भाव महत्वपूर्ण हो तो ‘मरा’ भी ‘राम’ होगा

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने बात सिर्फ अच्छे और बुरे पैसे की थी। मैंने सिर्फ इतना ही कहने की कोशिश की थी कि जिस तरीके से मनुष्य धन अर्जित करता है, वो तरीका ही धन की गुणवत्ता तय करता है। मैं जानता हूँ कि ये एक लंबे विवाद का विषय है। विवाद से भी अधिक ज्ञान और अज्ञान का विषय है।

जीवन को समझने का विषय है। मैं आसानी से इस विषय को छोड़ कर बाहर निकल सकता था, लेकिन इस विषय पर सोचते हुए मेरे ही मन की कई उलझनें दूर हो गई हैं। ‘कारण और प्रभाव’ पर मैं गहराई से सोच पाने में कामयाब हुआ हूँ। 

मैं अक्सर माँ से पूछता था कि राम की कहानी लिखी ही क्यों गई? महाभारत को भी लिखे जाने का कोई औचित्य था क्या? हर कहानी में ढेर सारे प्रसंगों की चर्चा करते हुए अन्त तो यही निकलता है- ‘एक था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गये खत्म कहानी।’

माँ हँसती और अपने राजा बेटा संजय सिन्हा के सिर को सहलाती हुई कहती कि हर कहानी में एक सन्देश होता है। लेकिन तुमने तो सन्देश के भीतर का निचोड़ पहले निकाल लिया है। 

“सन्देश के भीतर का निचोड़?” 

“हाँ, जीवन का निचोड़ इतना ही है – हर बार एक राजा होगा, एक रानी होगी और दोनों खत्म हो जायेंगे कहानी खत्म हो जायेगी। लेकिन कहानी एक राजा की खत्म होगी, दूसरे राजा की शुरू हो जायेगी।”

“तो क्या जीवन का निचोड़ इतना ही है?”

“हाँ, निचोड़ तो इतना ही है, इतना ही रहेगा। लेकिन उस राजा और रानी के होने का क्रम जीवन कहलायेगा। इसकी एक मियाद होगी। और इस मियाद का संचालन कारण और प्रभाव से होगा।”

“कारण और प्रभाव?”

“हाँ, बेटा। जब तुम अच्छे काम करोगे तो तुम्हें सभी वेरी गुड कहेंगे। राजा बेटा बुलायेंगे। गन्दे काम करोगे तो सभी बैड ब्वॉय कहेंगे। गन्दा बच्चा बुलायेंगे। यही होगा, कारण और प्रभाव। अच्छे काम का नतीजा अच्छा होगा, बुरे काम का नतीजा बुरा होगा। वो गाना भी तो तुमने सुना ही है कि जैसे करम करेगा, वैसे फल देगा भगवान।”

“माँ, भगवान की कहानियाँ तो आदमी ने लिखी हैं, अपनी सुविधा से उसमें कुछ-कुछ जोड़ दिया है, फिर उन्हें सच कैसे मानूँ?”

“तुम उन्हें सच मत मानो। लेकिन तुम स्कूल की किताब में जो पढ़ते हो, उसमें तुम्हें विज्ञान के जो प्रयोग समझाये गये हैं, उन्हें तो तुम मानते हो न!”

“हाँ, माँ। मैं उन्हें सच मानता हूँ। मैं उन्हें इसलिए सच मानता हूँ, क्योंकि मेरे टीचर ने उनका प्रयोग करके मुझे सब दिखाया है।”

“बिल्कुल ठीक मेरे प्यारे बच्चे! टीचर ने उसे रोचक ढंग से तुम्हें समझाया और तुम समझ गये। अब इस बात को भी तुम्हें मैं रोचक ढंग से समझाऊँगी कि राम की कहानी, कृष्ण की कहानी, पान्डवों और कौरवों की कहानियाँ क्यों लिखी गईं। क्यों सुनाई गईं।”

“क्यों माँ?”

