पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
क्यों नहीं पुरस्कार लौटाए जा रहे? चुप्पी क्यों ?
मालदा के बाद पूर्णिया! यह हो क्या रहा है? क्या सहिष्णुता सिर्फ उस बहुसंख्यक वर्ग के लिए ही है जिसको पंद्रह मिनट में काट देने की मंच से घोषणा करने वाले शख्स के आजादी के बाद दिये गये सबसे उकसावे वाले बयान के बावजूद देश की सेहत प्रभावित हुई? क्या कहीं हिंसा की खबरें आयी? क्या कहीं कानून-व्यवस्था को परेशानी हुई? नहीं न, क्योंकि सनातन धर्मी स्वभाव से सहनशील है। उसके शब्दकोश में नफरत या घृणा शब्द ही नहीं है।
हिंदी की पत्रिका सरिता में हिंदू देवी-देवताओं के बारे में क्या कुछ अंटशंट नहीं लिखा जाता था? लोकशाही में बोलने की आजादी का हम सम्मान करते हैं। कोई किसे पसंद करे न करे, यह उसका निजी मामला है, लेकिन मोहम्मद साहब पर अभद्र टिप्पणी करने वाले शख्स को फाँसी देने का फतवा देते हुए देश के बड़े हिस्से में जिस तरह से हिंसात्मक प्रदर्शन हो रहे हैं, उसको लेकर क्या धर्मगुरु आगे आए निंदा करने? किस खोह में छिप गये वे मानवतावादी, तथाकथित सहिष्णु, सेक्यूलर व पुरस्कार लौटाने वाले महान बुद्धिजीवी जिन्हे चुनावी दौर में ही देश में असहनशीलता नजर आ रही थी? इन्हीं बहुसंख्यक दर्शकों के बल पर फिल्म जगत में शिखर पर जा पहुँचे अभिनेता कहाँ हो, देखो यह कैसी सहनशीलता हो रही है? क्यों नहीं बोल फूट रहे हैं?
अरे देश को गृह युद्ध की आग में झोंकने का भयावह षड़यंत्र हो रहा है और यह कैसी विचित्र सी खामोशी है! लाखों लोग सड़क पर उतर रहे हैं। वे क्यों भूलते हैं कि सारी दुनिया उनकी नापाक करतूतों को गौर से देख रही है और यह भी समझ चुकी है कि इनके लिए जम्हूरियत बेमानी है। सिर्फ इस्लाम के समर्थन को ही धर्म निरपेक्षता कहा जा सकता है? यूपी के बाद बंगाल और अब बिहार में पहुँची जहरीली आंच को दावानल बनने से रोकिए। अरे सत्ता ही सब कुछ नहीं है। वोट के सौदागरों, इंसानियत भी कोई चीज होती है! पीढ़ियाँ माफ नहीं करेंगी, किस तरह जिहाद के नाम पर शर्मसार कर देने वाली नृशंसता का खेल खेला जा रहा है? थानों पर हमले हो रहे हैं, दुकानों और वाहनों को जलाया जा रहा है। मासूमों का कत्ल किया जा रहा है। क्या हम पाकिस्तान में हैं? इल्तजा है कौम के उन विद्वानों से कि वे आगे आएँ और अपील करें कि जिसने गुस्ताखी की है उसे संविधान के मुताबिक कानून से सजा दी जाएगी। लोग कानून अपने हाथ में न लें।
दूसरी ओर हिंसा प्रभावित राज्य सरकारें इस तरह की खुली गुंडागर्दी का कड़ाई के साथ दमन करें। त्वरित काररवाई का वक्त है। देखिये, आपकी बेपरवाही से कहीं देर न हो जाए! अन्यथा देश में भयावह रक्तपात का अंदेशा हकीकत में बदल सकता है।
(देश मंथन 10 जनवरी 2016)