व्यापमं बाहर नहीं, अन्दर है!

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कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :  

सब तरफ व्यापमं ही व्यापमं है! वह व्यापक है, यहाँ, वहाँ, जहाँ नजर डालो, वहाँ व्याप्त है! साहब, बीबी और सलाम, ले व्यापमं के नाम, दे व्यापमं के नाम! व्यापमं देश में भ्रष्टाचार का नया मुहावरा है, जिसमें कोई एक, दो, दस-बीस, सौ-पचास का भ्रष्टाचारी गिरोह नहीं, हजारों हजार भ्रष्टाचारी हैं।

नेता से लेकर जनता तक, सबने इस गोरखधन्धे में अपनी-अपनी मलाई खायी। सोर्स-सिफारिश, धनबल, बाहुबल, देह शोषण से लेकर क्या नहीं हुआ एडमिशन और नौकरियाँ लेने-देने के फेर में! यह शायद देश में भ्रष्टाचार का ऐसा पहला मामला है, जो आम घरेलू परिवार से लेकर सत्ता के गलियारों और शिखर तक, वकील, डॉक्टर, मीडिया, अफसर, पुलिस से लेकर कानून के दरवाजों तक एक समान रूप से व्याप्त हुआ। ऐसे व्यापी व्यापमं में कौन नहाया, कौन नहीं नहा पाया, कौन जाने?

चारे से व्यापमं तक!

जाहिर-सी बात है कि व्यापमं जब बना होगा, तब इस काम के लिए नहीं बना होगा, जिसके कारण आज वह इतना बदनाम हो चुका है। वह बनाया इसलिए गया था कि राज्य के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोई एक मानक हो सके, कोई एक तन्त्र हो जो सही तरीके से इन परीक्षाओं का संचालन करे। और नतीजा क्या हुआ? इसने भ्रष्टाचार के एक सुसंगठित और विशाल तन्त्र को जन्म दे दिया, जिसमें एक-एक कर सब शामिल होते चले गये! 

बिहार का चारा घोटाला, उत्तर प्रदेश का एनआरएचएम घोटाला और पुलिस भर्ती घोटाला, हरियाणा का शिक्षक भर्ती घोटाला और मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला, अलग-अलग पार्टियाँ, अलग-अलग सरकारें, अलग-अलग प्रदेश, लेकिन कहानी लगभग वही, तरीके भी लगभग वही, चरित्र भी कमोबेश लगभग वही और घोटालों से सत्ता का रिश्ता भी लगभग वही। इनमें चारा घोटाला, एनआरएचएम घोटाला और व्यापमं घोटाले में तो रहस्यमय मौतों की कहानी भी लगभग वही। इसमें अब अगर 2 जी, कोयला ब्लाक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों को भी जोड़ दें तो तस्वीर पूरी हो जाती है! फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ कौन कुछ करेगा या करना चाहेगा? इसलिए भ्रष्टाचार के छोटे-बड़े मामलों की खबरें लगातार आती-जाती रहती हैं, छपती रहती हैं, कुछ मामले तो पहले ही दब-दबा जाते हैं, कुछ पर जाँच शुरू होती है, कुछ में सबूत नहीं मिलते, जिनमें मिल जाते हैं, वे मामले अदालत पहुँचते हैं, उनमें कुछ में ही सजा हो पाती है, बाकी छूट जाते हैं और राजकाज यथावत चलता रहता है! जाहिर है कि राजनीति चला रहे लोग तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ करने से रहे। उनके लिए भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प चुनाव दर चुनाव महज एक जुमला है!

अन्ना आन्दोलन क्यों हुआ हवा-हवाई?

अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा आन्दोलन छेड़ा। पूरा देश सड़कों पर आ गया। लेकिन हुआ क्या? होना भी क्या था? वह आन्दोलन जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर तो उतार लाया, वह राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की बात तो करता था, लेकिन जनता को भ्रष्टाचार से मुक्त करना उसका एजेंडा नहीं था। जनता भ्रष्टाचार से लड़े, घर-घर और गली-गली भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई चेतना फैलायी जाये, और भ्रष्टाचार जब तक लोक-संस्कार में वाकई अस्वीकार्य न बना दिया जाये, तब तक उसके खिलाफ लड़ायी जारी रहे, ऐसा कोई एजेंडा, ऐसी कोई योजना, ऐसा कोई इरादा, ऐसी कोई तैयारी अन्ना आन्दोलन में थी ही नहीं, इसलिए एक लोकपाल की घोषणा के बाद अन्ना चुसे हुए आम जैसे बेकार हो गये! और हुआ क्या? लोकपाल अब तक नहीं आया! कब आयेगा, पता नहीं! और आ भी जायेगा, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कर पायेगा, कह नहीं सकते!

हम सब में थोड़ा-थोड़ा व्यापमं!

व्यापम इस बात का सबूत है कि भ्रष्टाचार ऊपर से ले कर नीचे तक कैसे सर्वव्यापी हो चुका है। यानी अब हालत यह है कि आप अपने डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट, वैद्य, नर्स, वकील वगैरह-वगैरह की योग्यता पर भी भरोसा नहीं कर सकते कि उसने जो डिग्री टाँग रखी है, वह उसके वाकई लायक है भी या नहीं! जो शिक्षक फर्जी तरीकों से नौकरी पा गये, वे बच्चों को क्या पढ़ा रहे होंगे, समझा जा सकता है। और भ्रष्टाचार यहीं तक नहीं रुकता। आपके खाने में मिलावट है, दवा नकली है, सब्जी और फल में कीटनाशक का जहर है, दूध सिंथेटिक है, पर्यावरण खराब है, नदी जहरीली हो गयी, यह सब किसी न किसी के भ्रष्टाचार का ही नतीजा है। 

और व्यापमं इस बात का भी सबूत है कि भ्रष्टाचार न होने देने के लिए हम जितने नये तन्त्र बनाते हैं, उनमें से ज्यादातर उस भ्रष्टाचार को और ज्यादा व्यापक, और ज्यादा संस्थागत बना देते हैं। क्यों? इसलिए कि व्यापमं बाहर नहीं, अन्दर है! अन्दर झाँकिए जनाब। हम सबमें थोड़ा-थोड़ा व्यापमं है। जिस दिन उसे खत्म कर देंगे, बाहर का व्यापमं अपने आप खत्म हो जायेगा! है कोई अन्ना हजारे यह चुनौती लेने के लिए तैयार?

(देश मंथन, 11  जुलाई 2015)

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