहा था। पुलिस को कुछ भी नहीं दिख रहा था। दुनिया अवाक् देख रही थी। लेकिन इसमें हैरानी की क्या बात? क्या ऐसा पहले नहीं हुआ है? याद कीजिए!

किसकी जेब के आठ लाख करोड़?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

हंगामा है, न गुस्सा। न चिन्ता है, न क्षोभ। 'ग्रेट इंडियन बैंक डकैती' हो गयी तो हो गयी। लाखों करोड़ रुपये लुट गये, तो लुट गये। खबर आयी और चली गयी। न धरना, न प्रदर्शन, न नारे, न आन्दोलन। न फेसबुकिया रणबाँकुरे मैदान में उतरे। न किसी ने पूछा कि कर्ज़ों का यह महाघोटाला करनेवाले कौन हैं?

कितनी गाँठों के कितने अजगर?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :  

मन के अन्दर, कितनी गाँठों के कितने अजगर, कितना जहर? ताज्जुब होता है! जब एक पढ़ी-लिखी भीड़ सड़क पर मिनटों में अपना उन्मादी फैसला सुनाती है, बौरायी-पगलायी हिंसा पर उतारू हो जाती है। स्मार्ट फोन बेशर्मी से किलकते हैं, और उछल-उछल कर, लपक-लपक कर एक असहाय लड़की के कपड़ों को तार-तार किये जाने की 'फिल्म' बनायी जाने लगती है। यह बेंगलुरू की ताजा तस्वीर है, बेंगलुरू का असली चेहरा है, जो देश ने अभी-अभी देखा, आज के जमाने की भाषा में कहें तो यह बेंगलुरू की अपनी 'सेल्फी' है, 'सेल्फी विद् द डॉटर!'

जाति रे जाति, तू कहाँ से आयी?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :  

भारत में जाति कहाँ से आयी? किसकी देन है? बहस बड़ी पुरानी है। और यह बहस भी बड़ी पुरानी है कि आर्य कहाँ से आये? इतिहास खोदिए, तो जवाब के बजाय विवाद मिलता है। सबके अपने-अपने इतिहास हैं, अपने-अपने तर्क और अपने-अपने साक्ष्य और अपने-अपने लक्ष्य! जैसा लक्ष्य, वैसा इतिहास। लेकिन अब मामला दिलचस्प होता जा रहा है। इतिहास के बजाय विज्ञान इन सवालों के जवाब ढूँढने में लगा है। और वह भी प्रामाणिक, साक्ष्य-सिद्ध, अकाट्य और वैज्ञानिक जवाब। हो सकता है कि अगले कुछ बरसों में ये सारे सवाल और विवाद खत्म हो जायें। वह दिन ज्यादा दूर नहीं।

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