“क्योंकि जब तुम बड़े हो जाओगे तो इन कहानियों के माध्यम से ये समझ पाओगे कि आदमी को उसके किस काम का क्या फल मिलता है। दूसरों के उदाहरण से तुम ये समझ पाने में कामयाब रहोगे कि ऐसा करने से ऐसा होगा और वैसा करने से वैसा होगा। यही बात आगे जाकर तुम कृष्ण के गीता के सिद्धान्त के रूप में पढ़ोगे और बुद्ध के कारण और प्रभाव के सिद्धान्त के रूप में भी। राजा और रानी तो सभी होंगे, लेकिन उनके होने और नहीं होने के बीच के सफर को सुगम बनाने का काम तुम्हारे लिए इन कहानियों से निकला सिलेबस होगा। भगवान की ये कहानियाँ लिखी ही गई हैं, ताकि हम उनसे कुछ सीख सकें।”

“ओह! तो आपके कहने का अर्थ है कि ये सारी कहानियाँ अगर काल्पनिक भी हैं, तो ये ईश्वर की स्थापना के लिए नहीं रची गईं।

“बिल्कुल सही। ये सारे धर्म ग्रन्थ हमारी जिन्दगी के सिलेबस के रूप में तैयार किए गये हैं।”

“इसका मतलब कि आप जब हमें राम के जन्म की, अहिल्या के उद्धार की, सीता के हरण की, रावण से युद्ध की कहानियाँ सुनायेंगी तो उसका कोई न कोई मकसद होगा।”

“मकसद तो इस बात का भी होगा बेटा कि वाल्मिकी ने रामायण की रचना ही क्यों की। मकसद इस बात का भी होगा कि उनके मन में ये ख्याल ही क्यों आया कि कौन वो मनुष्य है जो सर्वगुण संपन्न है। उनके मन में ये ख्याल आया ही इसलिए क्योंकि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में ही राम से मिलना था। राम से मिलने के पीछे मकसद था कि उनके जीवन की घटनाओं को कागज पर उतारें और उनकी कहानी के जरिये हम सबको सही-गलत समझाने की कोशिश की जाये। ये एक तरह से एक शिक्षक की तरफ से जीवन के विज्ञान के प्रयोग को समझाने की कोशिश ही थी।”

“माँ, नींद नहीं आ रही। जरा और समझाओ, वाल्मिकी की तरफ से इस प्रयोग की शुरुआत की कहानी।”

“नहीं बेटा, एक ही दिन में सारी कहानी कैसे सुन और समझ लोगे? आज सो जाओ, बाकी बातें कल सुनाऊँगी।”

“माँ, थोड़ा और।”

“कल मैं तुम्हें उस आदमी की कहानी भी सुनाऊँगी जिसने मरा-मरा कहते हुए राम का नाम जपा। लेकिन पहले यही समझो कि वाल्मिकी ने जब नारद से ऐसे पुरुष के विषय में जानना चाहा तो उन्होंने उन्हें राम की कहानी सुनाई और बताया कि वही ऐसे व्यक्ति हैं जिनमें वो सभी गुण मौजूद हैं, जिनकी तुमने चर्चा की है। राम से वाल्मिकी के मिलने कहानी भी बहुत दिलचस्प है। हर कहानी में एक सन्देश है। हर सन्देश का एक अर्थ है। जैसे मैंने पहले की कहा कि भाव महत्वपूर्ण हो तो ‘मरा’ भी ‘राम’ बन जाता है।”

“हाँ, माँ! भाव ही महत्वपूर्ण है। मेरे स्कूल में एक बच्चे ने दूसरे को गाली दी, तो मास्टर साहब ने उसे पीटा। बच्चे ने पूछा भी था कि गाली देने से गाली उसे लग तो नहीं गई। इस पर टीचर ने यही कहा था कि गाली लगती नहीं, गाली में भाव लगता है। तुम्हारी जबान खराब होती है।” 

“माँ, मैं बड़ा होकर राजा बनूँगा। खूब पैसे कमाऊँगा।”

“तुम तो अभी भी राजा हो। मेरे राजा बेटे। राजा बनना बड़ी बात नहीं होती। पैसे कमाना भी बड़ी बात नहीं होती। बड़ी बात होगी, तमाम राजाओं की कहानियों को पढ़ कर उनकी गलतियों से सबक सीखते हुए, एक अच्छा आदमी बनना। तुम अच्छा आदमी बनना, बाकी चीजें अपने आप हो जायेंगी।”

“ठीक है माँ, मैं गुड ब्वॉय बनूँगा। फिर आप मुझे ढेर सारी कहानियाँ सुनाना। भूलना मत, कल आपको मुझे ‘मरा-मरा’ कहने वाले साधु की कहानी सुनानी है, फिर राम की कहानी सुनानी है। फिर बताना है कि इसे पढ़ कर मैं कैसे और गुड ब्वॉय बनूँगा।”

“जरूर बेटा। पक्का। अभी सो जाओ।

(देश मंथन 05 मई 2015)

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