प्यार दो, प्यार लो

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

जबलपुर जाने का मतलब है कहानियों के संसार की यात्रा पर निकलना। एक कहानी खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू। अब वहाँ कदम संस्था वालों ने इतने पेड़ लगा दिए हैं कि प्रकृति जबलपुर की मिट्टी चूमने लगी है। आसमान बादलों को मुहब्बत का पैगाम लेकर धरती के पास भेजने लगा है। ऐसा ही परसों हुआ था जब दिल्ली से उड़ा विमान जबलपुर एयरपोर्ट पर उतरने से घबराता रहा कि वहाँ तो धरती से मिलने बादल नीचे उतर आये हैं। 

वो तो आपकी दुआओं का असर था, जो बादलों ने संजय सिन्हा को उतरने की थोड़ी जगह दे दी, वर्ना कई विमान तो लौट ही गये थे। 

कल वापसी के वक्त भी ऐसा ही हुआ। 

कदम संस्था वालों के बीजारोपण कार्यक्रम का नतीजा है कि आज जबलपुर में हरियाली ही हरियाली है। सावन अपने फुल फॉर्म में है। कल जब मुझे वहाँ से दिल्ली लौटना था, तब भी बादल जमीं पर ऐसे उतर आए थे, मानों कह रहे हों, आज मत जाओ संजय सिन्हा। रुक जाओ जबलपुर में ही। विमान उड़ने की स्थिति में नहीं था। पायलट की आँखों के आगे धुँध छाई थी और हम ढेर सारे लोग डुमना एयरपोर्ट के पास कल्चुरी रेस्त्राँ में बैठ कर गरम चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। वहीं अपने कदम संस्था वाले सरदार एचएस विर्दी साहब ने एक के बाद एक कहानियाँ सुनाईं। सबसे दिलचस्प कहानी तो थी उनकी शादी की। जब उन्होंने बताया कि कैसे एक लड़की से शादी उन्होंने सिर्फ इसलिए नहीं की, क्योंकि लड़की देखने जाने पर उन्हें अपनी होने वाली सास के पजामे का नाड़ा दिख गया था। 

हम पेट पकड़-पकड़ कर हँस रहे थे सरदार जी की इस कहानी पर। आज तो नहीं, पर कभी न कभी इस कहानी को आपसे जरूर साझा करूंगा। बताऊंगा कि जब शादी के लिए लड़की दिखाई जाती है, तो एक लड़के के मन में कैसे-कैसे सवाल घूम रहे होते हैं। किस बात पर शादी की हाँ हो जाएगी, किस बात पर ना, यह इस कहानी का मर्म है। पर अभी तो उनकी सुनाई कहानी में से एक कहानी और कहानी लेकर मैं आज आपके पास आया हूँ, कहानी प्यार और नफरत की।

एक लकड़हारा रोज जंगल जा कर लकड़ी काटता और गाँव में ले जाकर बेचता। लकड़ी काटना और बेचना, यही उसका काम था। इसी से उसका घर परिवार चलता था। लकड़हारा जंगल से जब लकड़ी काट कर चलता, तो रास्ते में राजा का महल पड़ता। राजा महल की छत पर खड़ा होकर रोज देखता कि सिर पर लकड़ी का गट्ठर उठाए लकड़हारा चला जा रहा है। 

रोज लकड़हारे को देखते हुए उसे उस पर दया भी आने लगी। बेचारा कितनी मेहनत करता है। सारा दिन लकड़ियाँ काटता है और बेचता है। लकड़हारा भी राजा को दूर महल की छत पर खड़े देखता, सोचता राजा कितना अच्छा है। वो रोज उसकी ओर देखता है। इस तरह मन की तरंगों से दोनों के बीच एक रिश्ता बन गया। राजा लकड़हारे की ओर देख कर मुस्कुराता, लकड़हारा भी राजा की ओर देख कर मुस्कुराता। 

