मनमोह लेती डलहौजी की आबोहवा

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

डलहौजी की आबोहवा ऐसी है जो लोगों को पसंद आती है। हमें सुभाष चौक पर एक अवकाशप्राप्त दंपति मिले जो एक महीने से आ कर डलहौजी में पड़े हैं। कमरा किराये पर ले लिया है। यहाँ से जाना नहीं चाहते। सुभाष प्रतिमा के पास दोपहर में मीठी धूप के मजे ले रहे हैं। 

बनीखेत से जब बस या टैक्सी से आप आगे बढ़ते हैं तो गाड़ी ऊपर की ओर चढ़ाई चढ़ने लगती है। थोड़ी दूरी पर ही डलहौजी का कैंटोनमेंट एरिया शुरू हो जाता है। यह सेना का बड़ा केंद्र है। यहाँ गोरखा राइफल्स के जवानों को देखा जा सकता है। कैंटोनमेंट एरिया खत्म होने के बाद डलहौजी का बस स्टैंड आ जाता है। बस स्टैंड से दाहिनी तरफ चढ़ाई चढने के बाद एक किलोमीटर से ज्यादा चलने पर आता है सुभाष चौक। यहीं पर सेंट फ्रांसिस चर्च भी है। यहाँ से पदयात्रा करते हुए ही आप गाँधी चौक पहुँच सकते हैं। गाँधी चौक से दो किलोमीटर चल कर बस स्टैंड पहुँच सकते हैं। इस तरह से आप पूरा डलहौजी बाजार घूम लेते हैं।    

डलहौजी का तापमान गरमी के दिनों में भी 26 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। लिहाजा यह सेहत बनाने के लिए अच्छी जगह है। वहीं रात तापमान 10 डिग्री तक गिरता है। सरदियों में तो एक डिग्री तक गिर जाता है। इसका तापमान ब्रिटेन के लंदन शहर से मिलता जुलता है। इसलिए ये हिल स्टेशन ब्रिटिश अफसरों को काफी पसंद आता था। दिसंबर से फरवरी के बीच यहाँ बर्फबारी भी हो जाती है।

राजीव गाँधी और संजय गाँधी को भी डलहौजी शहर काफी पसंद आता था। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा भी दो बार यहाँ चुके हैं। कई बालीवुड के निर्माताओं को भी डलहौजी का सौंदर्य यहाँ खींच लाया। 1952 में यहाँ नंदन फिल्म की शूटिंग हुई। बाद में शाहरुख खान की दिल से, अनिल कपूर की 1942 ए लव स्टोरी, गदर, गॉड एंड गन, हिमालय पुत्र ब्लू अंब्रेला जैसी फिल्मों की शूटिंग हुई।

अंगरेजी के महान लेखक रुडयार्ड किपलिंग अपने पिता के साथ बचपन में डलहौजी आते थे। उनके पिता को ये हिल स्टेशन काफी पसंद आता था। किपलिंग का जन्म 30 दिसंबर 1865 को मुंबई में हुआ। उनके पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग जेजे स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल थे। वे वास्तुविद और कलाकार थे। रुडयार्ड किपलिंग का लंबा समय भारत के अलग अलग शहरों में गुजरा। वे अंगरेजी के प्रसिद्ध पत्रकार भी थे। एक लेखक के तौर पर अपने समय के वे दुनिया के बेस्ट सेलर राइटर बन चुके थे। 1907 में 42 साल की उम्र में नोबल पुरस्कार मिला। किपलिंग का निधन 1936 में 18 जनवरी को लंदन में हुआ। लेकिन जंगल बुक के लेखक को ये हिल स्टेशन पसंद नहीं आता था। वे इसे मजाक-मजाक में ही सही डलहौजी नहीं बल्कि डल हाउसेज कहा करते थे।

रुडयार्ड किपलिंग की मशहूर कविता है – इफ… यानी अगर तुम। अत्यंत प्रेरक इस कविता का हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा में अनुवाद पेश किया है। तो पेश है किपलिंग की यह मशहूर कविता….

अगर तुम

अगर तुम अपना दिमाग ठीक रख सकते हो 

जबकि तुम्हारे चारों ओर सब बेठीक हो रहा हो

और लोग दोषी तुम्हे इसके लिए ठहरा रहे हों…

अगर तुम अपने उपर विश्वास रख सकते हो

जबकि सब लोग तुम पर शक कर रहे हों..

पर साथ ही उनके संदेह की अवज्ञा तुम नहीं कर रहे हो..

अगर तुम अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर सकते हो

और प्रतीक्षा करते हुए उबते न हो..

या जब सब लोग तुम्हें धोखा दे रहे हों

पर तुम किसी को धोखा नहीं दे रहे हो…

या जब सब लोग तुमसे घृणा कर रहे हों पर

तुम किसी से घृणा नहीं कर रहे हो…साथ ही न तुम्हें भले होने का अभिमान हो न बुद्धिमान होने का….अगर तुम सपने देख सकते हो

पर सपने को अपने उपर हावी न होने दो,

अगर तुम विचार कर सकते हो पर

विचारों में डुबे होने को अपना लक्ष्य न बना बैठो…

अगर तुम विजय और पराजय दोनों का स्वागत कर सकते हो पर दोनों में से कोई तुम्हारा संतुलन नहीं बिगाड़ सकता हो…

अगर तुम अपने शब्दों को सुनना मूर्खों द्वारा तोड़े मरोड़े जाने पर भी बर्दाश्त कर सकते हो और उनके कपट जाल में नहीं फंसते हो…

या उन चीजों को ध्वस्त होते देखते हो जिनको बनाने में तुमने अपना सारा जीवन लगा दिया और अपने थके हाथों से उन्हें फिर से बनाने के लिए उद्यत होते हो..

अगर तुम अपनी सारी उपलब्धियों का अंबार खड़ा कर उसे एक दाँव लगाने का खतरा उठा सकते हो, हार होय की जीत…

और सब कुछ गंवा देने पर अपनी हानि के विषय में एक भी शब्द मुँह से न निकालते हुए उसे कण-कण प्राप्त करने के लिए पुनः सनद्ध हो जाते हो…

अगर तुम अपने दिल अपने दिमाग अपने पुट्ठों को फिर भी कर्म नियोजित होने को बाध्य हो सकते हो जबकि वे पूरी तरह थक टूट चुके हों…

जबकि तुम्हारे अंदर कुछ भी साबित न बचा हो…सिवाए तुम्हारे इच्छा बल के जो उनसे कह सके कि तुम्हें पीछे नहीं हटना है….

अगर तुम भीड़ में घूम सको मगर अपने गुणों को भीड़ में न खो जाने दो और सम्राटों के साथ उठो बैठो मगर जन साधारण का संपर्क न छोड़ो…

अगर तुम्हें प्रेम करने वाले मित्र और घृणा करने वाले शत्रु दोनों ही तुम्हे चोट नहीं पहुंचा सकते हों…

अगर तुम सब लोगों को लिहाज कर सको लेकिन एक सीमा के बाहर किसी का भी नहीं, अगर तुम क्षमाहीन काल के एक एक पल का हिसाब दे सको…..

.तो यह सारी पृथ्वी तुम्हारी है…

और हरेक वस्तु तो इस पृथ्वी पर है उस पर तुम्हारा हक है….

वत्स तुम सच्चे अर्थों में इंसान कहे जाओगे….

– रुडयार्ड किपलिंग

(देश मंथन 28 जून 2016)

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