हम अंदर की कमजोरियाँ हारते हैं

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी एक परिचित ने मुझे बताया कि उनकी बेटी, जिसकी शादी उन्होंने कुछ ही दिन पहले एक अमीर घर में की थी, वो किसी और से प्यार करने लगी है। जाहिर है शादी के बाद बेटी का किसी और से प्यार करना मेरी परिचित को नागवार गुजर रहा है। उन्होंने अपनी तकलीफ मुझसे साझा की। उनकी तकलीफ अब मेरी तकलीफ बन गयी है। मैं सारी रात सोचता रहा कि मैं इस विषय पर लिखूँ या नहीं। 

मैंने अपनी परिचित से पूछा कि अब आप क्या करेंगी? 

“संजय जी, करूंगी क्या? मैं तो मर जाऊँगी या मार दूंगी।”

बहुत अजीब परिस्थिति है। जिस बेटी से माँ इतना प्यार करती है, वो कह रही है कि उसे मार देगी या मर जाएगी।

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मुझे बिल्कुल ठीक से याद है, जब मेरी परिचित ने अपनी बेटी की शादी तय की थी, तब उन्होंने बेटी की राय भी ली थी। बहुत सोच-विचार का दौर चला था। लड़का बहुत पैसे वाला था। उसकी नौकरी बहुत अच्छी थी, इसलिए थोड़े सोच-विचार के बाद लड़की ने यही कहते हुए हाँ कह दी थी। 

लेकिन शादी के साल भर बाद ही लड़की को किसी और से प्यार हो गया। 

अब क्या हो? कुछ दिनों तक तो लुक-छुप कर प्यार चलता रहा, पर एक दिन लड़की की माँ को शक हो गया और उन्होंने थोड़ी बहुत तहकीकात की तो सबकुछ पता चल गया। उन्होंने सीधे-सीधे बेटी से बात की। बेटी ने सारा सच कबूल कर लिया। 

माँ का तो मानों दिल ही बैठ गया। कुछ दिन रोना-धोना चला पर समस्या जस की तस खड़ी रही। समस्या की इसी घड़ी में माँ ने मुझसे संपर्क किया और पूछा कि अब क्या होगा?

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मैं कुछ देर सोचता रहा। फिर मैंने कहा कि आप अपनी बेटी से कहिए कि वो अपनी शादी तोड़ ले और उस लड़के के साथ रहने लगे।

“संजय सिन्हा, आप इतनी क्रांतिकारी सलाह मत दीजिए। मैं जिस समाज में रहती हूँ, वहाँ मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। लोग मुझसे बात करना बंद कर देंगे। आप यह क्यों नहीं कहते कि बेटी को चार तमाचे मार कर मैं प्यार का भूत उतार दूँ। 

“प्यार का भूत थप्पड़ मारने से नहीं उतरता।”

“फिर क्या करें।”

“आप वही कीजिए, जो मैं कह रहा हूँ। जिस शादी में प्यार नहीं होता, वो शादी दुनिया की निगाहों में भले निभती चली जाए, वो हर रोज की मौत होती है।”

“फिर उसने शादी के लिए हाँ क्यों कहा था?”

“उसने पैसा देख कर, घर देख कर हाँ कहा था। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। पर अब आप उससे यही कहिए कि तुम अपने पति को छोड़ दो।”

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मेरी बातों से मेरी परिचित इत्तेफाक नहीं रखतीं। उनका कहना है कि ऐसा होना संभव ही नहीं। 

फिर क्या किया जाए? 

मेरी परिचित ने कहा कि अगर मैं थप्पड़ मार कर नहीं रोक सकती, तो क्या मैं उसके प्रेमी से बात करूं? क्या पता वही मेरी बेटी को छोड़ दे। हो सकता है शादी के नाम पर वो खुद ही भाग जाए। 

मैंने कहा कि इससे समस्या का समाधान नहीं होगा। अगर वो भाग भी जाए, तो क्या होगा? आपकी बेटी तो मन ही मन पति के पास से भाग गयी है। वो फिर कभी न कभी किसी और की तलाश करेगी।

“तो मुझे अब क्या करना चाहिए?”

फिर मैंने उनसे कहा कि आप कुछ दिन इंतजार कीजिए। मैं आपकी समस्या अपने परिजनों के बीच रख दूँगा। वो आपकी समस्या का समाधान अपने तरीके से आपको बताएंगे। 

मेरे प्यारे परिजनों, यह समस्या अपने परिवार के ही एक सदस्य के घर चली आयी है। उनकी बेटी, जो खूब पढ़ी-लिखी है, आत्मनिर्भर है, वो अपनी शादी में छल कर रही है। बात अभी ससुराल वालों तक नहीं पहुँची है। पति को भी नहीं पता। पर यह एक सच है कि लड़की किसी और से प्यार करती है। छुप-छुप कर मिलती है। 

मैंने तो कह दिया है कि छुप-छुप कर मिलना, प्यार करना ज्यादा दुखद है, बजाए इसके कि सच को कबूल करके दुनिया का एक बार सामना किया जाए। 

आप क्या कहते हैं? 

आप जो भी राय देंगे, मेरी वाल पर मेरी परिचित की निगाह रहेगी। उसमें से जो फैसला उन्हें ठीक लगेगा, वो उसे चुन लेंगी।

***

यह सब लिख कर पोस्ट करने जा ही रहा था कि नीमच से सुभाष ओझा जी का एक संदेश मेरे पास आया-

“रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ पड़े हों, तो भी एक अच्छा जूता पहन कर उस पर चला जा सकता है। लेकिन उस अच्छे जूते के भीतर एक भी कंकड़ घुस जाए, तो चाहे सड़क कितनी भी अच्छी हो, हम एक कदम नहीं चल सकते। 

मतलब हम बाहर की चुनौतियों से नहीं, बल्कि भीतर की कमजोरियों से हारते हैं।”

(देश मंथन 27 फरवरी 2016)

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