Friday, November 22, 2024
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गलती को पुचकार कर सुधारें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कल रात सोते हुए मैं फूला नहीं समा रहा था कि मैंने कड़वी चाय को दुरुस्त करने की कला के साथ-साथ रिश्तों में प्यार के फूल खिलाने की विद्या भी आपको सिखलायी। मैंने कल जो पोस्ट लिखी थी, उसमें जिन्दगी का निचोड़ डाल दिया था। 

कड़वे रिश्तों में मीठे बोल

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

लानत है मुझ पर। पिछले 26 सालों में कल पहला मौका था, जब मुझसे मेरी पत्नी ने कहा कि एक कप चाय बना कर पिला दो और मैं करवट बदल कर सो गया। 

रिश्तों में ईमानदारी रखें

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। जो मुझसे मिलता है, मैं उसे बताता हूँ कि एक दिन आदमी के पास सबकुछ होगा, लेकिन वो तन्हा होगा। मैं जहाँ जाता हूँ, सबसे यही कहता हूँ कि अपने रिश्तों को पहचानिए, उनकी कद्र कीजिए। रिश्ते हैं, तो सब-कुछ है। 

रिश्तों की विरासत

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा के मन में सुबह-सुबह लड्डू क्यों फूट रहे हैं। तो मैं आज आपको ज्यादा नहीं उलझाऊँगा। 

रिश्तों का पाठ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं। 

रिश्ते मन के भाव से सुधरते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल रात मुझे एक लड़की ने फोन किया और रोने लगी। मैं बहुत देर तक समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है। मैं चुपचाप उस तरफ से रोने की आवाज सुनता रहा, फिर जब वो जरा शांत हुई, तो मैंने पूछा कि आप कौन हैं और क्यों रो रही हैं?

रिश्तों को समय दीजिए

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे दफ्तर के एक साथी को कुछ महीने पहले पिता बनने का सौभाग्य मिला है।

पाकिस्तान: एक अटका हुआ सवाल

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

पाकिस्तान एक अटका हुआ सवाल है। वह इतिहास की एक विचित्र गाँठ है। न खुलती है, न बाँधती है, न टूटती है, न जोड़ती है। रिश्तों का अजीब सफरनामा है यह! एक युद्ध, जो कहीं और कभी रुकता नहीं। एक युद्ध जो सरकारों के बीच है, और एक युद्ध जो जाने कितने रूपों में, कितने आकारों में, कितने प्रकारों में, कितने मैदानों में, कितने स्थानों में दोनों ओर के एक अरब चालीस करोड़ मनों में, दिलों में, दिमागों में सतत, निरन्तर जारी रहता है! यह युद्ध भी विचित्र है। कभी युद्ध करने के लिए युद्ध, तो कभी युद्ध के खिलाफ युद्ध! हाकी, क्रिकेट में एक-दूसरे को हारता देखने की जंग, तो जरा-सा मौका दिखते ही दिलों को जोड़ने की जंग भी!

जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

यह तो आप जानते ही हैं कि सबसे ज्यादा खुशी और सबसे ज्यादा दुख, दोनों अपने ही देते हैं।

बुनियादी विश्वास

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

माँ की सुनायी कहानियों में सिंहासन बत्तीसी की पुतलियों की कहानियों की मेरे मन पर अमिट छाप है। 

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