राजीव रंजन झा :
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन की ओर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किये जाने के बाद भाजपा की ओर से अब तक स्थिति साफ नहीं है कि वह बिहार के चुनाव में नेतृत्व का चेहरा घोषित करेगी या नहीं।
कुल मिला कर बिहार चुनाव के लिए भाजपा ने अपनी रणनीति अभी पूरी तरह साफ नहीं की है। इस बारे में देश मंथन की ओर से राजीव रंजन झा ने भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन से बातचीत की। शाहनवाज राजद-जदयू एकता को बड़ी चुनौती मानते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहते हैं कि उनका एकजुट होना यह बताता है कि भाजपा मजबूत है और विरोधी डरे हुए हैं। शाहनवाज का साफ कहना है कि लालू-विरोधी नेता के तौर पर पहचान रखने वाले नीतीश की अहमियत खुद लालू प्रसाद यादव से समर्थन ले लेने के बाद घट चुकी है। प्रस्तुत है यह बातचीत।
बिहार में भाजपा की स्थिति कैसी लग रही है आपको?
– हम लोग जीतेंगे, तभी तो विरोधी डरे हुए हैं और एकजुट हो रहे हैं। अगर उन्हें हमसे डर नहीं होता तो वे एकजुट कैसे होते?
लेकिन उन्होंने डर के उपचुनाव साथ में लड़ा और उपचुनाव का नतीजा उनके पक्ष में रहने से उन्हें लगा कि इकट्ठे लड़ने का उन्हें फायदा होता है।
– उपचुनाव और आम चुनाव में जमीन-आसमान का फर्क होता है। भाजपा पिछली बार चुनाव के बाद सारे उपचुनाव हार गयी थी। जब उपचुनाव के छह महीने बाद आम चुनाव हुआ तो 206 सीटें जीती, इसीलिए मैं नहीं मानता कि उपचुनाव के नतीजे कोई संकेत होते हैं। उपचुनाव में हर जगह अलग-अलग माहौल होता है।
लेकिन अगर वोटिंग पर्सेंटेज देखें तो इस समय जितने लोग हैं आप के विरुद्ध, लोकसभा चुनाव में उन सबको मिले वोट अगर इकट्ठा कर दें तो अंतर बहुत ज्यादा हो जाता है, करीब 15 पर्सेंट के आस-पास।
– पर्सेंटेज से कहाँ देश चलता है?
वोटिंग और हार-जीत भी उसी से होती है।
– नहीं फिर भी जीतेंगे हम ही लोग। जो लालू-विरोधी वोट हैं, उन्हें नीतीश विरोधी वोट बना सकते हैं।
लालू जी ने एक दिलचस्प टिप्पणी की है। उन्होंने चुनौती दी है कि आप अपना सीएम उम्मीदवार बताइये? वैसे आपने एक बयान में चुटकी तो ले ली कि भई वो (लालू) खुद तो बन ही नहीं सकते हैं। लेकिन एक सवाल तो बना हुआ है ही न, और यह सवाल दूसरे लोग भी पूछ रहे हैं।
– अब इस पर क्या बोला जाये।
लोग तो पूछते रहेंगे, जब तक आप हाँ या ना, साफ न कर दें।
– जब तक भाजपा कुछ घोषित नही करेगी, तब तक हम सामूहिक नेतृत्व में लड़ेंगे। अभी तक भाजपा ने कई जगह नेता घोषित करके चुनाव लड़वाये हैं और कई जगह बिना घोषित किये भी लड़े हैं। अभी बहुत जल्दी है इस पर कुछ कहना।
आपका अपना मत क्या है? किस तरीके से फायदेमंद रहेगा चुनाव लड़ना बिहार में?
– मैं प्रवक्ता हूँ। इस पर मेरा कोई मत नहीं है। जो पार्टी कहती है, मुझे मंजूर है।
आप सिर्फ प्रवक्ता ही नहीं हैं, बल्कि लोग आप को भी बिहार में बीजेपी का एक चेहरा मान रहे हैं। आपका अपना मत कुछ तो होगा कि किस तरह से बिहार में चुनाव लड़ना फायदेमंद होगा? सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ें और बाद में फैसला हो या पहले से घोषणा हो जाये?
– अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। हम लोग मंथन कर रहे हैं कि क्या अच्छा रहेगा। अभी वो देखिए, लालू जी और नीतीश इकट्ठे हुए हैं, चुनौती मजबूत है। मैं इससे इन्कार नहीं कर सकता। चुनौती बड़ी है और हम इसे स्वीकार करके लड़ेंगे। अब उनकी रणनीति के बाद हमारे लिए उसका जवाब देने का वक्त है।
लेकिन कहीं-न-कहीं नीतीश का एक चेहरा है, उनकी एक छवि रही है। क्या उनके सामने आप कोई चेहरा नहीं देंगे कि उनके विकल्प में आप के पास कौन है?
