भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

आज सोच रहा हूँ कि सु़बह-सु़बह आपसे वो बात बता ही दूँ जिसे इतने दिनों से बतान के लिये मैं बेचन हूँ।

मैं पिछले ड़ेढ साल से हर रोज फैसबुक पर लिख रहै हूं। बिना नागा लिख रहा हूं। मेरी कोसिस है की हम सब आपस मॉ मिल कर मन के रिस्तों को जोड कर आपस में खुसी से जी सकें। मैं जानता ही कि रोज की जींदगी में आदमीन के पास इतने तनाव और दुक हैं की वो उनसे जूझता हुआ ही जीवन जिता चला जाता है। 

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ओह! आज सुबह-सुबह मुझसे टाइप करने में इतनी गलतियाँ हुई हैं कि पूछिए मत। लेकिन मैं जानता हूँ कि ऊपर का पूरा पैराग्राफ पढ़ने में आपको कोई परेशानी नहीं आई होगी। जानते हैं क्यों? 

क्योंकि आप सब मुझसे प्यार करते हैं। जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आपका ध्यान उसकी कमियों पर नहीं जाता। जब आप किसी से प्यार करते हैं तो आप उसकी कमियों की अनदेखी करते हैं। इसीलिए सुबह-सुबह मेरे लिखने की अशुद्धियों की ओर आपका ध्यान नहीं गया और गया भी तो आपने यही सोचा कि संजय सिन्हा ने जल्दबाजी में ऐसी गलतियाँ की होंगी, पर जो लिखा है वो पढ़ा ही जा रहा है। 

यही होता है, जब आप मन से बड़े हो जाते हैं तब। जब आप मन से बड़े हो जाते हैं और अपने रिश्तों को प्यार करते हैं तो आप उसमें छोटी-छोटी गलतियों को माफ करने लगते हैं, लेकिन आप जिससे प्यार नहीं करते, जिसे अपनी जिन्दगी में आत्मसात नहीं कर पाते, उसकी हर छोटी गलती भी आपको चुभने लगने लगती है। एक मामूली सी गलती भी आपको कचोटने लगती है। 

मेरी दादी कहा करती थी, “भावे की हर बात भली, ना भावे तो हर बात बुरी।”

यानी, जो आपको भाता है, उसकी हर बात आपको अच्छी लगती है, लेकिन जिसे आप पसन्द नहीं करते उसकी छोटी सी छोटी बात भी आपको नागवार गुजरती है।

खैर, मैं सुबह-सुबह आपको जो ज्ञान दे रहा हूँ, उसमें ऐसी कोई नयी बात नहीं जो आपको नहीं पता। आप हर स्थिति-परिस्थिति से वाकिफ हैं। आप हर बात जानते और समझते हैं। ये अलग बात है कि जितनी बातें हम जानते और समझते हैं, उन सबको जीवन में अमल कर पाने में भी चूक हो जाती है और हम सुख की जगह दुख को गले लगाये घूमते रहते हैं। 

हम इस बात से कभी दुखी नहीं होते कि हम में क्या कमी है, हम इस बात से दुखी रहते हैं कि मेरे साथी में क्या कमी है।

हम ये सोचने की जहमत नहीं उठाते कि हमारा चेहरा कैसा लग रहा है, हम ये देखने में जीवन गुजार देते हैं कि मेरे सामने वाले का चेहरा कैसा लग रहा है। 

हम खुद से कुछ उम्मीद नहीं करते, सामने वाले से हजारों उम्मीदें जोड़ लेते हैं। 

जब मैं छोटा था, तो अपने कमरे में मैंने पाँच रुपये का एक पोस्टर खरीद कर दीवार पर टाँग दिया था, जिस पर लिखा था, “कृपया अपना क्रोध यहाँ न निकालें।”

एक दिन पिताजी कमरे में आये। उन्होंने उस पोस्टर को देखा। पूछने लगे कि तुमने ये पोस्टर दीवार पर क्यों लगा रखा है। मैंने कहा कि इसमें संदेश है कि कृपया अपना क्रोध यहाँ न निकालें। पिताजी हँसने लगे। कहने लगे, “ तुम्हें इसे कलम से काट कर ये लिखना चाहिए कि मैं यहाँ अपना क्रोध नहीं निकालूंगा।”

मैं चुप रहा। पिताजी चले गये, फिर मैंने उनकी बात पर गौर किया। 

पिताजी सही कह रहे थे। हमें ये कहने की जगह कि आप ऐसा न करें, कोशिश ये करनी चाहिए कि हम ये कहें कि मैं ऐसा नहीं करता। मैंने पोस्टर पर पेन से काट कर लिख दिया कि मैं यहाँ अपना क्रोध नहीं निकालता। बात चाहे छोटी थी, लेकिन मेरे लिए जीवन संदेश की तरह थी। मैंने बहुत छोटी बात में ये पाठ पढ़ लिया था कि हमें दूसरों को संदेश देने की जगह पहले खुद संदेश को तन-मन में उतारना चाहिए। 

बहुधा ऐसा होता है कि दूसरों से वो उम्मीद करने लगते हैं, जो हम खुद कभी कर ही नहीं सकते। 

आज मैं बहुत लंबी पोस्ट नहीं लिख रहा। किसी ने मेरे पास चन्द अशुद्ध वाक्यों को लिख कर ये बताने की कोशिश की थी कि अगर आप वाक्य में छिपे सन्देश को समझने की कोशिश करते हैं तो आपका ध्यान अशुद्धियों की ओर नहीं जाता। आपका पूरा ध्यान सिर्फ भाव पर केंद्रित हो जाता है। भेजने वाले ने ही अपनी बात में सन्देश दिया था कि रिश्तों में भी भाव महत्वपूर्ण होते हैं, और जब भाव पर आपका ध्यान रहता है तो गलतियां नजरअन्दाज हो जाती हैं। 

सचमुच, रिश्तों को इसी तरह जीने की कोशिश कीजिए। गलतियों को छोड़िए, खूबियों को पहचानिए। जिस तरह मेरी आज की पोस्ट के पहले पैराग्राफ में कई गलतियाँ आपको स्पष्ट रूप में नजर आती हुई भी आपको नहीं खटक रहीं, उसी तरह रिश्तों में छोटी-छोटी गलतियों को देखने से खुद को रोकिए। रोक कर देखिए, क्या पता रिश्तों में मजा ही आ जाये। 

वैसे पिताजी होते तो मुझे ऐसा लिखने से रोकते। कहते, “तुम ये मत लिखो कि खुद को रोकिए, इसकी जगह ये लिखो कि मैं खुद को रोकता हूँ।”

आज पिताजी से माफी माँगते हुए लिख रहा हूँ कि कमियाँ सबकी जिन्दगी में हैं। सभी गलतियाँ करते हैं। अगर आप उस रिश्ते से प्यार करते हैं तो उन गलतियों की अनदेखी कीजिए और आगे बढ़ते हुए जिन्दगी की पोस्ट पढ़िए। मेरा यकीन कीजिए, जिन्दगी का मजा दोगुना हो जायेगा। 

(देश मंथन, 29 अप्रैल 2015)

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