प्यार, परवाह और भरोसा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

पिछले हफ्ते हम अपनी बहन के ससुर के श्राद्ध में शामिल होने के लिए पटना गये थे। हम यानी मैं और मेरी पत्नी। 

पूजा वगैरह हो गयी थी, खाना भी हो गया था। फिर हम बहन की सास के साथ बैठे थे। अचानक बहन की सास हम दोनों से यूँ ही पूछ बैठीं कि तुम दोनों ने शादी से पहले एक दूसरे में ऐसा क्या देखा था, जो विवाह कर बैठे। 

बहुत सहज मगर गजब का सवाल था। 

हमारे ढेर सारे रिश्तेदार उस वक्त वहाँ बैठे थे, बहन की सास ने यूँ ही ये सवाल हमसे पूछ लिया। 

हम क्या कहते?

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अपनी शादी के हफ्ते भर बाद हम दिल्ली से पटना गये थे, सारे रिश्तेदारों से मिलने। तब हम बहन की सास के घर भी गये थे। बहन की सास ने मेरी पत्नी को लाल चुनरी, सोने का पेंडेंट बतौर उपहार दिया था और बहुत देर तक गले से लगाए रखी थीं। उन्होंने मेरी पत्नी को खूब प्यार किया था। हम उस मुलाकात के बाद भी न जाने कितनी बार मिले होंगे अपनी बहन की सास से। पर उन्होंने कभी हमसे ये सवाल नहीं पूछा था कि हमने एक दूसरे में ऐसा क्या देखा था, जो विवाह कर बैठे?

सचमुच कोई किसी में क्या देखता है, जो जीवन भर का रिश्ता उससे जोड़ बैठता है?

सुनने में सवाल आसान लगता है, पर इस आसान सवाल का जवाब बहुत दुरूह होता है। 

मुझे नहीं याद कि हमने अपनी बहन की सास से क्या कहा, पर जो कहा वो संपूर्ण जवाब नहीं था। शायद हमने कह दिया हो कि हम पहली बार मिले और हमें लगने लगा कि हम एक दूसरे के लिए बने हैं। पर क्या ऐसा ही होता है? क्या ऐसा ही हुआ होगा? 

नहीं, ऐसा नहीं होता। ऐसा हुआ भी नहीं होगा। 

लड़का और लड़की के बीच दोस्ती की कई वजहें हो सकती हैं, पर विवाह की कोई खास वजह होनी चाहिए। वही खास वजह मेरी बहन की सास हम दोनों से पूछ रही थीं। 

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25 साल पहले मैं अपनी होने वाली पत्नी के साथ दिल्ली में कनाट प्लेस से पैदल चलता हुआ बहादुर शाह जफर मार्ग पर इंडियन एक्सप्रेस की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ चला जा रहा था। अचानक उसकी चप्पल टूट गयी। उसने मेरी ओर देखा। फिर अपने बैग से उसने रूमाल निकाला और उसे चप्पल के नीचे से लपेटते हुए ऊपर से ऐसे बाँध लिया मानो वो रूमाल चप्पल का फ्लैप बन गया हो। और फिर धीरे-धीरे वो दफ्तर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। मैं हतप्रभ सा देख रहा था। अगर किसी की चप्पल चलते हुए यूँ ही टूट जाए, तो तत्काल में इससे शानदार उपाय और क्या हो सकता है?

मेरी पत्नी दफ्तर की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी, मैं उसे देख रहा था। 

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मैंने न जाने कितनी बार लिखा है कि इस संसार में पहली बार जिस महिला ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था, वो मेरी माँ थी। 

मैंने यह भी लिखा है कि मैं बचपन में अपनी माँ से कहा करता था कि माँ मैं आपसे शादी करूँगा। माँ हंसती थी। पर मैं गंभीरता से अपनी बात कहता था। 

उस दिन मेरी पत्नी सीढ़ियाँ चढ़ रही थी और मैं देख रहा था, मेरी माँ मेरे आगे-आगे चली जा रही है। 

लड़का और लड़की के बीच दोस्ती की कई वजहें हो सकती हैं, पर शादी की कोई खास वजह होनी चाहिए। 

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मैंने बहुत पहले किसी पोस्ट में यह बताया था कि जिस लड़की से मेरी शादी हुई थी, उससे मैं पहली बार मिला कैसे था। जो लोग मुझसे बाद में जुड़े हैं, उनके लिए दुबारा बताता चलूँ कि पीले लहँगे में उस लड़की से जिस दिन पहली बार मैं मिला था, उस दिन वो कहीं से भीगी हुई दफ्तर चली आयी थी। हल्की सर्दी थी और वो सकुचाई सी दफ्तर के कोने में बैठी थी। अचानक मेरी निगाह उस पर पड़ी और मैंने अपना जैकेट उतार कर उसे दे दिया।

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अब तक हमने कभी सोचा नहीं था। पर उस दिन बहन की सास ने पूछ लिया कि आखिर विवाह की वजह क्या रही होगी, तो उसी का जवाब तलाशता हुआ आज मैं आपके पास आया हूँ।

रिश्तों पहली कड़ी होती है, प्यार। दूसरी कड़ी होती है, परवाह। तीसरी कड़ी होती है, भरोसा।

सुनने में मेरी यह परिभाषा जरा अजीब लगे, पर आप सोच कर देखिएगा। 

कई लोग सोचते हैं कि सिर्फ प्यार से रिश्ते निभ जाते हैं। पर यह सच नहीं है। प्यार के साथ परवाह का होना जरूरी है। जो अपने प्यार की परवाह नहीं करते, उनके प्यार की कोपलें सूख जाती हैं। ‘प्यार’ का पौधा जिंदा रहे इसके लिए उसमें ‘परवाह’ की खाद को समय-समय डालते रहना जरूरी होता है। 

और आखिरी बात, भरोसा। 

भरोसा खुद पर, भरोसा दूसरों पर।

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प्यार, परवाह और भरोसा- अपनी बहन की सास से अगली बार मिलूँगा तो बता दूँगा कि इन तीन गुणों को देख कर हमने विवाह का फैसला कर लिया था।

सही कह रहा हूँ न? 

(देश मंथन, 21 अक्तूबर 2015)

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