संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका तीनों खंभे से बंधी हुयी हैं। हीरो कई-कई पहलवानों से घिरा है।
गोदाम में खाली ड्रम ढुलक रहे हैं, और कहीं बड़ी सी कड़ाही में कुछ उबल रहा है। अकेला हीरो विलेन के तमाम गुंडों से भिड़ रहा है।
बचपन में जब मैं हीरो विलेन के द्वंद्व वाली ऐसी फिल्में देखता तो इस आखिरी सीन में मेरा उत्साह पूरे उबाल पर होता। मैंने न जाने कितनी फिल्में देख ली थीं, फिर भी मैं ऐसे दृश्य देखते हुए दोनों हाथ जोड़ लेता और ईश्वर से प्रार्थना करने लगता कि हे भगवान हीरो को बचा लेना। फिल्म खत्म होते-होते विलेन घिर जाता, उसके सारे गुंडे इन्हीं ड्रमों पर ढुलका-ढुलका कर मारे जाते, हीरो की माँ, बहन और पत्नी या प्रेमिका सब बच जातीं और मेरा मन सकून से भरा होता।
सच कहूँ तो मुझे मालूम रहता था कि विलेन की पिटाई होगी, और हीरो बच जायेगा। फिर भी मेरे मन के कोने में ये बात बैठी रहती थी कि शायद मेरी दुआओं का असर भी कुछ रहा होगा, हीरो की जीत में।
ऐसा कई दफा होता है जब हमें सच मालूम रहता है, फिर भी उस सच पर हमें संदेह रहता है और लगता है कि ऐसा नहीं हुआ तो क्या होगा। मैं आज भी कल्पना करके सिहर उठता हूँ कि उस फिल्म का क्या होता, जिसमें आखिरी सीन में हीरो उस उबलते केमिकल में गिर जाता। हीरो की माँ, बहन और प्रेमिका या पत्नी तीनों को मार दिया जाता और विलेन अपने गुंडों के साथ बच कर निकल जाता।
जिस तरह हिन्दी की ऐसी फिल्में देखते हुए मेरे मन में हमेशा ये खटक बनी रहती कि कहीं जो विलेन जीत गया तो क्या होगा, उसी तरह जब माँ महाभारत की कहानी सुनाती, तब भी मेरे मन में ये सवाल उठता कि क्या होगा जो दुर्योधन जीत जाए और अर्जुन हार जाये।
माँ कहानी शुरू करती और मेरे सवाल शुरू हो जाते।
“माँ तुम रोज सुनाती हो कि कौरवों और पान्डवों के बीच बहुत बड़ा युद्ध हुआ था, तो क्या कौरवों ने हिन्दी की वो फिल्में नहीं देखीं हैं, जिनमें किसी सूरत में विलेन नहीं जीत सकता। चाहे उसके पास जितनी ताकत हो, जीत उसी की होती है जो हीरो होता है?”
“क्यों नहीं बेटा, कौरवों ने वो सारी फिल्में देखी थीं। कृष्ण, भीष्म, द्रोण, विदुर सबने उन्हें ऐसी ढेरों फिल्में दिखलायी थीं, जिसमें विलेन चाहे जितना शक्तिशाली हो, उसे जीत नहीं मिल सकती थी। विदुर ने तो दुर्योधन के जन्म के वक्त ही उसके पिता धृतराष्ट्र को बैठा कर समझाया था कि इसे त्याग दो। सिर्फ एक को त्याग देने से तुम्हारे वंश में सौ पुत्रों की वृद्धि होगी। और अगर तुमने इसे नहीं त्यागा तो सौ पुत्रों का नाश होगा। धृतराष्ट्र देख तो सकते नहीं थे, इसलिए उन्हें कई फिल्मों की कहानियाँ सुनाई गईं। उन्हें बताया गया कि शेट्टी और धर्मेंद्र की फिल्मों में चाहे शेट्टी जितने गुंडे पाल ले, चाहे धर्मेंद्र को कितने घूसे पड़ जाएँ, लेकिन जीत धर्मेंद्र की ही होगी। धृतराष्ट्र को अमिताभ बच्चन और शाकाल के संग हुयी मारपीट की कहानियाँ भी सुनायी गयीं, ये बताया गया कि एक हड्डी का अमिताभ बच्चन चार हड्डी वाले शाकाल के घड़ियाल को भी मार कर लौट आया था, ऐसे में आप अपने पुत्रों के बढ़े हुए मन को रोकिए।”
“बढ़ा हुआ मन?”
“बढ़ा हुआ मन क्या होता है, माँ?”
“बढ़ा हुआ मन अति महत्वाकांक्षी मन को कहते हैं बेटा। ऐसा मन जो धर्म राह को भूल कर भी कुछ पाने को व्याकुल हो जाता है, उसे बढ़ा हुआ मन कहते हैं। और तुम ये तो जानते ही हो कि जो इच्छा धर्म राह से भटक कर भी कुछ पाने को व्याकुल करे, वो नुकसान के सिवा कुछ और नहीं देती।”
“मैं जानता हूँ माँ, मैंने इतनी सारी फिल्में देख कर ये बात समझ ली है कि कोई भी चीज जब जरूरत से अधिक बढ़ जायेगी तो वो दुख का कारण बन जाती है।”
“वाह बेटा! बिल्कुल सही। दुर्योधन के जन्म के समय विदुर ने भी उनसे यही कहा था कि जो वृद्धि भविष्य में नाश का कारण बने उसे अधिक महत्व नहीं देना चाहिए और उस क्षय का आदर करना चाहिए, जो भविष्य में अभ्युदय का कारण बने। विदुर ने धृतराष्ट्र से ये तक कहा था कि हकीकत में जो क्षय वृद्धि का कारण होता है, वो क्षय नहीं होता। लेकिन उस लाभ को भी क्षय ही मानना चाहिए, जिसके पाने से बहुत से लाभों को नुकसान हो। धृतराष्ट्र चुपचाप सब सुन रहे थे। उन्हें मालूम था कि धर्मेंद्र के साथ युद्ध में शेट्टी मारा जायेगा। पर उनके मन के किसी कोने में उनकी खुद की महत्वाकांक्षा उबल रही थी। उनके मन में ये बात बैठी थी कि शायद हीरो उस उबलते कड़ाह में गिर पड़ेगा, और जीत विलेन की हो जायेगी।
“माँ ये कैसे तय होता है कि कौन हीरो है, और कौन विलेन?”
“बहुत सुन्दर सवाल। कुछ लोग गुण से धनी होते हैं, और कुछ लोग धन से धनी। जो धन के धनी होते हुए भी गुणों से कंगाल होते हैं, वो विलेन होते हैं। उनका साथ छोड़ देना चाहिए। जीत उन्हीं की होती है जो गुण के धनी होते हैं, क्योंकि धर्म उनकी ओर ही होता है। और ये तो तुम जानते ही कि धर्म जिनकी ओर होता है, उनका बाल बांका भी नहीं होता। हजारों, लाखों लोगों की दुआएँ उनके साथ होती हैं। और जिनके साथ दुआएँ होती हैं, उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता।”
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कल पटना में मेरी नई किताब ‘जिन्दगी’ का विमोचन है। उस शहर से मेरा रिश्ता है, जन्म-जन्मांतर का। कल मैं सफल रहूँगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप सबकी दुआएँ मेरे साथ हैं।
(देश मंथन 11 जून 2015)