– हमारे पास नेताओं का समूह (गैलेक्सी ऑफ लीडरशिप) है। बहुत सारे नेता हैं। बहुत सक्षम हैं।
बहुत सारे नेता तो आपके पास लोकसभा चुनाव में भी थे, लेकिन आप नरेंद्र मोदी को सामने लाये ना?
– हाँ, अभी देखते हैं। हमारे पास नेताओं की कमी नहीं है। नीतीश के पास नेताओं का अकाल है। अकेले नीतीश हैं और कोई दूसरा चेहरा नहीं है। शरद यादव हैं तो वे भी बिहार के नहीं हैं।
वहाँ तो यह कहानी खत्म है। उनका गठबंधन नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा, इसमें कोई दुविधा नहीं बची है। लेकिन आप किसके नेत्तृव में लड़ेंगे, यह सवाल तो बचा रह जायेगा?
– बीजेपी भी यह दुविधा जल्द ही दूर कर देगी कि हम सामूहिक नेत्तृव में जायेंगे या एक चेहरा रख कर लड़ेंगे।
कब तक इस पर फैसला हो जायेगा?
– हमारे पास एक से एक नेता हैं। देखिए, किसके नाम पर सहमति बनती है।
बिहार चुनाव में दो लोग इस बीच में उभरे हैं – मांझी और पप्पू यादव। क्या ये आप के साथ रहेंगे या अलग रहेंगे?
– अभी तक तो हमारे साथ लोजपा और रालोसपा ही हैं। मांझी साहब से हमारे रिश्ते बुरे नहीं हैं, लेकिन कोई गठबंधन नहीं है अभी।
चुनाव में क्या लगता है? वे साथ रहेंगे या दूसरे गठबंधन में मिल जायेंगे या अलग से ही लड़ेंगे?
– उनको पूरा हक है यह तय करने का। हम तो भाजपा के प्रवक्ता हैं, भाजपा के बारे में बता सकते हैं।
आप क्या चाहते हैं? वे आपके साथ आयें क्या आपकी ऐसी इच्छा नहीं है?
– हमारे चाहने से क्या होता है? हम तो चाहेंगे कि पाकिस्तान कश्मीर दे दे, तो कहाँ दे रहा है!
पप्पू यादव अभी भी आप के लिए एक अपराधी हैं या संभावित सहयोगी हैं?
– वे संसद के सदस्य हैं, अदालत से बाइज्जत बरी हैं और मैं कानून में विश्वास रखता हूँ। मैं कैसे कह सकता हूँ उनके बारे में कुछ?
तो क्या अब उन्हें आपका संभावित सहयोगी माना जाये?
– संभावनाएँ कहाँ-कहाँ तलाशेंगे? लोग नीतीश के बारे में भी पूछते हैं। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा है कि दरवाजे खुले हैं। और अब इसमें कौन लोग आयेंगे, इस पर अभी चर्चा नहीं हुई है। जब होगी तो बतायेंगे। मैं वर्तमान में जीता हूँ, अतीत में नहीं।
वर्तमान के हिसाब से देखें तो हमारे सामने सबसे ताजा उदाहरण लोकसभा का है। उसके हिसाब से आप का जो गठबंधन है और जो विरोधी गठबंधन बन चुका है, दोनों के मत प्रतिशत में काफी अंतर है।
– नहीं, वो आँकड़ों में दिख रहा है। लेकिन पिछली बार अल्पसंख्यकों में जो गलतफहमी मोदी के खिलाफ पैदा की गयी थी, वह अब दूर हो गयी है। मोदी ने सबका साथ सबका विकास से एक साल में जो विश्वास जीता है, उसके बाद अब कोई उनके नाम पर डरा कर वोट नहीं ले सकता। जरूरी नहीं है कि जो वोट पिछली बार उनके साथ था, वह इस बार भी साथ रहेगा। और जो नीतीश का वोट है, वह लालू विरोधी है। नीतीश कोई जादूगर नहीं हैं, जो एक सेंकड में बदल कर उसे लालू के समर्थन में डाल दें। जो लोग लालटेन से डरे हुए हैं, लालू से डरे हुए हैं, वे लालू के साथ कैसे जा सकेंगे? लालू जी के साथ आने पर नीतीश की अहमियत घटी है। उनकी पहचान थी लालू-विरोधी नेता की, अब वे लालू-समर्थक हो गये हैं। मेरा मत है कि भाजपा जीतेगी, क्योंकि हमारे विरोधी सत्ता के लिए इकट्ठा हुए हैं, जनता के लिए नहीं।
(देश मंथन, 17 जून 2015)