विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
न्यू जलपाईगुड़ी से गुवाहाटी के मार्ग में बंगाल का दुआर्स इलाका आता है। इस रास्ते में सुंदर चाय के बगान नजर आते हैं। फकीराग्राम से पहले श्रीरामपुर असम नामक स्टेशन पर ट्रेन असम में प्रवेश कर जाती है। ये असम का बोडोलैंड वाला इलाका है। इस बार मैं कंचनजंगा एक्सप्रेस में हूँ। कोलकाता से चलने वाली इस लंबी दूरी की ट्रेन में सिटिंग क्लास भी है। संयोग से मुझे सिटिंग क्लास में ही आरक्षण मिल पाया।
न्यू जलपाईगुड़ी गुवाहाटी कोई आठ घंटे का सफर है। मेरे सामने की सीट पर अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में बागवानी एवं वानिकी कॉलेज (http://www.chfcau.org.in/) के छात्र –छात्राओं की टोली है। उनका कालेज सेंट्रल एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी, इंफाल के तहत आता है। छात्रों से उनकी पढ़ाई के बारे में थोड़ी बातें करता हूँ। सभी मस्ती भरे मूड में हैं। मेरे सामने की सीट पर लक्ष्मी है जो इंफाल (मणिपुर) की है। मैं उससे कहता हूँ कि तुम मणिपुरी तो कहीं से नहीं लगती हो, हमारे यूपी की लड़कियों जैसी हो। बैठे बैठे मुझे नींद आ जाती है तभी छात्रों की टोली मुझे जगा कर हैप्पी न्यू ईयर कहती है। रात के 12 बजे हैं और हम साल 2016 में प्रवेश कर चुके हैं।
असम रेल लिंक
न्यू जलपाईगुड़ी से न्यू कूचबिहार जाने के रास्ते में फालाकाटा रेलवे स्टेशन बाद आता है तोरसा नदी पर बना तोरसा ब्रिज। ये पुल संख्या 227 है और तकरीबन आधा किलोमीटर (417 मीटर) लंबा है। तोरसा नदी तिब्बत से निकलती है और भूटान होते हुए बंगाल में प्रवेश करती है। फुटशिलांग, जयगाँव, कूचबिहार जैसे शहर तोरसा नदी के किनारे पड़ते हैं। आगे तोरसा ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। गुवाहाटी जाने वाले रेल मार्ग पर ये महत्वपूर्ण रेल पुल है। ये पुल सिंगल लाइन का है। इस क्षेत्र में अभी दोहरीकरण नहीं हुआ है। न्यू जलपाईगुड़ी के बाद रानीनगर से लेकर न्यू कुचबिहार तक की रेलवे लाइन अभी सिंगल ही है। हालांकि न्यू जलपाईगुड़ी से न्यू अलीपुर दुआर जाने के लिए सेवक हो कर दूसरे मार्ग का विकल्प भी उपलब्ध है। कुछ रेलगाड़ियाँ दूसरे मार्ग से जाती हैं।
1947 में आजादी और देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) बनने के बाद पूर्वोत्तर के सभी राज्य रेल लिंक से कट गये, क्योंकि तब न्यू जलपाईगुड़ी होकर गुवाहाटी जाने के लिए रेलवे लाइन नहीं थी। तब आनन फानन में बिहार के किशनगंज (अवध तिरहुत रेलवे का स्टेशन) और असम के आरनीगाँव के बीच रेलवे मार्ग बनाने की योजना बनी। महज दो सालों में कुल 142 मील (210 किलोमीटर) की रेलवे लाइन की विपरीत हालात में निर्माण कर लिया गया। यह आजाद भारत में सबसे तेजी से पूरा होने वाला प्रोजेक्ट था।
नौ दिसंबर 1949 को इस मार्ग पर रेल परिवहन चालू हो गया। इस मार्ग पर किशनगंज से सिलिगुड़ी के बीच 66 मील की दो फीट चौड़ाई वाली नैरोगेज लाइन थी जिसे मीटर गेज में बदला गया। सिलिगुडी से बागरकोट के 22 मील की लाइन पर बीच में तीस्ता नदी पर पुल बनाना भी चुनौतीपूर्ण कार्य था। वहीं मदारीहाट और हासीमारा के बीच 9 मील के मार्ग पर तोरसा नदी पर पुल का निर्माण किया गया। चौथा खंड था अलीपुर दुआर से फकीराग्राम का, इसका निर्माण बिना मुश्किल के हुआ।
गोलापारा टाउन के पास ब्रह्मपुत्र नदी का विस्तार
तीस्ता और तोरसा पर पुल बनाने के लिए पहली बार प्री स्ट्रेस्ड कंक्रीट गार्डर का इस्तेमाल किया गया। तब कुल असम रेल लिंक प्रोजोक्ट पर 9.3 करोड़ का खर्च आया था, यानी 6.5 लाख प्रति मील का खर्च आया। इस मार्ग में किशनगंज (बिहार), दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार ( बंगाल) और गोलापाड़ा (असम) के जिले आते हैं। ( The Economic weekly – 18 Apr 1953 ) कई दशक बाद इस लाइन को ब्राडगेज में बदला गया।
वहीं सत्तर के दशक में न्यू जलपाईगुड़ी, न्यू कूचबिहार, न्यू अलीपुर दुआर से न्यू बंगाई गांव के बीच दूसरी वैकल्पिक ब्राडगेज लाइन बिछाई गई। यह लाइन 1966 में संचालन में आई। साल 1964 में न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन अस्तित्व में आया। जो अब इस मार्ग का अति व्यस्त और विशाल स्टेशन बन चुका है। (The Economic weekly – 18 Apr 1953 )
गुवाहाटी जाने के दो रास्ते
न्यू बंगाई गाँव से गुवाहाटी के बीच दो रास्ते हैं एक वाया रंगिया हो कर और दूसरा गोलापाड़ा हो कर। वाया रंगिया मार्ग पर बारपेटा रोड, नलबड़ी, रंगिया, चांगसारी और कामाख्या जैसे स्टेशन आते हैं। इस मार्ग पर कामाख्या से पहले ब्रह्मपुत्र नदी पर सरायघाट पुल आता है, जबकि दूसरे मार्ग पर न्यू बंगाई गाँव के बाद जोगीगुफा, गोलपाड़ा टाउन, दूधनोई, धूपधारा कामाख्या जंक्शन जैसे स्टेशन आते हैं। दोनों मार्ग कामाख्या जंक्शन में जाकर मिलते हैं। जोगीगुफा और गोलपाड़ा के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पर विशाल पुल आता है। जबकि दूधनोई नामक छोटे से स्टेशन से मेघालय के मेंदीपाठर के लिए रेलवे लाइन निकली है।
ये है जीव दया का अदभुत नमूना
रेलवे जंगल के जानवरों का कितना ख्याल रखता है ये इस पुल को देख कर पता चलता है। इस कैनोपी ब्रिज का निर्माण इसलिए किया गया है कि ट्रेन आती जाती रहे तो भी लंगूर आदि हल्के-फुल्के जानवार पटरी के इस पार से उस पार जा सके।
भारतीय रेलवे पर ये पुल बना है असम के जोरहट जिले में होलोंगपार अभ्यारण्य के बीच। (Holongpar Reserve Forest) तो देखिए इस हर भरे पुल को और जानवरों पर दया करने का विचार मन में हमेशा बनाए रखिए।
(देश मंथन, 20 मार्च 2016)