संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पता नहीं किसने, लेकिन संजय सिन्हा फेसबुक परिवार के ग्रुप में किसी ने इस कहानी को साझा किया था। कहानी किसने लिखी है, पता नहीं। पर मुझे बहुत जरूरत थी इस कहानी की।
मैंने अपने एक परिजन की बीमारी के बीच लगातार अस्पतालों के चक्कर काटते हुए तीन दिनों से प्राइवेट अस्पताल और डॉक्टरों के भ्रष्टाचार की कहानी आपको सुना रहा हूँ।
कुछ लोग वेरी गुड कहते हैं, कुछ मेरी धुलाई करते हैं।
मैं सबके कमेंट पढ़ता हुआ आगे चलता हूँ।
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अब सुनिए वो कहानी जिसे किसी ने मुझसे साझा किया था।
कहानी एक मेढक की है।
एक मेढक नदी से निकल कर पहाड़ पर चढ़ने लगा। उस मेढक को पहाड़ पर चढ़ते देख उसके हजारों साथी चीखने लगे, मत चढ़ पहाड़ पर। तू गिर जाएगा। गिर कर मर जाएगा। पर मेढक नहीं माना वो पहाड़ पर चढ़ता चला गया।
सारे साथी मना करते रहे, नीचे से समझाते रहे। पर वो नहीं माना।
धीरे-धीरे बढ़ते हुए वो पहाड़ पर चढ़ गया। वहाँ उसने एक नये संसार को देखा। सारे मेढक नीचे हैरान हो कर उसे देखते रहे। वो नहीं गिरा। वो तो बढ़ता ही चला गया।
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मुझसे भी कई लोगों ने कहा कि तुम इतना बेलाग होकर मत लिखा करो। तुम्हारे दुश्मन बढ़ जाएँगे।
मुझे उनकी कोई बात कभी सुनाई नहीं पड़ी। मैं लिखता ही रहा। किसी ने मेरी निंदा की तो मैं उस पर भी लाइक बटन दबा कर आगे बढ़ गया।
28 लोगों से शुरू हुआ मेरा फेसबुक का सफर आज पाँच हजार मित्रों और 18 हजार से अधिक फॉलोअर्स से भरा पूरा परिवार है। मैं शायद फेसबुक परिवार का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति होऊँगा, जिसकी पोस्ट पर कभी-कभी इक्का-दुक्का प्रतिवाद, विरोध के शब्द पढ़ने को मिलते हैं। मैं जानता हूँ कि फेसबुक के धुरंधर लिखाड़ों को भी रोज निंदा के हजार शब्द सुनने पड़ते हैं। उनकी तुलना में मेरी खिंचाई तो बहुत कम होती है।
खैर, मैं परेशान नहीं होता।
पर मेरे कुछ परिजन मेरी वाल पर नकारात्मक टिप्णियों से आहत होकर चिंता जताते हैं। मैं उनसे इतना ही कहना चाहता हूँ कि आपके प्यार का मैं कायल हूँ। आप मेरी ताकत हैं। पर आप परेशान मत हुआ कीजिए।
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जिसने मेरे पास मेढक के पहाड़ पर चढ़ने वाली कहानी भेजी थी, उसने कहानी के अंत में एक सवाल पूछा था। सवाल ये था कि क्या आप जानते हैं कि मेढक इतने लोगों के रोकने के बाद भी पहाड़ पर कैसे चढ़ गया?
सवाल पढ़ कर मैं भी चौंका था। सही बात है। आखिर इतना रोकने के बाद भी मेढक चुपचाप पहाड़ पर कैसे चढ़ता चला गया।
जिसने सवाल पूछा था, उसी ने जवाब भी दिया था कि जो मेढक पहाड़ पर चढ़ रहा था, वो बहरा था। लोग उसे नीचे से हाथ हिला-हिला कर रोक रहे थे, पर वो उनकी आवाज सुन नहीं पा रहा था, उल्टे यह समझ रहा था कि वो हाथ हिला कर उसका हौसला बढ़ा रहे हैं।
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मैं भी वैसा ही मेढक हूँ।
जब मेरी पोस्ट पर कोई मुझे गलत ठहराता है तो मैं उसकी बात ठीक से समझ नहीं पाता और मुझे यही लगता है कि वो मेरा हौसला बढ़ा रहा है। इस तरह अगली सुबह के लिए मेरे पास एक नयी कहानी आ जाती है।
आप भी अगर जिन्दगी में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो उनकी बातों को सुनना छोड़ दीजिए जो आपको रोकते हैं। सिर्फ उनकी बातें सुनिए जो सचमुच आपका हौसला बढ़ाते हैं।
नकारात्मक सोच को नहीं समझना, नकारात्मक बातों को नहीं सुनना ही पहाड़ पर चढ़ने का फॉर्मूला है।
सकारात्मक तो अपने साथ ही हैं। वो हमसफर हैं।
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मेरे बंद कान मेरी तरक्की की राह में मखमल हैं।
मखमल सबको मयस्सर नहीं होता। 23 हजार प्यार करने वाले लोगों का साथ है संजय सिन्हा फेसबुक परिवार। लिम्का बुक, गिनीज बुक के रिकॉर्ड का मुझे नहीं पता, पर दिल की किताब का मुझे पता है, इससे बड़ा परिवार संसार में किसी के पास नहीं।
(देश मंथन 10 फरवरी 2016)