डलहौजी से मिनी स्विटजरलैंड की ओर…

0
260

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

हमारी अगली मंजिल थी खजियार। हिमाचल प्रदेश का स्विटरजरलैंड। जहाँ हमने अगले तीन दिन रहना तय किया था। बड़ी संख्या में ऐसे सैलानी होते हैं जो डलहौजी में रुकते हैं। यहीं से गाड़ी बुक करके खजियार जाते हैं। वहाँ चार घंटे गुजारने के बाद लौट आते हैं। पर हमारी योजना तो वहाँ कुछ दिन और रात गुजराने की थी।

बनीखेत से से खजियार जाना था।एक दिन पहले पता कर लिया था कि डलहौजी बस स्टैंड से 9 बजे और 10 बजे बस जाती है। पहाड़ों पर बसें कम चलती हैं। डलहौजी से खजियार जाने के लिए टैक्सी वाले 850 से 1050 माँग रहे थे। 850 में सिर्फ खजियार ड्राप करने का तो 1050 में चार घंटे इंतजार कर वापस लाने का शामिल था। डलहौजी में टैक्सी बुक करने के लिए बस स्टैंड के पास प्रिंस टूर एंड ट्रैवल्स आदर्श टूर आपरेटर हैं। (संपर्क – गुरबचन सिंह- 94180 10519 )

नास्ते में पंजाबी पराठे …और क्या 

सुबह-सुबह हमलोग बनीखेत से निकल पड़े। डलहौजी तक के लिए शेयरिंग टैक्सी मिल गयी। दस रुपये प्रति सवारी। डलहौजी बस स्टैंड पर समय से काफी पहले पहुँच गए। तो शुरू हुआ बस का इंतजार। मिनी बस आई पीछे बनीखेत की तरफ से ही। बस भरी हुई थी। पर डलहौजी में खाली हो गयी। हमें जगह आसानी से मिल गयी। पहले सुभाष चौक फिर गाँधी चौक। आगे बस स्नोडेन की ओर बढ़ चली। कंडक्टर महोदय ने किराया लिया डलहौजी से खजियार 22 किलोमीटर के लिए 30 रुपये प्रति सवारी यानी ढाई टिकट के 75 रुपये। डलहौजी से रास्ता अत्यंत मनोरम है। धूप नहीं है। बारिश भी नहीं है। पहाड़ों की चक्करघिन्नी वाली सड़क है। एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ गहरी घाटियाँ। रास्ते में कुछ लोग उतरे। कुछ चढ़े। कुछ भौजाइयाँ भी बस में चढ़ीं। रंग-बिरंगी साड़ियों में लिपटी। चेहरे पर गाढ़ा मेकअप। बोली पटनिया बोल रही थीं। वे परिवार के साथ खजियार जा रही थीं। रविवार की छुट्टी है। थोड़ी तफरीह हो जाए। 

तकरीबन एक घंटे में बस खजियार पहुँच गयी। हिमाचल टूरिज्म का होटल देवदार दिखाई दिया। कुछ लोग यहीं उतरने लगे। अनादि को विशाल हरा-भरा ग्राउंड दिखाई दिया। उस ग्राउंड में एक बिल्डिंग जिसके तिकोने छत पर होटल पारुल लिखा। हमें वहीं पहुँचना था। बस चौराहे से चंबा की तरफ के लिए मुड़ते हुए नीचे उतरी। फिर स्टाप पर रुकी। सामने होटल पारुल एंड रेस्टोरेंट दिखाई दे रहा था। हमने इस होटल को गोआईबीबोडाटकाम से बुक किया था। कंटिनेंटल प्लान में यानी सुबह के नाश्ते के साथ। हमें तीसरी मंजिल पर कमरा नंबर 402 मिला। खिड़कियों से खजियार का विहंगम नजारा दिखाई देता है। मैं बनीखेत वाले होटल से ही गर्म पानी से नहाकर चला था। इसलिए हमलोग रेस्टोरेंट में जाकर नास्ते पर टूट पड़े। 

रेस्टोरेंट के बाहर कैनोपी लगी थी जिसके नीचे सजी कुर्सियों से पूरा खजियार ग्राउंड दिखाई दे रहा था। नास्ते में आलू पराठा, पनीर पराठा। तंदूर के बने हुए। दही के साथ। तो अनादि ने छोले भठूरे का आर्डर किया। खजियार ग्राउंड की चहलकदमी का नजारा करते हुए जम कर नास्ता किया। माधवी पहाड़ों की चक्करघिन्नी सड़कों पर सफर के कारण एहतियात बरतते हुए बिना कुछ खाए पीए ही चलीं थी। सो यहाँ पनीर पराठा साथ में दही और धनिया पुदीना चटनी खाकर दिल खुश हो गया। माधवी अब एक दो घंटे आराम करना चाहती थीं। पर हमें और अनादि को चैन कहाँ। हम चल पड़े ग्राउंड में घूमने। 

(देश मंथन 30 जून 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें