Sunday, September 14, 2025
टैग्स Qamar Waheed Naqvi

Tag: Qamar Waheed Naqvi

घेलुआ और 2019 के टोटके!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

राहुल और शौरी से प्रशान्त की मुलाकातें बताती हैं कि राजनीति काफी रोचक होती जा रही है! अरुण शौरी पिछले काफी समय से नरेन्द्र मोदी के मुखर आलोचक रहे हैं और समझा जाता है कि बिहार की हार के बाद जारी बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं के बयान का मसौदा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका थी।

शुभ नहीं हैं 2016 के संकेत!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

बिहार में सबकी साँस अटकी है! क्योंकि इस चुनाव पर बहुत कुछ अटका और टिका है! राजनीति से लेकर शेयर बाजार तक सबको बिहार से बोध की प्रतीक्षा है! किसी विधानसभा चुनाव से शेयर बाजार इतना चिन्तित होगा, कभी सोचा नहीं था। लेकिन वह इस बार वह बहुत चिन्तित है। इतना कि देश की तीन बड़ी ब्रोकरेज कम्पनियों ने खुद अपनी टीमें बिहार भेजीं! मीडिया की चुनावी रिपोर्टों पर भरोसा करने के बजाय खुद धूल-धक्कड़ खा कर भाँपने की कोशिश की कि जनता का मूड क्या है? क्यों भला?

अब ताप में हाथ मत तापिए!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

चिन्ता की बात है। देश तप रहा है! चारों तरफ ताप बढ़ रहा है! क्षोभ, विक्षोभ, रोष, आवेश से अखबार रंगे पड़े हैं, टीवी चिंघाड़ रहे हैं, सोशल मीडिया पर जो कुछ 'अनसोशल' होना सम्भव था, सब हो रहा है! लोग सरकार को देख रहे हैं! सरकार किसी और को देख रही है! कुत्ते संवाद के नये नायक हैं!

कुछ नहीं करना भी एक फैसला है!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

तो प्रधानमंत्री आखिर दादरी पर भी बोले। मौका गुरुवार को दिन की उनकी आखिरी चुनावी रैली का था। इसके पहले वह दिन भर में बिहार में तीन रैलियाँ कर चुके थे। गोमांस पर लालू प्रसाद यादव के बयान पर खूब दहाड़े भी थे। 'यदुवंशियों के अपमान' से लेकर 'लालू की देह में शैतान के प्रवेश' तक जाने क्या-क्या बोल चुके थे वह! एक-एक कर तीन रैलियाँ बीतीं, दादरी पर नमो ने कोई बात नहीं की। लोगों ने सोचा कि कहाँ प्रधानमंत्री ऐसी छोटी-छोटी बातों पर बोलेंगे? अब यह नीतीश कुमार के ट्वीट का कमाल था या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले से तय किया था कि वह नवादा में दिन की अपनी आखिरी रैली में ही दादरी पर बोलेंगे, यह तो पता नहीं। खैर वह बोले! अच्छी बात है!

तब बहुत बदल चुका होगा देश!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!

यह छोटा-सा कदम उठेगा हुजूर?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

शर्म कहीं मिलती है? दिल्ली में कहीं मिलती है? अपने देश में कहीं मिलती है? यहाँ तो कहीं नहीं मिलती! किसी को उसकी जरूरत ही नहीं है! यह देश की राजधानी का आलम है। जहाँ बड़ी-बड़ी सरकारें हैं। वहाँ अस्पतालों की ऐसी बेशर्मी, ऐसी बेहयाई है कि शर्म कहीं होती तो शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरती! लेकिन दिल्ली में कुछ नहीं हुआ। न अस्पतालों को, न सरकारों को! सब वैसे ही चल रहा है, जैसे कुछ हुआ ही न हो!

बिहार में किसकी हार?

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

बिहार विधानसभा चुनाव। बिहार में किसकी हार? सवाल अटपटा लगा न! लोग पूछते हैं कि चुनाव जीत कौन रहा है! लेकिन यहाँ सवाल उलटा है कि चुनाव हार कौन रहा है? बिहार के धुँआधार का अड़बड़ पेंच यही है! चुनाव है तो कोई जीतेगा, कोई हारेगा। लेकिन बिहार में इस बार जीत से कहीं बड़ा दाँव हार पर लगा है! जो हारेगा, उसका क्या होगा?

