Wednesday, September 17, 2025
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समाचार विचार

देश में संघ से बड़ा राष्ट्र भक्त कौन है

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का देश की राजधानी में हुआ एकता सम्मेलन और कुछ नहीं अपने दुश्मन नंबर एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी विचारधारा के ध्वज वाहक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिलाफत का मंच था, जहाँ इस संगठन के सदर मदनी साहब ने पानी पी-पी कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के नाम पर सरकार को कोसा तो एकता के नाम पर देश तोड़ने वाली हरकतों के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया। 

शवयात्रा में क्रिकेट

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

मैं ऊपर वाले प्रार्थना करता हूँ, कि जीते जी वह चाहे जैसा सलूक करे मेरे साथ। पर मेरी मौत उस दिन ना शेड्यूल करे, जिस दिन भारत और पाकिस्तान का वन डे क्रिकेट मैच हो। 

दुस्साहसी माँ-बाप ही बेटियों को जेएनयू भेजेंगे!

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

अगले सत्र से जेएनयू में प्रवेश लेने वाली लड़कियों की संख्या में खासी गिरावट आ सकती है। पिछले एक महीने में ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत हुई, जो अपनी बेटियों को उच्च-शिक्षा के लिए किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में भेजना चाहते हैं, लेकिन जेएनयू का नाम आते ही वे काँपने लगते हैं।

एक भारतीय की पाती

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

आज सभी से राजनीति से ऊपर उठ एक बात कहना चाहता हूँ कि आप लोगों की लाचारी देख मुझे ऐसा लग रहा है कि आप लोगों की हालत उन भारतीय सिपाहियों जैसी हो गयी है जो मुगलों और अंग्रेजों की सेनाओं में शामिल हो जाते थे और न चाहते हुए भी अपने सिद्धांतों से समझोता कर अपने ही लोगों के खिलाफ खड़े हो जाते थे और जबरन ज्यादती करते थे।

बीमारी को पहचान लेना ही आधा इलाज है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक 

उफक एक लड़की का नाम है। वो पढ़ना चाहती थी। तरक्की करना चाहती थी। पर उसकी शादी हो गयी। शादी के बाद पति भी उसे पढ़ाना चाहता था, पर सास ऐसा नहीं चाहती थी। सास ने षडयंत्र करना शुरू किया। बेटे के कान भरने लगी कि तुम्हारी बीवी पागल है। उसे इलाज की जरूरत है। घर में ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करने लगी, जिससे धीरे-धीरे उफक और उसके शौहर के बीच कटुता पैदा होने लगी। और आखिर में उसके शौहर को लगने लगा कि उफक सचमुच पागल है। उसने उफक को छोड़ दिया, दूसरी लड़की से शादी कर ली।

हम जो देते हैं, वही पाते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

इंदिरा गाँधी कहा करती थीं, “बातें कम, काम ज्यादा।” मैं तब उनके इस कहे का मतलब नहीं समझ पाता था। पर एक दिन पिताजी ने मुझे समझाया कि जो लोग ज्यादा बातें करते हैं, वो काम कम करते हैं। आदमी को काम अधिक करना चाहिए। इससे आदमी का, देश का, समाज का और दुनिया का विकास होता है। मेरी समझ राजनीतिक तो थी नहीं, इसलिए मैंने पिताजी से पूछ लिया था कि आखिर इंदिरा गाँधी को ऐसा कहने की जरूरत ही क्यों आ पड़ी? अगर यह सही है कि काम करने से आदमी का विकास होता है, तो ये बातें किताब में लिखी होनी चाहिए थी। मेरे स्कूल के मास्टर साहब को बतानी चाहिए थी।

हमें मारोंगे तो हम कुछ नहीं कहेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आइए, आज आपको एक ऐसी कहानी सुनाता हूँ, जिसे याद करके मेरी रूह काँप जाती है।

अपनी विचारधारा के बारे में दो टूक

अभिरंजन कुमार :

मैं जब सड़क पर पैदल चलता हूँ या साइकिल चलाता हूँ, तो बाएँ चलता हूँ, ताकि आती-जाती गाड़ियों से अपनी रक्षा कर सकूँ। जब कार चलाता हूँ, तो दाएँ चलता हूँ, ताकि आते-जाते पैदल या साइकिल यात्रियों को मेरी वजह से परेशानी न हो। जहाँ कहीं दाएँ या बाएँ मोड़ हो और मुझे सीधा जाना हो, तो गाड़ी बीच की लेन पर ले आता हूँ।

अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरे जैसे पत्रकार नहीं होने चाहिए। ऐसे पत्रकार बेकार होते हैं, जो मालदा की घटना पर, सियाचीन के जाबांजों की मौत पर, सुलग रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर अपनी कलम नहीं भांजते। ऐसे पत्रकारों पर लानत है। संजय सिन्हा से कई लोगों ने गुहार लगायी है कि आप कुछ ऐसा क्यों नहीं लिखते, जिससे आपकी देशभक्ति जाहिर हो।

JNU में वामपंथियों की देश विरोधी करतूत

सुशांत झा, पत्रकार :

हाफिज़ सईद के JNU के कॉमरेडों को समर्थन देने की खबर IBN की साइट ने लगायी थी, बाद में जनसत्ता ने भी लगा दी। खबर का आधार संदेहास्पद था, IBN ने हटा दी। पहले Saurabh Dwivedi ने मुझे इनबॉक्स में इशारा किया, तब तक मैं उसे शेयर कर चुका था।

ऊपरवाले की कस्टमर केयर

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

शनि के मंदिर, हाजी अली दरगाह पर बखेड़े खड़े हो रहे हैं, पर ऊपर से कोई रिस्पांस नहीं आ रहा है।

कस्टमर केयर के इस जमाने में जहाँ से कस्टमर केयर बिलकुल ही नहीं मिलती है, वह है ऊपरवाले का इलाका।

अच्छाई में भी कमियाँ दिखेंगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बच्चा पार्क में खेलने जा रहा था। 

दादी घर में अकेली थी। दादी ने बच्चे को रोका और कहा कि क्या तू दिन भर खेलता रहता है। कभी अपनी दादी के पास भी बैठा कर। बातें किया कर। 

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