Sunday, May 19, 2024
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प्राचीन गौड़ मालदा शहर – कभी था ‘लक्ष्मणावती’

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

बंगाल का पुराना शहर गौड़ कभी बंगाल की राजधानी रहा है। गौड़ प्राचीन काल में 'लक्ष्मणावती' मध्यकाल में  'लखनौती'के नाम से जाना जाता था। किसी समय यह संस्कृत भाषा और हिंदू राजसत्ता का बड़ा केंद्र था। गौड़ का सबंध गीत गोविंद के रचयिता जयदेव के अलावा व्याकारणाचार्य हलयुद्ध से रहा है। 

पूर्वोत्तर जाने वाली ट्रेनों की सुध लें रेलमंत्री जी..

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

रेलवे में यात्री सुविधाओं में सुधार और स्टेशनों को चमकाने की खूब बात की जाती है। पर इसका असर देश की राजधानी दिल्ली से पूर्वोत्तर की ओर जाने वाली ट्रेनों में बिल्कुल नहीं दिखायी देता। लालगढ़ से ढिब्रूगढ़ तक जाने वाली अवध आसाम एक्सप्रेस, आनंद विहार से गुवाहाटी जाने वाली नार्थ इस्ट एक्स, दिल्ली से ढिब्रूगढ़ जाने वाली  ब्रह्मपुत्र मेल, न्यू अलीपुर दुआर तक जाने वाली महानंदा एक्सप्रेस ये सभी दैनिक ट्रेनें उपेक्षा का शिकार हैं। किसी में एलएचबी कोच नहीं लगे। मोबाइल चार्जर दिखायी नहीं देते। ब्रह्मपुत्र मेल के टायलेट में तो जाले लगे दिखायी दिए। मानो कोच की सफाई महीनों से नहीं हुई हो। हालाँकि ये सारी ट्रेनें भारतीय रेल को राजस्व तो खूब देती हैं पर इनसे सौतेला व्यवहार क्यों। यह सवाल इन ट्रेनों में सफर करने वाले बार-बार पूछते हैं।

अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरे जैसे पत्रकार नहीं होने चाहिए। ऐसे पत्रकार बेकार होते हैं, जो मालदा की घटना पर, सियाचीन के जाबांजों की मौत पर, सुलग रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर अपनी कलम नहीं भांजते। ऐसे पत्रकारों पर लानत है। संजय सिन्हा से कई लोगों ने गुहार लगायी है कि आप कुछ ऐसा क्यों नहीं लिखते, जिससे आपकी देशभक्ति जाहिर हो।

सांप्रदायिकता से कौन लड़ना चाहता है?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

देश भर के तमाम हिस्सों से सांप्रदायिक उफान, गुस्सा और हिंसक घटनाएँ सुनने में आ रही हैं। वह भी उस समय जब हम अपनी सुरक्षा चुनौतियों से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं। एक ओर पठानकोट के एयरबेस पर हुए हमले के चलते अभी देश विश्वमंच पर पाकिस्तान को घेरने की कोशिशों में हैं, और उसे अवसर देने की रणनीति पर काम कर रहा है। दूसरी ओर आईएस की वैश्विक चुनौती और उसकी इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न देशों की युवा शक्ति को फाँसने और अपने साथ लेने की कवायद, जिसकी चिंता हमें भी है। मालदा से लेकर पूर्णिया तक यह गुस्सा दिखता है, और चिंता में डालता है। पश्चिम बंगाल और असम के चुनावों के चलते इस गुस्से के गहराने की उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं।

कहाँ छिप गए वे सेक्युलर, मानवतावादी!

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार : 

क्यों नहीं पुरस्कार लौटाए जा रहे? चुप्पी क्यों ?

मालदा के बाद पूर्णिया! यह हो क्या रहा है? क्या सहिष्णुता सिर्फ उस बहुसंख्यक वर्ग के लिए ही है जिसको पंद्रह मिनट में काट देने की मंच से घोषणा करने वाले शख्स के आजादी के बाद दिये गये सबसे उकसावे वाले बयान के बावजूद देश की सेहत प्रभावित हुई? क्या कहीं हिंसा की खबरें आयी? क्या कहीं कानून-व्यवस्था को परेशानी हुई? नहीं न, क्योंकि सनातन धर्मी स्वभाव से सहनशील है। उसके शब्दकोश में नफरत या घृणा शब्द ही नहीं है। 

मालदा पर मुखर हुए असगर वजाहत और कमर वहीद नकवी

देश मंथन डेस्क :

इस रविवार 3 जनवरी को पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में विरोध रैली के नाम पर बड़ी संख्या में जमा हुए लोगों की हिंसक वारदातों पर ज्यादातर बुद्धिजीवियों ने चुप्पी साध रखी है, मगर प्रख्यात साहित्यकार असगर वजाहत और वरिष्ठ पत्रकार कमर वहीद नकवी ने मुखर तरीके से सख्त टिप्पणियाँ की हैं।

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