संघ के दरबार में सरकार!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

हाजिर हो! सरकार हाजिर हो! तो संघ के दरबार में सरकार की हाजिरी लग गयी! पेशी हो गयी! एक-एक कर मन्त्री भी पेश हो गये, प्रधान मन्त्री भी पेश हो गये! रिपोर्टें पेश हो गयीं! सवाल हुए, जवाब हुए। पन्द्रह महीने में क्या काम हुआ, क्या नहीं हुआ, आगे क्या करना है, क्यों करना है, कैसे करना है, क्या नहीं करना है, सब तय हो गया। तीन दिन, चौदह सत्र, सरकार के पन्द्रह महीने, संघ परिवार के अलग-अलग संगठनों के 93 प्रतिनिधियों की जूरी, हर उस मुद्दे की पड़ताल हो गयी, जो संघ के एजेंडे में जरूरी है!

आरक्षण के खिलाफ हवाई घोड़े!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :

क्या यह महज संयोग ही है कि हार्दिक पटेल ने आरक्षण का मुद्दा तभी उठाया, जब जातिगत जनगणना के पूरे आँकड़े मोदी सरकार दबाये बैठी है? सवाल पर सोचिए जरा! जातिगत जनगणना के शहरी आँकड़े तो अभी बिलकुल गुप्त ही रखे गये हैं, और आरक्षण का बड़ा ताल्लुक शहरी आबादी से ही है। लेकिन केवल ग्रामीण आँकड़ों का भी जो जरा-सा टुकड़ा सरकार ने जाहिर किया है, उसमें भी ओबीसी के आँकड़े उसने पूरी तरह क्यों छिपा लिये? यह नहीं बताया कि कितने ओबीसी हैं? क्यों? ओबीसी के आँकड़े बिहार चुनाव में मुद्दा बन जाते? बनते तो क्यों? ओबीसी के आँकड़ों में ऐसा क्या है, जिसे सरकार अभी सामने नहीं आने देना चाहती! इसलिए क्या यह वाकई संयोग है कि ठीक इसी समय गुजरात से ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी जाती है?

क्यों ‘आरक्षण-मुक्त’ भारत का नारा?

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

गुजरात के पाटीदार अनामत आन्दोलन (Patidar Anamat Andolan) के पहले हार्दिक पटेल को कोई नहीं जानता था। हालाँकि वह पिछले दो साल में छह हजार हिन्दू लड़कियों की 'रक्षा' कर चुके हैं! ऐसा उनका खुद का ही दावा है! बन्दूक-पिस्तौल का शौक हार्दिक के दिल से यों ही नहीं लगा है।

- Advertisment -

Most Read

तलवों में हो रहे दर्द से हैं परेशान? इस धातु से मालिश करने से मिलेगा आराम

अगर शरीर में कमजोरी हो या फिर ज्यादा शारीरिक मेहनत की हो, तो पैरों में तेज दर्द सामान्य बात है। ऐसे में तलवों में...

नारियल तेल में मिला कर लगायें दो चीजें, थम जायेगा बालों का गिरना

बालों के झड़ने की समस्या से अधिकांश लोग परेशान रहते हैं। कई लोगों के बाल कम उम्र में ही गिरने शुरू हो जाते हैं,...

कहीं आप तो गलत तरीके से नहीं खाते हैं भींगे बादाम?

बादाम का सेवन सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। लगभग हर घर में बादाम का सेवन करने वाले मिल जायेंगे। यह मांसपेशियाँ (Muscles)...

इन गलतियों की वजह से बढ़ सकता है यूरिक एसिड (Uric Acid), रखें इन बातों का ध्यान

आजकल किसी भी आयु वर्ग के लोगों का यूरिक एसिड बढ़ सकता है। इसकी वजह से जोड़ों में दर्द होने लगता है। साथ ही...