विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
चंपारण की धरती को वह गौरव प्राप्त है, जहाँ से महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश राज को चुनौती दी। इसके साथ ही आधुनिक भारत के इतिहास में गाँधी युग की शुरुआत होती है। 1917 का वह साल जब देश के आजादी के आंदोलन के इतिहास के केंद्र में महात्मा गाँधी आ जाते हैं।
देश में बापू के दो प्रमुख आश्रम हैं, अहमदाबाद में साबरमती और महाराष्ट्र में वर्धा। पर भितिहरवा आश्रम का गौरव इन सबसे कई मामलों में ज्यादा है।
दक्षिण अफ्रीका में बापू रंगभेद के खिलाफ आंदोलन कर चुके थे। पर ब्रिटिश राज के खिलाफ कोई उग्र विरोध नहीं किया था। बापू के रंगभेद के खिलाफ आंदोलन की कहानी मीडिया में आयी थी। पर देश में कम लोग ही इससे वाकिफ थे। चंपारण में बड़े पैमाने पर नील खेती की जा रही थी। इसमें स्थानीय किसानों और मजदूरों का शोषण हो रहा था। चंपारण के बड़े किसान राज कुमार शुक्ल चाहते थे कि बापू आकर नील किसानों के आंदोलन का नेतृत्व करें। पर बापू ने दो बार राज कुमार शुक्ल को मना कर दिया था। पर तीसरी बार में उनका आग्रह मान लिया।
27 अप्रैल 1917 का दिन था जब बापू राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गाँव में पहुँचे। भितिहरवा की दूरी नरकटियागंज से 16 किलोमीटर है। बेतिया से 54 किलोमीटर है। बापू यहाँ देवनंद सिंह, बीरबली जी के साथ पहुँचे। बताया जाता है कि बापू सबसे पहले पटना पहुँचे थे, जहाँ वे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के बंगले में रुके थे। वहाँ से आकर मोतिहारी में रुके। मोतिहारी से बेतिया आए। बेतिया के बाद उनका अगला प्रवास कुमार बाग में हुआ। कुमार बाग से हाथी पर बैठकर बापू श्रीरामपुर भितिहरवा पहुँचे थे। गाँव के मठ के बाबा रामनारायण दास द्वारा बापू को आश्रम के लिए जमीन उपलब्ध करायी गई। 16 नवंबर 1917 को बापू ने यहाँ एक पाठशाला और एक कुटिया बनायी।
20 नवंबर 1917 को भितिहरवा में कस्तूरबा गाँधी, गोरख बाबू, जनकधारी प्रसाद, महादेव बाबू, हरिशंकर सहाय, सोमन जी, बालकृष्णजी और डॉ. देव का भितिहरवा आगमन हुआ। बापू का यहाँ रहना ब्रिटिश अधिकारियों को बिल्कुल गवारा नहीं था। एक दिन बेलवा कोठी के एसी एमन साहब ने कोठी में आग लगवा दी। उनकी साजिश बापू की सोते हुए हत्या करवा देने की थी। पर संयोग था बापू उस दिन पास के गाँव में थे। इसलिए बच गये। बाद में सब लोगों ने मिलकर दुबारा पक्का कमरा बनाया, जिसकी छत खपरैल है। इस कमरे के निर्माण में बापू ने अपने हाथों से श्रमदान किया।
आज यह कुटिया मुख्य स्मारक जिसे दूर-दूर से लोग देखने आते हैं। इस कमरे में कस्तूरबा द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला जांता देखा जा सकता है। बा इसमें गेहूँ पिसायी करती थीं। यहाँ बापू द्वारा निर्मित टेबल भी है। बापू इस पर पढ़ायी-लिखायी करते थे और इसी पर सो भी जाते थे। यहाँ बापू के पाठशाला की घंटी भी देखी जा सकती है। आश्रम परिसर में 1917 में बना कुआँ भी देखा जा सकता है, इस कुएँ का इस्तेमाल बापू और कस्तूरबा करते थे।
2 अक्तूबर 1974 तक भितिहरवा आश्रम का संचालन गाँधी स्मारक निधि द्वारा होता रहा। 1974 से 30 अक्तूबर 1985 तक इस आश्रम का संचालन स्थानीय मुखिया स्व. मुकुटधारी प्रसाद और स्वतन्त्रता सेनानी स्व. सत्यदेव प्रसाद वर्मा द्वारा होता रहा। 31 अक्तूबर 1985 को भितिहरवा आश्रम बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति मंत्रालय के तहत आ गया। बिहार सरकार द्वारा हाल में आश्रम परिसर में नये भवनों का निर्माण कर आश्रम को भव्य रूप प्रदान किया गया है।
कैसे पहुँचे
पश्चिम चंपारण में नरकटियागंज जंक्शन भितिहरवा आश्रम से निकटतम बाजार है। नरकटियागंज ने निजी वाहन से या फिर शेयरिंग आँटो रिक्शा से यहाँ पहुँच सकते हैं। नरकटियागंज में पुरानी बाजार के थाना चौक से गवनहा की तरफ जाने वाले आँटो रिक्शा भितिहरवा आते हैं। मुख्य सड़क से आश्रम आधा किलोमीटर पूरब में स्थित है।
(देश मंथन, 03 जुलाई 2015)