दोनों मन ही मन एक दूसरे को हैलो कहते। 

दिन गुजरते रहे। 

एक दिन लकड़हारे के हाथ चंदन की लकड़ी लग गयी। वो उसे बेचने गाँव की चला। अब चंदन की लकड़ी भला कौन खरीदता? इतनी महँगी लकड़ी। 

बेचारा लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर उठाए रोज गाँव की ओर जाता। राजा उसे महल की छत से देखता। लकड़हारा लकड़ी नहीं बिकने से उदास था। अचानक उसके मन में ख्याल आया कि अगर राजा की मृत्यु हो जाए तो उसे जलाने के लिए चंदन की लकड़ी की जरूरत पड़ेगी। 

और वो जंगल से लौटते हुए राजा की ओर देखता, मन ही मन सोचता कि काश राजा की मृत्यु हो जाए। 

कहानी पल भर के लिए यहीं रुकी। विर्दी साहब ने चाय की चुस्की ली और संजय सिन्हा ने सामने फैले जंगल की ओर देखा। लगा कि सचमुच कोई लकड़हारा चला जा रहा है, कोई राजा अपने महल की छत से उसे देख रहा है। 

अब सुनिए आगे। 

पता नहीं क्यों राजा को पहली बार लगा कि वो राजा है। उसका इतना बड़ा महल है। ये गरीब लकड़हारा रोज-रोज इस रास्ते से अपनी गरीबी फैलाता हुआ गुजरता है। इसे कोई हक नहीं कि वो इधर से आए-जाए। कल तक जिस लकड़हारे को देख कर उसका मन उसे हैलो कहता था, आज उसे देख कर उसके मन में नफरत सी बैठ गयी। उसने सिपाहियों को बुलाया और आदेश दिया कि इस लकड़हारे को पकड़ कर जेल में बंद कर दो। 

लकड़हारा जेल में बंद हो गया। जुर्म? जुर्म इतना ही कि वो रोज राजा के सामने से गुजरता था।

राजा इतने से ही नहीं माना। उसने उस लकड़हारे को मौत की सजा भी सुना दी। 

महामंत्री को जब ये बात पता चली तो उसे बहुत हैरानी हुई। राजा ऐसे तो किसी को ऐसी सजा नहीं सुनाते। फिर आज क्या बात हुई? महामंत्री जेल में लकड़हारे से मिलने पहुँचे और उन्होंने उससे पूरी कहानी जाननी चाही। लकड़हारा खुद हैरान था कि ऐसा क्यों हुआ। उसने महामंत्री को पूरी बात बताई कि वो रोज महल के सामने से गुजरता था, राजा उसे देख कर मुस्कुराता था। दोनों के बीच मन ही मन प्रेम का रिश्ता था। पर जिस दिन उसके हाथ चंदन की लकड़ी लगी, उस दिन पहली बार उसके मन में आया कि काश राजा मर जाए और उसे जलाने के लिए उससे चंदन की लकड़ी खरीदी जाए। 

बस उसी दिन से राजा का मन बदल गया। 

महामंत्री समझदार था। वो समझ गया कि जो हम किसी के बारे में सोचते हैं, वही दूसरा भी हमारे बारे में सोचता है। जब तक लकड़हारे के मन में राजा के प्रति ऐसे विचार नहीं आए थे, उधर से भी प्रेम टपक रहा था। जिस दिन लकड़हारे के मन में राजा के मरने की बात आई, उस दिन राजा को उससे नफरत हो गयी। 

वो गाना है न, “दिल बहल तो जाएगा इस ख्याल से,

हाल मिल गया तुम्हारा अपने हाल से।

ध्यान रहे, सामने वाले के दिल से दूसरे के दिल का पता चलता है। जैसा आप किसी के लिए सोचेंगे, वही आपको मिलेगा। 

आज की कहानी का मूल मंत्र – प्यार दो, प्यार लो। जबलपुर की धरती वृक्ष लगा कर आसमान से प्यार जता रही है, जबलपुर के आसमान बादलों के जरिए वहाँ प्यार बरसा रहे हैं।

(देश मंथन 19 अगस्त 2016)

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